Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 705
________________ कंदूरी की बेल २४३७ N इसकी मात्रा एक तोला ( १८० ग्रेन ) दैनिक प्रातःकाल है । डॉक्टर उदय चाँद लिखते हैं कि इसके व्यवहार से अनेक बहुमूत्र रोगी उपकृत हो चुके हैं। इनके मत से इसकी जड़ का निकाला 'हुश्रा ताजा रस १ तो० वंगेश्वर या सोमनाथ रस की १ गोली के साथ प्रतिदिन दिया जाना चाहिये । बेलफोर - चर्मगत विस्फोटकों पर इसकी पत्ती का बहिः प्रयोग होता है और सूजाक में इसकी समग्र बेल प्रांतरिक रूप से उपयोग में श्राती है । अष्टांगयुर्वेदिक कालेज के निर्माता यामिनी भूषण मधुमेह रोग में इसका उपयोग किया करते थे । उनका कथन है कि इसका ताजा रस १-३ श्रींस की मात्रा में प्रतिदिन प्रातः काल लेना चाहिये । इसकी जड़ की छाल का चूर्ण दो माशा फाँकने से खूब दस्त आते हैं । कंदूरी की बेल - संज्ञा स्त्री० [हिं० ] कुँ दरू | त्रिंबा | कंदूल - [ मरा० ] गुलू | कुलू करै 1 दूल - [ ० ] कायफल । कंदे अस्करी-[ अ० कंदे अस्वद - [ ० ] गुड़ । कंदे पारसी - [ ० ] एक प्रकार का उत्तम कंद | कंदेइ - [पं० ] स्वादु कंटक | कंदेव- संज्ञा पु ं० [देश० ] पुन्नाग वा सुलताना चंपा की जाति का एक वृक्ष | यह उत्तरीय और पूर्वीय बंगाल में होता है । एक प्रकार का कंद लतीफ़ है । ० ] मिस्त्री । कंदे स्याह - [ फ्रा० ] गुड़ | दे सुफेद - [ कंदे सुपेद - [ फ्रा० ] मिस्त्री । कंदोज़ -[ तु० ] एक प्रकार का जानवर जिसकी श्राँड़ियाँ जु' दबेदस्तर कहलाती हैं। गंधबिलाव । मुश्क बिलाई । दोल - [ ० ] कायफल का पेड़ ( क़ामूस ) । बुर्हान में 'किंदोल' लिखा है और उसके अनुसार यह रूसी भाषा का शब्द है । मख़्जन और मुहीत में जो इसे 'कंद्रावल' लिखा है । वह शुद्ध ज्ञात कंबी होता है । जाम इब्नबेतार में इसका उल्लेख पाया जाता है। क़दैङ्ग -[ ता० ] धुंधुल । कंद्राविका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] सोंचर नमक । कंधरा संज्ञा पु ं० [सं० स्त्री० ] ग्रीवा । गर्दन | कंधा - संज्ञा पुं० [सं० स्कंध, प्रा० कंध ] ( १ ) मनुष्य के शरीर का वह भाग जो गले और मोढ़े के बीच में है । ( २ ) मोढ़ा | बाहुमूल । ( ३ ) बैल की गर्दन का वह ऊपरी भाग जिस पर जुश्रा रक्खा जाता 1 कंवारी- वि० [हिं० कंधार उत्पन्न हुआ हो | कंधार का । संज्ञा पुं० ( १ ) एक प्रकार का हींग | दे० जो कंधार देश में " हींग" । ( २ ) घोड़े की एक जाति जो कंधार देश में होती है । संज्ञा स्त्री० [सं० कन्थारी ] कंथारी दे० 'कन्थारी" । कंधि - संज्ञा स्त्री० [सं० 1 ग्रीवा । गर्दन | 1 कंतु [ते] गूह बबून गूकीकर | विट्खदिर । कंफेर - [ जर कपूर । :- [अ०] ] बेद का ख़ुशा । कंबठ - [ म० ] कैथ | कंबल - संज्ञा ० दे० "कम्बल” | कंबलि-चेहु -[ ते० ] शहतूत | कंबलि- बूचि चेट्टु -[ ते० ] शहतूत | बलि-पूचि - चेड - [ ता०] Moras Indica, Linn. शहतूत । तूत | कंबलु - [ सिंगा० ] वागाधूव (बम्ब० ) । कंबानि - संज्ञा स्त्री० [?] कासनी ! कंबार - [ श्र० ] नारियल के रेशे की रस्सी । कंबारी - संज्ञा स्त्री० [देश० ] गंभारी । कमहार | कंब - [ ना० ] डिकामाली । कंबल - संज्ञा पुं० [देश० ] कमीला । कंबल - पूच - [ ० ] त । कंबी - [पं० हिं० ] कटेर । गनियार । गलगल ।

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