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कहरवा
सबको यहाँ देकर हम पाठकों को उलझन में नहीं डालना चाहते । यहाँ पर हम केवल उन सबका सार देकर ही इस विषय को समाप्त करेंगे। अर्थात् जिस पर उन सभी का मतैक्य है । वह यह है-ताज़ा क़हवा और विशेषकर उसका छिलका उष्णता एवं रूक्षता की ओर प्रवृत्त होता है। पुराना तथा भृष्ट कहवा शीतल एवं रूक्ष होता है। यह जितना पुराना पड़ता जाता या जितना अधिक भुनता है, उसमें उत्तरोत्तर शीतलता एवं रूक्षता बढ़ती जाती है।
हानिकर्ता- यह शिरःशूल, ख़फ़क़ान, श्राध्मान, कुलंज और काबूस उत्पन्न करता है, शरीर को कृश एव रूक्ष करता है। फुफ्फुस और नरख़रे में रूक्षता उत्पन्न करता है। शरीर का रंग पीला कर देता है। जिसकी प्रकृति में शीत एवं मृदुता का प्रावल्य हो या विकृत दोष बढ़े हुए हों, उसे यह अनिष्टकर होता है ।
दर्पघ्न-दवाउल मुस्क सोंठ, गुलाब, रोग़न पिस्ता, खाँड, मिश्री, अंबर और केसर इत्यादि ।
क़हवा अवरोधोद्धाटक और वेदनाहर है तथा यह रत्नप्रकोप एवं पित्त की तीव्रता और दाह का निवारण करता है । यह दोषों को स्वच्छ करता
और सांद्र दोषों को द्रवीभूत करता है। इसी हेतु रक्त पित्त एवं वातजन्य ज्वरों में विशेषतः उनकी प्रारंभिक अवस्था में तथा शीतला और खजू रोग में भी यह उपयोगी सिद्ध होता है। यह रक्तविकारज उदई रोग तथा कामला अर्थात् यौन रोग में भी गुणकारी है। मलावरोधहर होते हुए भी यह दस्तों को रोकता है, विशेषकर अर्द्धभृष्ट क़हवा । यह मूत्रप्रवर्तक भी है। यह आद्रताहर है और श्लेष्मकास तथा प्रतिश्याय को निवारण करता है; मार्गजनित श्रम, क्रम एवं शरीर की शिथिलता को दूर करता है; हृदय को प्रसन्न एवं प्रफुल्लित करता है; आमाशय को शक्ति प्रदान करता है; मालीलोलिया इहतिराकी को गुणकारी है; नेत्राभिष्यंद को नष्ट करता है और मस्तिष्क की ओर वाष्पारोहण नहीं होने देता । यह अर्शको दूर करता है। यह भी कहते हैं कि यह अर्श उत्पन्न करता है । यह कुष्ठ रोग का निवारण ।
करता है। इसको पीसकर शहद में मिलाकर चाटने से शुष्क एवं प्रार्द्रकास में उपकार होता है । यह प्रामाशयगत पार्द्रता का शोषण कर उसकी शिथिलता को निवृत्त करता है। इसके पीने के उपरांत अधिक सोना, प्यास को मारना
और अल्पाहार, किंतु इतना नहीं निर्बलता बढ़ जाय, अतीव गुणकारी है। आध पौंड भृष्ट कहवा पीसकर खौलते हुए पानी में डालें और उसमें से एक-एक प्याला क़हवा हर पंद्रह मिनिट के उपरांत उस व्यक्ति को पान कराएँ जिसकी आँत अंडकोष में श्राकर फँस गई हो । मायर महाशय ने ईसवी सन् १८५८ में इसका उपयोग किया और छठवाँ प्याला पिलाते ही आँत ऊपर चढ़ गई । ड्रडन महाशय ने भी उन विधि की परीक्षा की, किंतु नवाँ प्याला पिलाने के उपरांत उनके रोगी ने पाराम पाया। इसके अतिरिक्त कतिपय अन्य डाक्टरों के परीक्षणानुसार भी यह उपयोगी प्रमाणित हो चुका है। इसके बार बार पीने से मस्तिष्क एवं प्रकृति में रूक्षता की उल्वणता होती है और नींद कम आती है। परन्तु जिनके गरमी बढ़ी हुई हो और नींद न आती हो कहवा पान करने से उनकी हरारत घट जाती है । इसलिये रतूबत कम विघटित होती है और नींद आने लगती है । अस्तु इसी प्रकार एक मनुष्य की प्रकृति में उष्णता पराकाष्ठा को पहुँची हुई थी । इसलिये उसे नींद न आती थी। रात को वह इस प्रकार जागता था, मानो कोई सरेसाम का रोगी हो और वह व्यग्र एवं चिंतित रहता था। दो-तीन रात्रि कहवा सेवन करने के उपरांत उसे अच्छी खासी नींद आने लगी। कोई कोई कहते हैं कि यह वीर्य को सुखाता है और कामावसाय उत्पन्न करता है । कदाचित् पुराने और बहुत भुने हुए एवं काले में यह गुण हो सकता है, कच्चे में ऐसा होना संभव नहीं। बल्कि इसका छिलका तो किसी किसी प्रकृति के व्यक्ति की कामशक्ति को बढ़ाता है और श्राहार का पाचन करता है।
(ख० श्र०) डॉक्टरी मतानुसार___काफी--कहवा मस्तिष्क, पाकस्थाली और वृक्कद्वय का उत्तेजक, मृदुरेचक, उच्च श्रेणी का