Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 652
________________ कस्तूरी सर्वोकृष्ट रीति यह है कि मृग से नाफा ग्रहण करने के बाद तुरंत उसे वायु और धूप में खुला रखकर सुखा लेते हैं । कस्तूरी की गंध श्रत्युग्र एवं प्रवल प्रसरणशील होती है । अतएव इसे सामान्यतया खूब सीलबन्द बरतन में अथवा किनारे पर टीन की पट्टी लगे हुये लकड़ी के सन्दूकों में बंद कर रखते हैं । ऋतु श्रादि के कुप्रभाव से सुरक्षित रखने के लिये और जिसमें इसकी गंध उड़ न जाय, नाने को पृथक्-पृथक् चमड़े की छोटी-छोटी थैलियों में उसके चतुर्दिक मृग लोग वा उसी तरह की कोई और वस्तु देकर उनके प्रथम प्राप्ति स्थल पर ही बंद कर देते हैं । चीनी व्यापारी कभी-कभी इन्हें दो-दो वा तीनतीन दर्जन की तादाद में एक साथ रेशम वस्त्र में लपेट कर रखते हैं । व्यापारियों का वह वर्ग जो श्रौषधीय जड़ी-बूटियों और तजात अन्यपदार्थो के निर्यात व्यापार में संलग्न होते हैं, वही शिकारियों से कस्तूरी संग्रह भी करता है । कोई भी चीनी व्यापारी केवल कस्तूरी का व्यापार नहीं करता । रासायनिक विधि द्वारा प्रस्तुत कृत्रिम कस्तूरी (Artificial Musk ) २३८४ कस्तूरी मृग के वर्णनावसर पर हमने यह बतलाया है कि किस बढ़े हुये श्रनुपात से कस्तूरी मृगों के संहार का क्रम जारी है। उससे यह अनुमान लगाया गया कि शीघ्र भविष्य में कहीं इसका वंश ही न इस भूमण्डल से विलुप्त हो जाय, पुनः कस्तूरी के सम्बन्ध में क्या कहा जा सकता है। साथ ही असली कस्तूरी बहुत तेज और कम मिलती है, जिससे इसकी दिनों दिन उत्तरोत्तर बढ़ती हुई माँग की पूर्ति होना श्रसम्भव नहीं, तो कठिन अवश्य जान पड़ता है। इसका प्रमाण यह है. फ्रांस में जो संसार का सबसे बड़ा सुगंध - द्रव्योत्पादक देश है, वहाँ की सुगंधियों के निर्माण में उन द्रव्य के प्रभावरूपी तय की वृद्धि हो रही है । इन बातों से पाश्चात्य रासायनिकों का ध्यान प्रकृति वस्तु के गुण स्वभाव सदृश किसी ऐसे प्रतिनिधि द्रव्य के निर्माण की ओर श्रीकृष्ट हुआ, जिनकी रचना प्रयोगशाला में हो कस्तूरी सके । फलतः कस्तूरी गंधवाले बहुशः यौगिक * संयोगात्मक विधि द्वारा निर्मित किये गये हैं, परन्तु प्रकृत कस्तूरी से उनकी रासायनिक रचना पूर्णतया भिन्न । यद्यपि वे विषक नहीं, अतएव सुगंधियों में, असली कस्तूरी की जगह उनका बहुल प्रयोग होता है और वे सस्ती पड़ती हैं । अधुना Trinitro-meta tertiary buty1 toluene नाम से विदित द्रव्य तथा Tolu• ene और Ketone से विविध प्रकार से रासायनतः बने तत्सम द्रव्य, कस्तूरी के प्रतिनिधि द्रव्य हैं। इनमें Trinitrobutyltoluol ( C6_HNO3 CH3 C4 H सर्वोत्कृष्ट स्वीकार किया गया है। इसकी गंध स्वाभाविक कस्तूरीगंध के सर्वथा समान होती है और कृत्रिम कस्तूरी ( Artificial Musk ) के नाम से सुगंध्यर्थ बिकती है । जर्मनी के विज्ञान वेत्तागण भी उक्त जैविक पदार्थ को बनाने के लिये रासायनिक क्रियाओं द्वारा विशेष उद्योग कर रहे हैं । फलस्वरूप केवल जर्मनी में सन् १६२५ पर्यंत वहाँ के वैज्ञानिक लोगों ने रासायनिक विधि से कस्तूरी तैयार करने के तेरह तरीके दूँढ़ निकाले थे। किंतु अद्यावधि रासायनिक विधि से तैयार की हुई कस्तूरी सुगंधि और गुण में बिलकुल असली कस्तूरी जैसी सिद्ध नहीं हुई। इतिहास पुरातन काल से सभ्य समाज में जिन सुगंध द्रव्यों का व्यवहार होता श्राया है, स्यात् उनमें मृगनाभि प्राचीनतम है। चीन देश में इसका विशेष श्रादर है । प्राचीन चीनी साहित्य के परिशीलन से यह ज्ञात होता है कि वे इसे श्रनेकानेक रोग निवारणक्षम मानते थे । तद्देशीय लब्धप्रतिष्ठ चिकित्सक पाश्रो- पुत्सी का कथन है कि'मृगनाभि' सदा साथ में रहने से सर्पदंश का भय नहीं रहता । सर्प कस्तूरी मृग की भोज्य वस्तु 1 अतः एक टुकड़ा कस्तूरी पास में रककर कोई भी प्रवासी उसकी तीक्ष्ण गंध द्वारा सर्पकुल को दूर रख सकता है ।

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