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[ ख ] फिर भी यह नहीं मिल रहा है, इसका सारा जवाब वैद्य समाज एवं आयुर्वेद प्रेमियों पर है, किसी भी क्षेत्र में देखिये कोई भी नवीन साहित्य प्रकाशित होते ही चट समाप्त हो जाताहै, इसका कारण यही है कि उन २ क्षेत्रों के विद्वान उस नवीन साहित्य को पढ़ने की रुचि रखते हैं और खर्च कर अपने ज्ञान की वृद्धि करना चाहते हैं, परन्तु आयुर्वेद क्षेत्र में यह गति विधि नहीं, वेद्य बन्धु अपने ज्ञान की वृद्धि ही नहीं चाहते, वह तो लकीर के फकीर बने रहने में मस्त हैं। वह तो शाङ्गधर, माधव निदान को ही पर्याप्तसमझ दो रुपये मूल्य की पुस्तकोंसे ही पूरे वैद्य राज बनने को तयारहैं, इसके अलावा वह कुछ नवीनता अपने में लाने को तयार नहीं हैं। यदि ऐसा साहित्य अंग्रेजी में निकलता तो कई गुनी कीमत होनेपरभी आज कई संस्करणों में विभाजित हो गया होता, अंग्रेजी साहित्यकी आजकल कदर है, अंग्रेजी पढ़े साहित्य प्रेमी हैं, वह अपने को नवीन २ ज्ञानों से पूर्ण देखना चाहते,तभी वह साहित्य आज सबसे उच्च है। जब तक ऐसी भावना वैद्य समाज में नहीं होती, तब तक इसका साहित्यक क्षेत्र पूर्णतया बढ़ नहीं सकता और न वैद्य ही पूर्ण ज्ञानयुक्त हो सकते हैं । यह कोष कितना उपयोगी है, वैद्यों को इससे कितना लाभ होगा, यह बात तो आपने विद्वानों के द्वारा ही सुनी होगी इसकी छपी हुई आलोचकाओं में। सहयोगियों की भाषा में भी सुनिये, वनौषधि चंद्रोदयकार अपनी भूमिका में लिखते हैं। लेखकों ने जिस महान परिश्रम से यह कार्य उठाया है उसे देखकर कहना पड़ता है कि अगर यह ग्रंथ अंत तक सफलता पूर्वक प्रकाशित हो गया तो राष्ट्र भाषा हिन्दी के गौरव को पूरी तरह से रक्षा करेगा, यह ग्रन्थ अनुपम होगा इसमें संदेह नहीं।
-चंद्रराज भंडारी इतना होने पर भा हमने पृष्ट संख्या, विषय की उत्तमता में और मूल्य की स्वल्पता में क्रांति की है, अब तक का कोई भी प्रकाशन इतने कम मूल्य का देखने पर भी न मिलेगा, अब तक के सभी कोष केवल वनौषधि गुण प्रदर्शक ही है। परन्तु इस कोष में और भी कई विशेषतायें हैं, शरीर, खनिज, भौतिक, विज्ञान के सिवाय निघण्टु, चिकित्सा प्रसिद्ध योगसंग्रह इसकी अनुपम देन है । परन्तु हम तो लागत मूल्य में ही देने को तयार थे ताकि थोड़े दाम में ही लैंग इसका संग्रह कर लाभसे वंचित न रह जाय । सच पूछिये तो यह कोष पृष्ट संख्या में, विषय की उत्तमता एठां नवीनता में, मूल्य की न्यूनता में संसार में क्रांति स्थापित कर रहा है आज तक कोई भी पुस्तक इतनी उपादेय दड़ने पर भी न मिलेगी फिर भी कोष के लिये ऐसा प्रमाद क्या समाज को शोभा देता है। और कई विशेषतायें भी हैं परन्तु हमारे पास प्रोपेगण्डा करने का समय नहीं है पूर्ण ज्ञान के लिये आपको अन्य कोषों के होते हुये भी इस कोष से ही पर्याप्त सहायता लेना होगी। इसके प्रकाशन की देरी आपके जिम्मे ही है आप ही उसके जबाबदार हैं। यदि इसी प्रकार की शिथिलता रही तो संभव है कोष पूर्ण भी न हो सके इसीलिये दया करके प्रत्येक वैद्य बन्धु को इसकी एक २ प्रति अवश्य खरीदना चाहिये और अपने जाने हुये मित्र वैद्यों को भी ग्राहक बनाकर इसकी बिक्री बढ़ाने की दया करनी चाहिये, ताकि कोष जल्द से जल्द पूर्ण हो आयुर्वेद क्षेत्र में चमत्कार प्रदर्शित करने में सफलता प्राप्त करें। हमारा जो कर्तव्य था हमने पूर्ण किया अब आपका कर्तव्य है उसे जिस प्रकार चाहें पूर्ण करें सारी व्यवस्था आपके सामने है। भगवान इच्छा पूर्ण करे यही कामना है।
ऐसे उपयोगी प्रकाशनों के लिये धनी मानी, राजा, रईस भी सहायता प्रदान करतेहैं अत: वैद्यों को इस तरफ भी ध्यान देकर सहायता दलाकर इस कार्य को पूर्ण करने में हमें सहयोग देना या दिलाना चाहिये ताकि यह कार्य पूरा हो जाय ।
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