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'वनस्पति-चंद्रोदय' की भूमिका प्रथम भाग पृ० ७ पर
___ग्रंथ के लेखक महाशय लिखते हैं-हर्ष है कि हाल ही में हिन्दी में चुनार-निवासी बाबू रामजीत सिंह और बाबू दलजीत सिंह वैद्य ने महान परिश्रम के साथ एक आयुर्वेदीय विश्व-कोष का प्रणयन प्रारम्भ किया है। इस ग्रंथ के दो भाग निकल चुके हैं । लेख कों ने जिस महान परिश्रम से यह कार्य उठाया है उसे देखकर कहना पड़ता है कि अगर यह प्रथ अंत तक सफलता पूर्वक प्रकाशित हो गया तो राष्ट्र-भाषा हिन्दी के गौरव की पूरी तरह से रक्षा करेगा।
डाक्टर भास्कर गोविंद घाणेकर, बी० एल० सी०, एम. बी. बी. एस. आयुर्वेदाचार्य, प्रोफेसर आयुर्वेद कालेज, हिंदू विश्व
विद्यालय वनारस लिखते है'आयुर्वेदीय कोष का प्रभम विभाग मैंने आद्योपांत देखा । इसके और भी कई भाग निकल चुके हैं । इसका निर्माण करके लेखक द्वय ने वैद्य-समाज के ऊपर अतुल उपकार किया है। यद्यपि ग्रंथ का नाम आयुर्वेदीय कोष है तथापि इसमें आयुर्वेद, युनानी और एलोपैथी इन तीनों चिकित्सा प्रणालियों के सम्पूर्ण विषयों का विवे वन अकारादि क्रम से किया गया है । अर्थात् यह ग्रंथ वैद्यक का ज्ञानकोष है जो लेखक द्वय के अनवरत परिश्रम का फल है । इस प्रकार के एक दो कोष पहले हो चुके हैं। परन्तु उनसे यह कोष अधिक विस्तृत और अधिक उपयोगी है । इसलिये वैद्य महानुभावों से मेरी प्रार्थना है कि वे इस ग्रंथ को खरीद कर अपना ज्ञान बढ़ावें, तथा साहसी लेखक द्वय की उत्साह वृद्धिकर 'एक पंथ दो काज' की कहावत चरिताथ करें।
सुधानिधि नामक आयुर्वेद पत्रिका में उसके यशस्वी संस्थापक और सम्पादक,
इस ग्रंथ की समालोचना करते हुये लिखते हैं"इसमें आयुर्वेदिक विषयों के साथ ही तिब्बी और एलोपैथी सम्बन्धी शब्दो का भा संग्रह किया गया है। आज तक की खोजों का फल भो इसमें देखने को मिलेगा; अनन्नास जैसे बहुत से नवोन पदार्थों का समावेश भी इसमें मिलेगा। ऐसे वृहत्-ग्रंथों में जो धन-राशि लगती है उसक लगाने का साहस कर पंडित विश्वेश्वरदयालु जी ने आयुर्वेदीय जगत का बड़ा उपकार किया है, सबसे अधिक धन्यगद तो इसके संकलनकर्ता चुनार-निवासी बाबू रामजीतसिंह जी वैद्य और बाबू दलजीतसिंह जी वैद्य को है, जिन्होंने वर्षों परिश्रम कर और जंगल पहाड़ों की खाक छानकर तथा रसायन, भौतिक विज्ञान, जन्तुशास्त्र, वनस्पति शास्त्र, शरीरशास्त्र, द्रव्यगुण शास्त्र, शरीर क्रिया विज्ञान, शवच्छेद, औषध निर्माण, प्रसूतिशास्त्र, ब्यवहार-आयुर्वद, स्त्री-रोग, वालरोग, विषतंत्र आदि के ग्रंथों का आलोचन कर शब्द-संग्रह और उनका अर्थ दिया है। कहीं-कहीं आवश्यक विशद ब्याख्या कर ग्रंथ का महत्व बढ़ा दिया गया है । वैद्यों को इससे अच्छी सहायता मिलेगी।"