Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 8
________________ "आयुर्वेदीय विश्व-कोष" के द्वितीय खण्ड के संबन्ध में आरोग्य-दर्पण के संपादक लिखते हैं"इसमें अंक शब्द से लेकर एक्सटै क्टम् "शव्द तक चिकित्सा-विज्ञान में व्यवहृत शब्दों की ब्याख्या की गई है । प्रायः चिकित्सा सम्बन्धी सभी शाखाओं के शब्दों का संकलन अकारादि क्रम से किया गया है और उनकी व्याख्या विस्तृतरूप से की है। आयुर्वेद, यूनानी और डाक्टरी के अनेक विषयों की जानकारी जितनी इस ग्रंथ से हो सकती है उतनी किसी अन्य से नहीं हो सकता। इस ग्रंथ के लेखक और प्रकाशक समस्त वैद्य-समाज के धन्यवाद के पात्र हैं। प्रत्येक वैद्य और वैद्यक संस्था को इसे अवश्य मंगाना चाहिये । यदि वेद्य-समाज उत्साह-वर्द्धन न करे, तो फिर आयुर्वेदीय साहित्य ऐसे ग्रथों से शून्य ही रहेगा। पुस्तक के आकार और उपयोगिता को देखते हुये मूल्य भी उचित ही है। वैद्यरत्न कविराज प्रतापसिंह, प्राणाचार्य, रसायनाचार्य, प्रोफेसर और सुपरिनटेन्डेन्ट ___ आयुर्वेद-कालेज हिंदू विश्व विद्यालय बनारस लिखते हैं "आयुर्वेदीय विश्व-कोष" का द्वितीय भाग अवलोकन किया। यह कोष आयुर्वेद चिकित्सा व्यवसायियों के लिये उपादेय है। विविध प्रकार के चिकित्सा सम्बन्धी-विषयों का संकलन बड़े परिश्रम और अनुसंधान के साथ किया गया है। आशा है बैद्य-समाज इस ग्रंथ रत्न को अपनाकर संकलयिताओं का उत्साह परिवर्धन करेंगे। कलकत्ता के 'जर्नल आफ आयुर्वेद' पत्र के संपादक लिखते हैं In 'Ayurvediya. Vishwa-Kosh' by Babus Ramjit Singh and Daljit Singh ji Vaidya, published from Anubhut Yogmala Office, Baralokpnr Etawah (U. P.), the joint authors have employed monumental labourg in compiling an encyclopoedic dictionary of Ayurve dic literature. Such books are really precious additions to this wealth of Ayurvedic culture, embracing a wide range of comprehensive study. The authors deserve congratulations for the gigantic ventre they have embarked upon, and the first two volsmes that have al ready seen light well justify the high hope thatthe subsequent parts completing the colossal task will, by its successful fulfilment, largely help to facilitate the cultivation of Ayurvedic lore in these days of our sastras. Renaissance couched in the rashtra bhasha of Hindustani the 'kosh' will be of all India utility. Kaviraj M. K. Mukherjee B. A. Ayurvedshastri Journal of Ayurved Calcutta

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