Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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तृतीय परिच्छेद
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विपरीताभिनिवेश तजि, भजि निर्मल श्रद्धान । याके धारक अमितगति, लहत सकल कल्यान । ऐसें श्री अमितगति आचार्यकृत श्रावकाचारविर्षे
द्वितीय परिच्छेद समाप्त भया ।
तृतीय परिच्छेद
आगें सम्यग्दर्शनके विषय जे जीवादिक परार्थ तिनिका वर्णन करें
हैं
जीवाजीवादितत्वानि, ज्ञातव्यानि मनीषिणा। श्रद्धानं कुर्वता तेषु, सम्यग्दर्शनधारिणा ॥१॥
प्रर्थ-सम्यग्दर्शनका धारनेवाला अर तीन जीवादिकनिविर्षे श्रद्धानकौं करता ऐसा जो पंडितपुरुष ताकरि जीव अजीव आदि तत्व हैं ते जानने योग्य हैं।
मावार्थ--सम्यग्दर्शनकी निर्मलताके अर्थजीवादि पदार्थ विस्तारसहित जानने योग्य हैं ॥१॥
तत्र जीवा द्विधा ज्ञेया, मुक्तसंसारिभेदतः । अनादिनिधनाः सर्वे, ज्ञानदर्शन लक्षणाः ॥२॥
अर्थ-तहां जीव हैं ते मुक्त अर संसारी भेदकरि दोय प्रकार जानना। के से हैं जीव आदि, अन्त रहित हैं अर सर्व ही ज्ञानदर्शन लक्षण जिनके ऐसे हैं।
भावार्थ-द्रव्याथिक नय करि जीव अनादिनिधन है अर एक द्रियतें लगाय सिद्ध भगवानपर्यन्त सामान्य ज्ञानदर्शन बिना कोई भी जीव नाहीं। ऐसा जानना ॥२॥