Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 680
________________ कक्षमूल २४१२ सेर डालकर मन्द मन्द श्रांच से पकाएँ । जब जल का अंश शेष हो जाय तब छान कर रखें । गुण- इसके मर्दन से श्रसाध्य कच्छदाद; पामा, खुजली और रुधिर के समस्त विकार दूर होते हैं । ( श्रमृ० सा० ) कक्षमूल - संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] बगल ! Base of the Axilea. कक्षारुहा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] नागरमुस्ता । नागरमोथा । रा० नि० व० ६ । कक्षशय - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] कुत्ता । कुक्कुर | वै० निघ० । कक्षा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) वाह्वोर्मूल | काँख | रा० नि० व० १८ | ( २ ) एक प्रकार का क्षुद्र रोग जो पित्त के प्रकोप से होता है। कँखोरी | काँकविडालि ( बं० ) । लक्षण - बाहु ( भुजा ), पसली, कंधा और कत्ता ( काँख वा बगल ) में होने वाले काले रंग के वेदनायुक्त फोड़े को पित्त की कक्षा, ककराली कहते हैं । मा० नि० छुद्र रो० । कक्षान्तर-संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] अन्तर्गृह । गर्भा - I गार । कक्षापट-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] कौपीन । हला० । कक्षाफलु संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] कृष्णोदुम्बरफल । काकडुमुर - बं० | कठूमर । वै० निघ० । कक्षीय - वि० [सं० त्रि० ] कक्ष सम्बन्धी । Axi. llary, श्र० शाo 1 I कक्षीया धमनी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] काँख की धमनी । (Axillary artery) श्र० शा० । प्र० शा० । कक्षीयानाड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कक्ष सम्बन्धी नाड़ी | Axillary nerve; श्र० शा० | कक्षोत्था -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] भद्रमुस्ता | नागर मोथा । हे० । कच्या - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) वृहतिका । बनभंटा, हे०च० । ( २ ) काञ्ची । ( ३ ) ह प्रकोष्ठ । श्रम० । ( ४ ) मद्य । ( ५ ) हाथी बाँधने की रस्सी । करिबंधन । अ० टी० भ० । ० यद्विकं । (६) गुञ्जालता । घुंघची । (७) रती । (८) आँगन । ( 8 ) चमड़े की रस्सी । कंकर बी ताँ । नाड़ी । (१०) हौदा । श्रमादी । ( ११ ) महल । ( १२ ) ड्यौढ़ी । ( १३ ) कक्ष सम्बन्धी धमनी | Axillary A (18) Axillary कक्षा सम्बन्धी सिरा । श्र० शा० । कत्रय - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] तीन कुत्सित पदार्थ | तीन बुरो चीज़ों का समूह। यह शब्द नित्य ही बहुवचनांत होता है। क - संस्कृत वा हिन्दी वर्णमाला का पहला व्यंजन वर्ण । कं- संज्ञा पुं० [सं० कम् ] ( १ ) जल । (२) मस्तक । ( ३ ) सुख । ( ४ ) अग्नि । (५) सोना । ( ६ ) काम | कुंअ - [ श्रु० ] चूहा । मूसा | क़न्क्रश्रु । कंकटी - [ म० ] चाकसू | कंकड़ - संज्ञा पुं० [सं० कर्कर ] [ स्त्री० पा० ककड़ी ] एक खनिज पदार्थ । अंकटा । संगरेजा फ़ा० । हसात - श्रु० । प्रकृति - शीतल एवं रूत । गुए, कर्म, प्रयोग — यह माद्दे को लौटा देने वाला और शोषणकर्त्ता है । इसका धूल सा पिसा हुधा बारीक चूर्ण बुरकने वा मरहम बनाकर लगाने से क्षत-विक्षत स्थान से रक स्राव होने में उपकार होता है । ना० मु० | म० इ० | कंकणखार - [ कना० ] सुहागा | टंकण । कंकनिका -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] बाल सँवारने की कंधी | कंकपक्षी - संज्ञा पुं० [सं०] काँक | कङ्क | गीला । कंकपाल - [ मल० ] मूली । मूलक । कंकर - संज्ञा पुं० दे० "कंकड़" | हद संज्ञा पुं० [फा० ] ( १ ) उल्लू । ( २ ) बादाव | [ ? ] एक बूटी । हर्शन । दे० " उर्शन" । संज्ञा पुं० [सं०] तक्र । मट्ठा | छाछ ! [ म०, खरपत | घोगर । ( Garuga Pinnata, Roxb.) J कंकर आबी-संज्ञा पु ं० [फा०] श्रार्द्ध भूमि में होनेवाली एक बूटी जिसकी पत्ती हरी और करप्रस की पत्ती की तरह होती है। इसकी शाखाएँ चिपकदार ओर फूल पीले रंग के एवं सुगंधित

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