Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 11
________________ [ छ ] सम्पादक 'आयर्वेद संदेश' लाहौर ( १५ सितम्बर १९३४ ई. ) के अङ्क में लिखते हैं "यह कोष अपनी पद्धति का पहिला ही कोष है, जिसमें वैद्यक, यूनानी और एलोपैथी में प्रयुक्त शब्दों के न केवल अथ दिये गये हैं, वरन सम्पूर्ण सर्व मतानुसार व्याख्या की गई है. यथा अश्वगंधा की व्याख्या ५ पृष्ठों में समाप्त की गई है । अर्थात् अस्वगंधा का स्वरूप, पर्याय, अंग्रेजी नाम वानस्पतिक वर्णन, उत्पत्ति स्थान, आकृति, प्रसिद्ध-प्रसिद्ध याग तथा अश्वगंधारिष्ट, अश्वगंधा पाक, अश्वगंधा चूर्ण, अश्वगधा घृतादि, मात्रा, गुण, अनुपानादि सहित एव भिन्न-भिन्न द्रव्यों का शारीरिक रोगों पर सर्वमतानुसार अच्छा प्रकाश डाला गया है, जिससे पाठक पर्याप्त ज्योति प्राप्त कर सकते हैं। इस विस्तृत व्याख्या के कारण ही कोष के प्रथम भाग में जो ६०० पृष्ठों में विभक्त है, १०२२५ शब्दोंका वर्णन है । इस भाग में अनुक्रमणिकानुसार अभी तक 'क' अक्षर की भी समाप्ति नहीं हुई। यदि इसी शैली का अनुकरण अगले भागों में भी किया गया, तो कई भागों में समाप्त होगा। पुस्तक का आकार चरक तुल्य २२४२६-- पेजी है। इसे आयुर्वेद का "महाकोष” समझना चाहिये । संपादक-'आरोग्यदर्पण' अहमदाबाद, जनवरी सन् १९३५ ई० के अंक में लिखते हैं "यह आयुर्वेद का एक अभूत पूर्व महान् कोष है, जो दीर्घ अध्ययन और परिश्रम के पश्चात् लिखा गया है । इस भाग में 'अ' से अज्ञातयक्ष्मा' तक के शब्दों का संग्रह किया है। इस में आयुर्वेद की सभी शाखाओं से सम्बन्ध रखने वाले शब्दों का संग्रह है और शब्दों का केबल अर्थ ही नहीं किया गया, बल्कि विस्तृत विवेचन किया गया है । बास्तव में इसे 'शब्द-कोष' नहीं. 'विश्व कोष' कहना चाहिये और कोष की भांति नहीं, साहित्य ग्रन्थों की भांति पढ़ना चाहिये ! इसमें केवल प्राचीन वैद्यक (भारतीयायुर्वेद ) के ही नहीं, अपितु यूनानी और डाक्टरी के शब्दों को भी संग्रहीत किया गया है। हम इस कोष का हृदय से स्वागत करते हैं और प्रत्येक आयुर्वेद प्रेमी से प्रार्थना करते हैं कि वह इस की एक एक प्रति अवश्य खरीद कर लेखकों और प्रकाशक का उत्साह बड़ावे । यह कोष आयुर्वेद के छोटे से छोटे बिद्यार्थी से लेकर दिग्गज पंडितों तक के लिये भी उपयोगी है। हम इस कोष को इतना उपयोगी समझते है, कि इमे आयुर्वेदिक साहित्य में एक उज्वल रत्न कहने में संकोच नहीं होता। 8. R. चौबे फरुखाबाद, लिनते है"आयुर्वेदीय-कोष" को देख हृदय को अति ही प्रसन्नता हुई। संकलन-कर्ता और प्रकाशक दोनों धन्यबाद के पात्र हैं।" देखिए "स्वराज्य" खडवा, ११ जून सन् १९३५ की संख्या ४१ में अपने कैसे जोरदार उद्गार प्रगट करता है। ___ "इस विषय में आजकल जितने भी ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं, उनमें प्रस्तुत 'आयुर्वेदीय कोष' को ऊँचा स्थान मिलना चाहिये। ग्रन्थकारों ने इस कोष के संकलन में जो परिश्रम किया है, वह सर्वथा प्रशंसनीय है।"

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