________________
कदूरी
२४३२
Late
पचकोनी होती हैं और रंग के काम में आती हैं। यह बरसात में उगती और फलती फूलती है। यह फल पकांत होती है। प्रति वर्ष इसकी पुरानी
जड़ से नई बेल उगती है। इसमें सफ़ेद फूल । लगते हैं। फल परवल की तरह, किंतु उससे
छोटा अर्थात् लगभग २-२॥ इंच लंबा और एक इंच व्यास का मांसल, वेलनाकार, मसृण और कच्चे पर हरे रंग का होता है और उसके ऊपर लंबाई के रुख थोड़ी-थोड़ी दूर पर लगभग दस धारियाँ पड़ी होती हैं। यह अत्यन्त कडा होता है । परन्तु आरोपित कुंदरू में उक्त , कड़ाहट नहीं होती है, केवल जंगली वा स्वयंभू | क्रिस्म में ही उक्त कटुता पाई जाती है। आरोपित कुंदरू मीठा होता है और तरकारी के काम आता | है । पकने पर दोनों प्रकार के कुंदरू गंभीर रन | वा अरुण वर्णके और मीठे हो जाते तथा अस्फुटन | शील ( Indehiscont) होते हैं । इनमें बहु-| संख्यक बीज भरे होते हैं। बीज कागजी नीबू के बीज की तरह होता है। ये फल पकने पर बहुत लाल होते हैं, इसीसे कवि लोग अोठों की उपमा इनसे देते हैं। इसी भाव को लेकर ही इसकी 'पोष्ठोपमफला, बिम्बोष्ठ' प्रभृति संस्कृत संज्ञाएँ बनी हैं। जड़ लंबी शंक्वाकार कंदमूल होती है। किंतु पथरीली भूमिमें उगनेपर यह प्रायः वक्र और ग्रंथिल आदि विरूपाकुति की हो जाती है। यह बहुवर्षीय होती है और प्रायः बढ़ कर बहुत बड़ी हो जाती है। किंतु जंगली पौधे में शीर्ष (Crowr) के ठीक नीचे के स्थूल भाग का औसत व्यास १ से २ इंच होता है । बाहर से यह पांडु पीताभ धूसर वर्ण की होती है, जिसके ऊपर अप्रशस्त वृत्ताकार झुर्रियाँ (Constri ctions) और दीर्घाकार नालियाँ पड़ी होती हैं। इसका व्यत्यस्त काट (Transuerse section ) atat clare att ( Medullary rays) स्पष्ट दृग्गोचर होते हैं । काटने पर इसमें से एक प्रकार की स्वच्छ कर्कटी गंधी (Cucumber odour ) रस स्रावित होता है जो सूखने पर निर्यासवत् जान पड़ता है। जड़ स्वाद में अन्ल और कषाय होती है, पर कहु प्राहट से सर्वथा खाली नहीं होती है।
प-०-बिम्बी, रक्रफला, तुण्डी, तुण्डिकेर (श०) फला, श्रोष्ठोपम फला, गोह्रा (कोष्णा), पीलुपर्णी, तुण्डिका (ध० नि०), मधुर बिम्बी, बिम्बिका, मधु बिम्बी, स्वाद तुरिडका, तुण्डी, रक्कफला, रुचिरफला, सोष्णफला, पीलुपर्णी (रा०नि०), बिम्बी, रक्तफला,तुण्डी, तुण्डिकेरी, बिम्बिका, श्रोष्ठोपमफला, पीलुपर्णी (भा०) श्रोष्ठभा, प्रोष्ठफला, धीहर (द्रव्यनामक) दन्तच्छदा (मद०) रक्तपीतफला (गण) विद् मफला, तुण्डिकेरिका, विद्रु मवाक् (केय. दे०), छर्दिन्योष्ठी, बिम्बिका (शोढ़ल ) श्रोष्ठी, कर्मकरी, तुण्डिकेरिका, तुण्डिकेरि, झुण्डिकेशी, बिम्बा, बिम्बक, कम्बजा, दन्तच्छदोपमा, गोही, छर्दिनी, तुण्डिकेरिफला; तुण्डिकेरीफला, कुन्दुरुलता, मधुरबिम्बी, तुण्डिकशी, तुण्डिकेरी-सं० । कन्दूरी, कुन्दुरी, गुलकाँख, कुनरू, कुदरू, मीठा कुंदरू-हिं० । कुन्दुरुकि, कुन्दरकी-बं० तोडलीमरा०। टोडोरी-गु०।-कोकसिनिया इंडिका Coccinia Indica, W. -ले। कुंदुरी-मरा।
कुष्माण्ड वर्ग (N. 0. Cucurbitacece.) उत्पत्ति स्थान-समस्त भारतवर्ष । बंगाल और भारतवर्ष के अनेक भागों में बाहुल्यता से यह जंगली होती है। बरई (तमोली) प्रायः अपने पान के भीटों पर परवल की तरह इसकी बेल भी चढ़ाते हैं।
औषधार्थ व्यवहार-पत्र, मूल, फल और स्वक् ( bark)
रासायनिक संघटन-जड़ में राल होती है जो काष्टिक सोडा और अमाइलिक एलकोहल में विलेय होती है । इसके सिवा इसमें एक क्षारोद, श्वेतसार, शर्करा, निर्यास, वसामय पदार्थ, एक सैन्द्रियकाम्ल (Organic acid) और १६% मैंगोनीज शून्य भस्म होती है ।
(ई० मे० मे० पृ० १८६) आर० एन० चोपड़ाके अनुसार इसमें एक एन्जाइम् (Enzyme), एक हार्मोन ( Harmone) और एक क्षारोद के चिह्न पाये जाते हैं