Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 704
________________ कंदुरू २४३६ कंदुरू काल से ही चला आ रहा है। वे प्रायः इसकी गुण धर्म तथा प्रयोग कंद मूलीय जड़ एवं पत्र के ताजे रस को अकेले आयुर्वेदीय मतानुसारवा किसी धातु वा रस कल्प योग से मधुमेह कडुआ कुदरुप्रतिकारार्थ वर्तते हैं। कटुतुण्डी कटुस्तिक्ता कफवान्ति विषापहा। श्राधुनिक अन्वेषकों में से वर्तमान सभी शस्त्रास्त्र अरोचकास्रपित्तघ्नी सदापथ्या चगेचनी॥ से सुसजित सर्व साधन सम्पन्न डॉक्टर चोपरा (रा० नि०३ व०) और उनके सहकारी अर्वाचीन विधि-विधानानुकूल स्वयं इसका विश्लेषण करके द्रव्य-गुणधर्म कड़वी कंदूरी-चरपरी, कड़वी; सदैव पथ्य परिज्ञानार्थ इसके सत्वादि का स्वस्थ जीवों में (हितकर ), एवं रोचनी-रुचिजनक (वा पाठां तर से रेचनीरेचन करनेवाली) है तथा कफ, और तदुपरांत रोगियों में नाना विध प्रयोग कराने के उपरांत जिस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं पित्त, विष, अरुचि, खाँसी और रक्रपित्त को नष्ट उसका सारांश इस प्रकार है करनेवाली है। तिक्तबिम्बो फलंच नाशनम्। "कंदूरी में प्रमाइलोलिटिक गुण विशिष्ट एक पक्क पित्तहरं शीते मधुर रस पाकयोः॥ एन्ज़ाइम ( Enzyme), एक हर्मोन और (शो. नि.) अंशतः एक प्रकार का चारोद होता है. चहों में इनमें से किसी एक के त्वम् अंतः क्षेप से शर्करा कच्ची कड़वी कंदूरी-वमनकारक और कफकी मात्रा नहीं घटती है। कुदरू की पत्ती, तना नाशक है । पका कड़वा कुनरू-पित्तनाशक, और जड़ के ताजे रस के उपयोग से मधुमेह शीतल और रस तथा पाक में मधुर है। पीड़ित रोगियों की मूत्र वा रुधिरगत शर्करा की तिक्त बिम्बीफलं तिक्तं वामक वातकोपनम् । मात्रा तनिक भी कम नहीं होती है और जो कुछ शोथग्विष पित्तघ्नं रक्तरुक्कफपाण्डुनुत् ॥. कमी होती है वह शुद्धतया श्राहार विहार जन्य (नि० र००) होती है"। (इं० डू. इं• पृ० ३१६) कड़वा कुनरू-कड़वा, वमनकारक, वात कुपित करनेवाला तथा शोथ रोग, विष, पित्त, __जंगली वा कडुआ कुनरू रुधिर विकार, कफ और पाण्डु रोग को नष्ट पर्या-तिक तुण्डी, तिक्काख्या, कटुका, कटु- करनेवाला है। तुण्डिका, बिम्बी, कटुतुण्डी, ( रा० नि.), सुश्रुत के मतानुसार इसका फल साँप और कटु बिम्बी, तिबिम्बी, तुण्डीपायगा। बिच्छू के विष में लाभदायक है। परंतु कायस - -सं० । कड़वी कंदूरी; कड़वा कुनरु, कडु प्रा और म्हस्कर के मतानुसार यह उन उभय विर्षों कुंदरू-हिं० । कटुतराई, तित्पल्ता, तेत केन्दुरुकी, में निरर्थक है। तेलाकुचा, तित कुन्दरु,-बं० । नव्य मत मोमोर्डिका मॅनएडेल्फा Mamordica Mon- आर० एन० खोरी-यह रसायन है और adelpha Rorb., सिफैलैंडा इंडिका Cep- बहुमूत्र, विवृद्ध ग्रंथि ( Enlarged glanhalandra Indica, Naup-ले० । डोंड ds) और व्यंग वा झाँइ (Pityriasis) सीगा, काकी डोंडा-ते । कोवै-ता। रानतोण्डला, श्रादि चर्मरोगों में व्यवहृत होती है। कडु तोण्डली-मरा०, कड़वी घोली -गु० । तोंडे (Vol. 11, P. 307) कोंडे, तीत कुन्दुरु-कना० । कोवा-मल०। भिम्ब उ० चाँ० दत्त-कुंदरू का मूल एवं पत्र -बम्ब० । कुदरू, घोल, कंदूरी-पं० । कबरे हिंदी, स्वरस बहुमूत्र रोग में व्यवस्थित धातु घटित परवल तल्ल-फ्रा० । किम्बेल्-सिंह० । सहराई।। औषधों के अनुपान स्वरूप व्यवहृत होता है।

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