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ओसूतोलयून
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ओन्दि
यह “उसारा मामीसा" के उसारे की तरह होता यौगिक है । अस्तु, इसका शब्दार्थ माध्वी मद्य है। इसके पत्ते "तरहतेज़क" के पत्तों की तरह हया: पर यूनानी भाषा में शहद के शर्बत का होते हैं । किंतु इनमें ऐसे छिद्र होते हैं जो देखने नाम है । इसके प्रस्तुत करने की विधि यह हैसे कीट भशित की तरह ज्ञात होते हैं। उनमें रस पुरानी मदिरा २ भाग, शहद १ भाग-इन दोनों एवं पार्द्रता का अभाव होता है। अतएव कुछ को मिलाकर क्वधित करते हैं। जब चाशती हो सूखने से प्रतीत होते हैं और किंचिन्मात्र दाब जाती है । तब उतार लेते हैं और यही उत्तम है। से टट जाते हैं | पुष्प केशर की तरह का पीले रंग कभी अंगूर के रस को शहद के साथ क्वथित कर का होता है । परन्तु यह केशर के दुष्प से बड़ा होता चाशनी कर लेते हैं। है। ऐसे ही अन्य अनेक विभिन्न मत हैं, जिनका प्रकृति-द्वितीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष है यहाँ उल्लेख करना उचित नहीं जान पड़ता। या प्रथम कक्षा में रूक्ष है। तात्पर्य यह कि यह एक संदिग्ध एवं अनिश्चित गुण-धर्म-यह शोथविलीनकर्ता, रोधोद्धाअज्ञात औषध है । प्रकृति-तृतीय कक्षा में उष्ण
टक और मलावरोधनिवारक है तथा पाखाना और द्वितीय में रूक्ष है।
खुलकर लाता है। इससे पेशाब भी अधिक होता गुण-धर्म-यह औषध अत्यंत तीव्र है, जो प्रवाह है । यदि भोजनोपराँत इसका सेवन करे, तो उत्पन्न करती है। इसे ख की ऐसी औषधियों
श्रामाशय को हानि पहुँचता है । क्योंकि पाचन के में,जि.नसे नेत्रगत मलों का उत्सर्ग अभिप्रेत होता
निश्चित समय से पूर्व ही खाद्य श्राम शय से है, योजित करते हैं। इससे धुध जाती रहती है ।
नीचे उतर जाता है । इसको भोजन करने से पूर्व यह दमा और सलाक़ बावामनी(Blepharitis)
सेवन करने से यह भूख बन्द करदेता है और फिर को दूर करता है । इसमें तीक्षणता अधिक होने के
भूख पैदा करता है । दूसरी भाँति जो शर्बत प्रस्तुत कारण, इसको अकेले व्यवहार में लाना वर्जित है ।
किया जाता है वह स्वच्छता उत्पन्न करने एवं की तरह की एक बूटी। दोष पाचन में प्रबलतर होता है। यदि मुलायम अनूतीलून ।
दस्त पाना इष्ट हो, तो पकाया हुआ अंगूर का ओनूदेकी-[ ? ] असदुल अदस ।
रस ६ भाग, शहद १ भाग, दोनों मिलाकर ओनूबरुखिया-[यू०] )
शीतल करल और पुनः सेवन कराएँ । यह ओनूबरूखीस-यू.] एक वनस्पति, जिसकी
जितना पुराना होता जायगा, उतनी ही दस्त
लाने की शक्ति कम होती जायगी। यह शर्बत पत्ती मसूर की पत्ती की तरह होती है। इसका
उष्ण प्रकृति वालों को हानिकर और शीतल तना एक बालिश्त ऊँचा होता है। फूल कालापन लिये लाल और जड़ छोटी होती है। यह श्राद्रं
प्रकृति को सात्म्य होता है । (ख० अ०)। भूमि में उत्पन्न होती है । यह स्रोतों को प्रस्तारित | ओनेई-संज्ञा स्त्री॰ [ ? ] खस । उशीर । करती है। इसका लेप क्षतों को लाभकारी है, | ओनेगर-[अं० onager ] [बहु० अोनेगर्स, प्रोनेविशेषकर सद्यः जात क्षतों को । इसको कुचलकर ग्राइ ) [ यू० अानग्रोस ] (ोनोस-गदहा+अनि जैतून के तेल के साथ शरीर पर मलने से पसीना यूस-जङ्गली) जङ्गली गर्दभ भेद । श्राने लगता है। इसी प्रकार इसके सूखे अंगों को ओनोमा-[ यू० रतनजोत । मालिश से भी स्वेद का प्रवर्तन होता है। इसको श्रोनोसालियूस-[यू० ] करफ्सुल्मा। मद्य के साथ पीने से रुका हुश्रा पेशाब खुल जाता| श्रानास्मा-दे०"श्रानास्मा" । है। इससे अतिसार बंद हो जाता है। श्रोन्तरीसा- यू०] छत्रिका । शिलीन्ध्र । खुम्बी। ओनू (तू) माली- यू० ] एक प्रकार की मदिरा, ओन्दन-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] (१) मङ्गल । (२)
जो शराब और शुद्ध मधु से तैयार होती है। कनिष्ठ । श्रोनूमाली श्रोनू-मद्य और माली=( मधु) का ओन्दि-[ बर० ] नारिकेल। नारियल ।