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... शब्द संख्या १०५४५
आयुर्वेदीय विश्व-कोष ८५४
(आयुर्वेदीय कोष का तृतीय खण्ड ) An Onoyclopeedical syurvedic Dictionary ( With full details of Ayurvedic, Unani and Allopathicterms. )
अर्थात् श्रायुर्वेद के प्रत्येक अङ्ग प्रत्यङ्ग सम्बन्धी विषय यथा निघण्टु, निदान, रोग-विज्ञान, विकृत-विज्ञान, चिकित्सा-विज्ञान, रसायन-विज्ञान, भौतिक-विज्ञान, कीटाणु-विज्ञान इत्यादि प्रायः सभी विषय के शब्दों एनं उनकी अन्य भाषा (देशी, विदेशी, स्नानीय एवं साधारण बोलचाल) केपर्यायों काविस्तृत व्याख्या सहित अपूर्व संग्रह । व्याख्या में प्राचीन व अर्वाचीन मतों का चिकित्सा-प्रणाली-त्रय के अनुसार तुलनात्मक एवं गवेषणापूर्ण विवेचन किया गया है। इसमें ४००० से अधिक वनस्पतियों, समग्र खनिज एवंचिकित्साकार्य में आनेवाली प्रायः सभी श्राबश्यकप्राणिवर्ग की तथा रासायनिक औषधों के आजतक की शोधों का सर्वाङ्गीन सुन्दर सुबोध एवं प्रामाणिक वर्णन है । इसके सिवा इसमें सभी प्राचीन अर्वाचीन रोगों का विस्तृत निदान चिकित्सादि भी वर्णित है । संक्षेप में आयुर्वेद (यूनानी तथा डाक्टरी) सम्बन्धी कोई भी विषय ऐसा नहीं,चाहे... वह प्राचीनहो या अर्वाचीन जिसका -इसमें समावेश ना हो
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लेखक तथा संकलन-कर्ता - श्री बाबू रामजीतसिंह जी वैद्य श्री बाबू दलजीतसिंह जी वैद्य
रायपुरी चुनार, (यू०पी०)
प्रकाशकJ श्री पं० विश्वेश्वरदयालु जी वैद्यराज
सम्पादक-अनुभूत योगमाला'
बरालोकपुर इटावा, (यू० पी०)
१ म संस्करण, १००० प्रति ) सर्वाधिकार ( मू० सजिल्द ६।) सम्वत् १६६६ वि० तथा सन् १६४२ । प्रकाशकाधीन है (
अजिल्द ५) EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
श्री पं. विश्वेश्वरदयालु जी के प्रबन्ध से श्री हरिहर प्रेस, बरालोकपुर-इटावा में मुद्रित ।