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कुंदरू प्राबलों पर इसके पत्तों को बाँधते हैं या उनका | चर्म पर मसूरिका (Small-pox ) जैसे दाने लेप करते हैं।
निकलने परभी इसके पत्ते लगाये जाते हैं ।सूज़ाक __ इसके पत्तों का खालिस रस पूयमेही को में साधारणतया इसके पौधे के टिंकचर का अंतः पिलाते हैं।
प्रयोग होता है । जानवरों के काटे हुये स्थान पर जिह्वा के ऊपर के क्षत मिटाने के लिये इसके पत्ती का ताजा रस लगाया जाता है। ज्वरों में हरे फल चूसते हैं।
पसीना लाने के लिये भी शरीर पर इसे लगाते किसी किसी वैद्यकीय ग्रंथ में उल्लिखित है हैं। कहते हैं कि फुफ्फुस प्रणालीय नज़ला कि, पका फल ,वायु और पित्त का नाश करता है; ( Bronchial catarrh) और कास शनि प्रदान करता है; चित्त को प्रफुल्लित रखता ( Bronchitis ) में इसके कांड और पत्ते का है; पैत्तिक वाष्प (अबख़रः) का निवारण करता काढा उपयोगी होता है। दद् . विचर्चिका है; नेत्रगत पीतवर्णता का नाश करता है और ( Psariasis) और कंडू में इसकी पत्तियों भूख बढ़ाता है। इसकी जड़ सारक है।
को तिल तैल (Gingellyoil ) में उबाल __ इसके पत्ते फोड़े-फुसी, कामला और श्लेष्मा कर लगाते हैं। क्षतों ( Ulors) पर लगाने के को लाभकारी हैं।
लिये तथा पुरातन नाड़ी व्रणों (Sinuses) गोघृत (रोग़ान जर्द) में जलाकर व्रण पर
में पिचकारी करने के लिये भी उक्त तेल का उपलगाने से शुद्ध मांसरोहण होता है । (ख. प्र.)
योग करते हैं।
(ई. मे० मे० पृ० १८६) नव्यमत
श्रार० एन० चोपरा, एम. डी.-मधुमेह ऐन्सली-दक्षिणात्य भारत में इसके उपयोग ( Diabetes mellitus ) afça itirat का उल्लेख करते हैं। उनके कथनानुसार विषधर की मूत्रगत शर्करा की मात्रा घटाने में दृष्टफल प्राणी द्वारा दुष्ट रोगी को इसकी पत्ती का स्वरस
होने के लिये बंग देश में कंदूरी की बेल सुवि. पीने और दष्ट स्थान पर प्रलेपनार्थ प्रयोग करते हैं। ख्यात है। किसो किसो ने तो इन्स्शुलीन ( In
मुहयुद्दीन शरीफ के अनुसार दक्षिणात्य sulin ) की भारतीय प्रतिनिधि तक लिख भारतीय बाजारों में इसकी जड़ कबर मूल डाला है। कलकत्ते के चिकित्सकों में मधुमेह (Caper root)की प्रतिनिधि स्वरूप विक्रय
(Glycosuria) में इसकी उपादेयता के होती है।
प्रति अटल विश्वास पाया जाता है। कलकत्ता के ज्वर में स्वेद लाने के लिये कोंकण में इसकी मेडिकल कॉलेज आतुराक्षय में समाविष्ट मधुमेह जड़ को इसके पत्रस्वरस ..में पीसकर रोगी के पीड़ित कतिपय शस्त्रसाध्य रोगियों पर इसके हरे सम्पूर्ण शरीर पर लेप करते हैं और जिह्वा के पौधे के रस की परीक्षा की गई और उनपर यह ऊपर के क्षतों के निवारणार्थ इसके हरेफल चबाते
दृष्ट फलप्रद सिद्ध हुश्रा। कहते हैं कि इससे हैं। (फा० ई०२ भ० पृ०८६)
शर्करा की मात्रा बहुत घट गई और किसी किसी नादकर्णी-प्रभाव-यह रसायन है । शुष्क रोगी में तो सम्यक विलुप्त प्राय हो गई। कहते त्वक उत्तम विरेचक है। पत्र और कांड प्राक्षेपहर हैं कि इससे भी बहुत वर्ष पूर्व मेडिकल कॉलेज और कफ निःसारक हैं।
के औषध-गुण-धर्म परीक्षण विभाग में उक्त मयिक प्रयोग-जड़ का ताजा रस बहुमूत्र
औषध को परीक्षा की गई थी और कतिपय ( Diabetes ), विवृद्ध वा सूजी हुई ग्रंथियों
प्रयोगात्मक कार्य भी किये गये थे परंतु प्रकाशित और व्यंग वा झाँई ( Pityriasis) सदृश साहित्य में उक्त कार्य विषयक परिणाम अब चर्म रोगों में व्यवहृतहोता है। चर्म रोगों और अप्राप्य हैं। पतों पर घी में मिला कर इसकी पत्तो का लेप मधुमेह रोग में इस औषधि के उपयोगी होने करते हैं।
का विश्वास आयुर्वेदिक चिकित्सकों में प्राचीन