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• कथारिडीस
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कंदमूल
कथारिडीस-संज्ञा स्त्री० [अ०] तेलनी मक्खी। कंदफ़ोर-[गंदापीर का अरबीकृत ] बहुत बुड्ढा । कैंधेरीडोज़ ।
__ अत्यन्त वृद्ध । कंथिमि-[बर० ] सफ़ेद मुसली ।
कदबाक़ली-[?] ब्रस्तियाज । कंथान-[पं० ] लघुनी (अफ़्र.)।
कद मीरुग मिरत्तम बेंगै-[ ता० ] विजयसार । कंथाल-संज्ञा पुं० [५० ] कटहल । पनस । कंद मुकर्रर-[फा०] (१) सान की हुई शर्करा। नंद:-[१०] कंद । खाँड़।
चीनी । कंद दो-बारा । (२) अब्लूजकन ताम । कंद-संज्ञा पुं० [सं० कन्दः ] दे॰ "कन्द”।
(बुहान काति)।(३) भोले का लड्डु । संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक जड़ जो कटहल के | कन्दमूल-संज्ञा पु० [सं० क्री०] (1) एक लता बराबर होती और मालग के पर्वतों पर उपजती जिसकी जड़ में से कंद निकलता है और खाया है। उस देश के लोगों का कहना है कि यह जाता है । इसकी बेल चौमासे के प्रारम्भ में पुराने चोपचीनी की अपेक्षा अधिक गुणकारी है और वे कन्द से विन्ध्यादि पर्वतों पर निकलती है। इसे उसी की भाँति सेवन भी करते हैं। २-३ प्रारम्भ में निकलनेवाला तना पत्रशून्य सूक्ष्म माशे इसको बुकनी मिस्री मिला सुहाते गरम रोमावत ताँबड़े रंग का होता है। दो या तीन पानी के साथ इक्कीस वा चालीस दिवस पर्यंत फुट बढ़ जाने के उपरांत तना के पार्श्व से पत्तियाँ फाँकते हैं। हरी तरकारी ओर लवण इसके सेवन निकलने लगती हैं। साथ ही उस पर नन्हें नन्हें काल में वर्जित हैं। यह चोपचीनी की भाँति कड़ी कोमल काँटे भी निकल आते हैं। छः सात दिन नहीं होती।
के बाद पत्तियों का पूरा रूप प्रगट हो जाता है । ___ संज्ञा पुं० [अ० कंद] (1) एक प्रकार वह डंठल जिसमें पत्तियाँ लगी रहती हैं, पौने पाँच की शर्करा । कंद की शकर । शकर का नाम । इंच के लगभग लंबा होता है और उसमें ४-५
नोट-तफ्राइसुल्लुगात श्रादि में तबरज़द सूचम सरल वा कुछ वक्राकार कटक होते हैं। का जाम बताया है और कनूद इसका बहुवचन डंठल के ऊपरी सिरे पर पृथक् पृथक पाँच सवृंत लिखा है। शकर तवरज़द। बहरुल जवाहिर के पान के पत्ते सदृश पत्र लगते हैं। पत्तियों का
अनुसार यह गन्ने का उसारा है । (२) गुड़ । प्रारम्भिक भाग संकुचित और भागे क्रमश: चौड़ा कंद ओल-[ ? सूरन । शूरण । जिमीकंद ।
होता हुआअंडाकार और छोरपर नुकीला हो जाता कंद की शक्कर-[द.] (Loaf sugar ) कंद । है ।पत्तियों ऊर्ध्वाधः पृष्ठ सूक्ष्माति सूक्ष्म रोमों से कंद कोरी-[?] जुन्दबेदस्तर ।
व्याप्त होता है जिनका स्पर्श हाथों को भली भाँति कंद खाम-[अ.] खुश्क कंद ।
अनुभूत होता है । इसके डंठल में कभी कभी छः क़द गड-[ते० ] घेट कचु ।
पत्तियाँ भी देखी गई हैं; पर बहुत कम । इसका कद गिलोय-संज्ञा [सं० कन्द+हि. गिलोय ] एक तना जब तीन-चार मास का हो जाता है, तब ___ प्रकार का गिलोय । कन्द गुडूची ।
इसके रोंगटे सूख जाते हैं और तने का रंग सफेद क'द गुडूची-संज्ञा स्त्री॰ [सं० स्त्री.] एक प्रकार मालूम पड़ता है। हरा तना अत्यंत चिमटा होता ___ का गुरुच । कदोद्भवा गुड़ ची।
है और यह कठिनता से टूटता है । तने का स्वाद कदङ्गारी-[ मल०] किरनी । बालुसु । ( Canth- फीका और लबाबदार होता है। इसकी पत्तियाँ
iam parviflorium, Lamk.) भी स्वाद में फोकी और किंचित् पिच्छिलता युक्त कदज़, क दोज़-[तु०] एक जानवर जिसके अंडों होती है। इसकी पत्तियों के बीच में पत्तियों के ___ को "जुन्दबेदस्तर" कहते हैं । खटासी ।
नस का एक लम्बा दरार होता है । उसके अगल कदत-[ ? ] कंद ।
बगल पाठ-नौ नसें तिर्थी लगी रहती हैं। पत्तियाँ कदतुरुकाअ-[अ०] एक प्रकार का खजूर । देखने में सेमल वा सप्तपर्ण से मिलती-जुलती कंद दोबारा-[१०] कंद मुकर्रर ।
होती हैं । जब जाड़े के दिनों में इसकी जड़ खोदी कदन कत्तिरि-(ता. ] छोटी कटाई । भटकटैया। । जाती है, तब उसके नीचे से कंद निकलता है।