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कहरुवा २४०२
कहरुवा है-"हृदय उल्लास एवं शक्ति प्रदान करता और | मवाद गिरने को रोकता हृदय एवं भामाशय को खफकान को नष्ट करता है।" इसको महीन बल प्रदान करता और उल्लासप्रद है तथा यह नेत्र पीसकर बुरकने से व्रण पूरण होता है । यह प्रामा- रोग प्रामाशयिक अतिसार, खफकान, अर्श, प्रवाशय, यकृत और मूत्रप्रणालियों को शक्ति प्रदान हिका, संग्रहणी और मूत्र की जलन-कड़क में करता है तथा वृक्क एवं वस्ति की निर्बलता और
उपकार करता है। लटकाने से यह गर्भ की रक्षा कामला को कल्याणप्रद है । अग्निदग्ध पर इसका
करता है।
--मु. ना. चूर्ण मिलाकर लगाने से उपकार होता है । इसे
नोट-यूनानी पद्धति में सेवन करने वा योगों पास रखने से गर्भवती के गर्भ की रक्षा होती है। में डालने से पूर्व कहरुबा को इस प्रकार जला उन व्याधियों में जिनमें रक्तस्राव होता हो, जैसे लेते (इहराक करते) हैं-- रक्त निष्ठीवन, रनवमन, रक्तार्श और प्रतिरज आदि ___कहरुबा को बारीक करके या इसके छोटे छोटे में इसकी टिकिया का योग अतीव गुणकारी सिद्ध टुकड़े कर मिट्टी के सकोरे में रखकर अच्छी तरह हुआ है। तात्पर्य रक स्तम्भन का यह एक मुख, बन्द करदें; फिर इसे कपड़ मिट्टी कर सुखा सामान्य नुसखा है। इसी प्रकार का एक योग
लें और रात को तन्दूर में रखें । प्रातःकाल यह है
निकाल कर बारीक खरल करके काम में लाएँ। ___कहरुवा, बबूल का गोंद, निशास्ता, कतीरा, कहरुबा बिना जलाये भी उपयोग किया मग्ज तुह्म खियारैन, (खीरे के बीज ) मग्ज तुह्म
जाता है। कडू (कद्दू के बीज ) प्रत्येक १०॥ मा०, गुलनार, कामिलुस्सिनाश्रत में लिखा है कि कोरे कूजे अकाकिया प्रत्येक श माशे, इनको कूट छानकर में बंद करके और गिले हुर्र अर्थात् शुद्ध मिट्टी की इसबगोल के लुबाब में मिला टिकिया बना लें। कपरौटी कर ऐसे तनूर में रात्रि भर रखे. जिसमें पाँच से सात माशे तक की मात्रा कहरुबा श्रामा- रोटियाँ पकाई गई हों और वह गरम हो । प्रातः शय को शक्ति देने की प्रवल शक्ति रखता है।
काल निकाल ले। . - एलुमा के साथ इसे बवासीर के मस्सों पर लेप
एलोपैथी के मतानुसार सक्सीनम् ( Succiकरने से वे गिर जाते हैं।
num | वा अंबर (Amber ) सुप्रसिद्ध अग्नि वा उष्ण जल द्वारा दग्ध स्थल पर इसे राल विशेष (Tossil resin ) है, जिससे पानी में पीसकर लेप करने से उपकार होता है । विनाशक स्रवण विधि ( Destructive किसी अवयव में चोट लग जाने पर २ माशे कह
Disti uation ) द्वारा प्रालियम् सक्सिनी रुबा गुलाब जल के साथ खाने और लगाने से
(Oleam Succini ) नामक एक उड़नकल्याण होता है।
शोल तैल प्राप्त होता है । मृगी, योषापस्मार और इसे हब्बुल श्रास के साथ पीसकर लगाने से
श्वास रोग में इसे पांच बूदों की मात्रा में बर्तते निर्बल मनुष्य का स्वेद अवरुद्ध होजाता है।
हैं । संधिवात उपशमनोपयोगी अनेकानेक प्रकार इसके लटकाने से गर्भवती के गर्भ की रक्षा की अभ्यंगौषधों का यह एक मुख्य उपादान है। होती है, थकान दूर होता है, नकसीर का खून अम्बर से विनाशक परिस्रावणक्रम ( Destruबन्द हो जाता है, आमाशय और हृदय को शक्ति ctive distillation process ) EITT प्राप्त होती है और ताऊन-प्लेगका निवारण होता एक्सीनिक एसिड (Succinic acid) है। इसके पेट पर लटकाने से अजीर्ण में उपकार नामक एक अम्ल भी प्राप्त होता है। यह लौह होता है।-ख० अ०।
सोडियम्, अमोनियम और पोटासियम् के साथ ... यह समस्त बाह्याभ्यंतरिक अंगों से रक्त की मिलकर उनके लवणों का निर्माण करता है, जिन्हें अति प्रवृत्ति का रोधक है और नासारकस्राव एवं सक्सिनेटस कहते हैं । गर्भाशयिक, वृक्कीय और अति रज का निवारण करता है। यह फेफड़े पर याकृदीय प्रभृति भाँति भाँति के शल रोगों तथा