Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

Previous | Next

Page 689
________________ कंघी २४२१ कंघ था मवेज । मतांतर से शुद्ध मधु एवं कालीमिर्च । ... मुख्य गुण-अर्श तथा पूयमेह में गुणकारी एवं कामोद्दीपक है। र मात्रा-पत्र । तो०, बीज और जड़ ३ मा०। गुण, कर्म, प्रयोग-यह उरोव्याधि, अर्श, शोथ और ज्वर को लाभ पहुँचाती है। पेशाब खुलकर लाती है, वस्ति तथा मूत्रपथजात क्षतों को लाभप्रद है। इसके बीज कामशक्रिवर्द्धक है और मलावरोध उत्पन्न करते हैं । इसकी पत्ती कटिशूल और प्रायः अवयवों की वेदना का निवा रण करती है । इसके क्वाथ का गण्डूष करने से दन्तशूल नष्ट होता है । (म० मु०) इसके पीने से सांद्रवायु (रियाह गलीज़ ) विलीन होती है । यह अवरोधोद्धाटक है और पित्त जन्य व्याधियों को नष्ट करता है। इसका कच्चा फल वायु उत्पन्न करता है और पका फल सरेसाम को दूर करता है। इसके पत्तों का स्वरस लगभग ७ तो० की मात्रा में पीने से पागल कुत्ते के काटे को लाभ होता है, यह परीक्षा में आ चुका है। इसकी गोलियाँ अर्श में लाभकारी हैं और बादी को दूर करतो हैं। कंघी को पत्तियाँ २१ नग, कालीमिर्च १ नग इन दोनों को पीसकर सात वटिकाएँ प्रस्तुत करें। इनमें से एक वटी नित्य प्रातःकाल जल के साथ निगले । फारसी ग्रंथों के अनुसार बड़ी कंघी की पत्तियाँ दो तोले जल में पीसकर शीरा निकालकर २१ दिवस पर्यंत पीने से फिरंग रोग नष्ट होता है। हिंदी ग्रंथों में लिखा है कि कंघी तीक्ष्ण, चरपरी, मधुराम्ल और औदरीय कृमिहर है। इसकी पत्तियों में चेपदार गाढ़ा रस निकलता है, जो औषध जनित तीक्ष्णता का उपशमन करता है। इसकी जड़ का फांट ज्वरजनित उष्णता का निवारण करता है। कुष्ठ रोगी को इसका फांट ( खेसादा) पान कराना चाहिये। इसके बीज कोष्ठ-मृदुकर (मुलय्यन शिकम) हैं । अर्श जन्य वेदना के निवारण करने के लिये इनकी फंकी दी जाती है। इसके बीजों का लुभाब चरपराहट को दूर करता | है। इसके बीज और अडूसे के पत्तों को श्रौटाकर | पिलाने से सूखी खाँसी मिटती है। दस्त बंद करने के लिये इसकी छाल का काढ़ा पिलाना चाहिये । इसका प्रत्येक अवयव उरोव्याधि का निवारण करता है। ज्वरताप संशमनार्थ इसकी पत्तियों का हिम पान कराना चाहिये। इसकी छाल और बीजों का हिम पान करने से मूत्रोत्सर्ग होता है । इसकी छाल के काढ़े से गण्डुष करने से दंतशूल और मसूढ़ों का ढीलापन मिटता है। इसकी टहनी से गर्म दूध को पालोड़ित करने से वह जम जाता है। जमने के उपरांत कपड़े में बाँधकर लटकाने से जो पानी सवित होता वा उसे तोड़ निकालता है, उसे पिलाने से रक्तार्श मिटता है । इसके बीजों का हलवा प्रस्तुत कर खाने से काम शक्ति वर्द्धित होती है। इसके पत्तों को पकाकर खाने से बवासीर का लोहू बंद होता है। बारंबार जलन के साथ पेशाब प्राता हो, तो इसकी जड़ का हिम प्रस्तुत कर पिलाने से लाभ होता है। यदि पेशाब में खून आता हो, तो इसकी पत्तियों के हिम में मिश्री मिलाकर पिलाने से कल्याण होता है। २ से ७॥ मा० तक इसके बीज अन्य कोष्ठ मृदुकर औषधों के साथ देने से कोष्ठ मृदुकरण का काम करते हैं। इसके पत्तों का काढ़ा पिलाने से सूज़ाक श्राराम होता है। पुरानी खाँसी के उपशमनार्थ इसकी पत्तियों का फांट पान कराना चाहिये। इसकी पत्तियों का हिम पिलाने से मूत्राशय की सूजन उतरती है, शिशुओं की गुदा में इसके बीजों की धूनी देने से चुरने कृमि-एक प्रकार के सफ़ेद छोटे और बारीक कीड़े नष्ट हो जाते हैं। (मस्तिष्कगत कृमियों में भी इसकी धूनी लाभकारी होती है।) कुमारी लड़की के हाथ से कते हुए सूत से इसकी जड़ को स्त्री की कटि में बाँधने से गर्भपात होने की अाशंका निवृत्त होती है। इसकी सात पत्ती पानी के साथ पीसकर स्वरस निकालें । उसमें चीनी मिलाकर पीने से पित्त जन्य खाकान नष्ट होता है। इसके सात पत्तों का चूर्ण फाँकने और मूग की दाल की खिचड़ी खाने से कामला रोग नष्ट होता है । घाव पर इसके पत्ते बाँधने से वह पूरित हो जाता है । इसके बीज पीसकर शहद में मिलाकर चाटने से खाँसी आराम होती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716