Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 677
________________ कहेला, कहेली पचननिवारक, सिद्ध मत्रकारक एवं अश्मरी-संचय ( R.n.khory., vol.11,p.326.) निवारक है। खाद्य वा मादक पान रूप से भुने नोट--इसके सुप्रसिद्ध क्षारोद क़हवीन के हुए कहवे को परिमित मात्रा में उपयोग करने से सविस्तर गुणधर्म तथा प्रयोग के लिये "काफीना" यह उद्दीपन कार्य करता, समीकरण ( Assim देखें। ilation ) एवं परिपाकशक्ति की वृद्धि करता, कहवाऽ-[?] इक्लीलुल्मलिक नामक एक उद्भिज । श्रांत्रीय कृमिवत् प्राकुचन का उत्कर्ष साधन | कहामत-[अ०] (१) वृद्ध होनेका भाव । वार्धक्य। करता ओर शारीरिक धातुओं के दय एवं मूत्र के जरापन । (२) मंदबुद्धि एवं शिथिल होना । साथ यूरिक एसिड के उत्सर्ग को घटाता है। कहाह-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (१) महिष । भैंसा । कहवा सेवन करने से श्रम जन्य शारीरिक एवं । (२) कटाह । कज़ह । मानसिक अवसाद वा क्रम का अनुभव नहीं | कही-[ कना० ] कटु । तिक्क । कडुपा । होता और विना क्लेश के कुछ समय तक के | कहीकीर-[ कना० ] कड़वी तुरई । कड़वी तरोई । लिये निद्रा पर विजय प्राप्ति होती है तथा मन कहीज-[अ० ] एक प्रकार का प्रावरेशम । सतेज रहता है । यह परावर्तित क्रिया एवं मान- कहीन-[फा. ] ज़रूर। सिक चेष्टा ( Mental activity ) की | कही पड़वल-[ कना० ] जंगली परवल । वन्य वृद्धि करता है । अत्यधिक मात्रा में कहवा सेवन पटोल। करने से इन विकारों का प्रादुर्भाव होता है- कहीर-[फा०] ज़रूर। अनियन्त्रित परिपाक क्रिया, शिरः पीड़ा, शिरो- | कहीला-[ ] तज । सलीखा । घूर्णन, हृत्स्पंदन, नितांत अस्थिरता, आक्षेप और | कहीला-[१०] (१) गावज़बान । पक्षाघात । कोको को अपेक्षा कॉफी अधिकतर | कहीसोरे-[ कना०] तितलौकी । कड़ा धिया । उत्तेजक, किंतु अल्प जीवनीय (Sustaining) कहु-संज्ञा पुं॰ [ ] कोह । अर्जुन । है। (आर० एन० खोरी, खं० २, पृ० ३२३६) कहुआ-संज्ञा पुं॰ [ ] अर्जुन वृक्ष । कोह । ___ कहवे का कच्चा फल (Berries) ज्वर- कहुदाली-[ मरा०] काकतुडी। कौबा ठोठी । नाशक है। यह शिशुओं के लिये वर्जित है, क्यों | Asclepia Curassavica. कि इससे अनिद्रा उत्पन्न होती है। अस्तु, इससे | कहुन्दान रंगल-[म०प्र०] मालकाँगनी । उनकी वृद्धि के विपरीत प्रभाव होता है। वयस्क | कहुवा-संज्ञा पुं० [सं० कोह ] अर्जुन वृक्ष । कोह लोगों में यह शीघ्र वार्धक्य लाता है और संवर्तन | वृत्त । क्रिया ( Metabalism) को अस्त-व्यस्त ___ संज्ञा पुं० [अ० क़हवा ] एक दवा जो घी, कर आयु के परिमाण को घटाता है। चीनी; मिर्च और सोंठ को आग पर पकाने से उपयोग-शारीरिक क्रान्ति एवं हृदय तथा बनती है और जुकाम ( सरदी ) में दी मन विषयक अवसाद में कहवे का प्रयोग होता जाती है। है। वातजवेदना ( Neuralgia), नाड़ी | कहुवारुख-संज्ञा पु. अर्जुन वृक्ष । कहुवा । कोह का विकार घटित शिरः पीड़ा और चिरकारी मदात्य | पेड़। यजनित अनिद्रा रोग में ग्वाराना के साथ वेदना | कहू-संज्ञा पु. अर्जुन वृक्ष । कोह। स्थापक रूप से यह उपयोग में आता है तथावमन, कहूलत-[अ०] अधेड़ उमर का होना । बालों का अतिसार, श्वास रोग जनित आक्षेप इनके निवृत्यर्थ । काला और सफ़ेद होना । चालीस से साठ वर्ष को एवं मादक सेवन जनित विषाक्तता की दशा में भी | अवस्था के मध्य होना। कहवे का व्यवहार होता है । हृदय संबंधी रोग में | कहेला, कहेली-संज्ञा स्त्री० [ देश०] तज का माम पैराल्डिहाइड के साथ कैफीन का लाभदायक जिसे अरबी में "सलीन" कहते हैं। किंतु हकीम उपयोग होता है। शरीफ खाँ कहते हैं कि वह एक पहाड़ी वृक्ष की ८२ फा.

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