Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 710
________________ [ २ ] मिलने का पता-श्रीहरिहर औषधालय, बरालोकपुर-इटावा यू० पी०। १-राजयक्ष्मा नि० भा. वैद्य सम्मेलन पटना से रौप्य पदक प्राप्त राजयक्ष्मा, (तपेदिक ) जीर्णज्वर, क्षय, थाई ३-मधुमेह सिस, कंझपसन्. टूयवर्क यूलिानम् आदि नामों से मधुमेह (डायावटीज ) का विस्तृत औरखोज सभी परिचय रखते हैं। यह कैसे साधारण आहार | पूर्ण विवेचन वैद्य संसार के प्रसिद्ध स्वर्गीय पं० विहारों की अवहेलना का फल मात्र है। जिसके | परशुरामजीशास्त्री का अद्भुत और ज्ञातव्यविषयों कारण को हम समझने के लिये अबभी तैयारनहीं | से ओत प्रोत निबन्ध है । वैद्यजन इसके कारणों से होते, कितने दुःख की बात है। विद्वानों का कहना कितने अनभिज्ञ है। इसी कारण से वह इसकी है, कि जितने मनुष्य अन्य समस्त रोगों के कारण चिकित्सा में सफल नहीं होते, यह समझाते हुये मरते हैं । उससे कुछ अधिक मनुष्य इस दुष्ट रोग लाक्षणिक चिकित्सा का कैसा सुन्दर चित्रण किया से पीडित होकर मरते हैं। इसलिये यह निबंध | है। जिसे देखते ही लेखक के लिये अपने आप लिखवाने का आर्डर २१ - ग्यालियर सम्मेलन की ही वाह-वाह कह उठेंगे पुस्तक प्रत्येक वैद्यके देखने स्वागत कारिणी ने किया था। उसपर २० वर्ष के चाय । मू०) ४-स्नान चिकित्सा अनुभव पूर्ण खोज से ओत प्रोत वैदिक काल से | पुस्तक क्या है ? गागर में सागर की कहावत लेकर अबतककेइतिहास और चिकित्सा सेपरिपूर्ण को लेखक ने चरितार्थ कर दिया है। इस ग्रन्थ को आयुर्वेदोद्धारक प्रशस्त यशस्वीलेखक ___ जरा पुस्तक की सूची पर तो ध्यान दीजिये विद्वान वैद्य चिकित्सक चूणामणि पं० विश्वेश्वर- इसमें पांचभौतिक चिकित्सा, जलस्नान, मृतस्नान दयाल जी वैद्यराज सम्पादक"अनुभूत योगमाला' । वायुस्नान, ज्योतिस्नान, सूर्यस्नान, अर्थात् समस्त ने लिखा था । जो समस्त आगत निबन्धों में से स्नानों द्वारा शिर की चोटी से पैर की एड़ी तक के प्रथम श्रेणी का चुना गया और इस पर एक समस्त रोगों पर ऐसे २ सरल और अनुभूत उपाय स्वर्णपदक दिया गया इसीलिये यह लागत मात्र स्नानों द्वारा लिखे गये हैं कि जिसे पढ़कर साधामू०) में दिया जाता है। यह इसका दूसरा रण व्यक्ति भी लाभ उठा सकता है। साल में संस्करण है। सैकड़ों हजारों रुपये वैद्यों हकीमों और डाक्टरों नि० भा० २२ वे वैद्य सम्मेलन बीकानेर के लिये लिखी गई . आदि की जेबों में चले जाते हैं। यदि इससे बच२–यकृत प्लीहा के रोग | कर स्वयं घर बैठे लाभ और ख्याति पैदा करना यह पुस्तक भी अपने ढंग की अपूर्व वस्तु है, | चाहते हो तो आज ही मंगवाइये मू०) आना यकृत सीहा क्या वस्तु है। इसका स्थान कहां है। ५-प्लीहा रोग चिकित्सा - किनकिन कारणोंसे बढ़कर कौन २ रोग पैदा होतेहैं। यह पुस्तक अपने ढंग की बड़ी ही अनोखी उसकी क्या चिकित्साएँ हैं। यूनानी. ऐलोपैथी है यह कहने की आवश्यकता नहीं कि यह कितना आयुर्वेदीय निदानों का मतभेद कर मार्मिक तुलना- भयंकर और दुखदाई रोग है इसका अनुभव उन्हीं त्मक विवेचन जो आजतक अन्यत्र कहीं भीदेखने को न मिलेगा वह इसी में मिलेगा, पुस्तक पढ़ने | को होगा जो इस दुष्ट रोग के निन्यानवे के पर आप लेखक के लिये बाह वाह किये बिना चक्कर में जीते जी नरक यातना का दुःख भोग कर नहीं रह सकते । अवश्यमेव प्रत्येकको देखकरलाभ रहे हैं इस पुस्तक में ऐसे २ सिद्ध प्रयोग लिखे उठाना चाहिये । गृहस्थों के सिवा वैद्यों के बड़े गये हैं। जो सैकड़ों बार के अनुभूत हैं। पुस्तक काम की वस्तु है । मू० केवल ।) का मूल्य केवल ।) ही है।

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