Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

Previous | Next

Page 654
________________ कस्तूरी की है। रक्तसंचार की गिरती हुई गति ( Failing circulation ) एवं हृत्स्फुरण ( Palpitation of the heart ) में भी हृदयोत्तेजक रूप से, यह विश्वास करके इसका उपयोग किया गया है, कि यह रक्तचाप और नाड़ी की गति को सुधारती है। प्लेगजन्य हृन्नैर्बल्य ( Cardiac asthenia ) में काश्मीरी डाक्टर मित्रा (१८१८ ) ने कस्तूरी को श्रतीव उपयोगी पाया । उन्होंने कस्तूरी चूर्ण का व्यवहार कराया जो अत्यन्त उपादेय सिद्ध हुआ । तो भी उक्त श्रौषध की उपादेयता के सम्बन्ध में यह विश्वास दिनों दिन बदलता जा रहा है। इसी के परिणाम स्वरूप जहाँ कस्तूरी ब्रिटिश फार्माकोपिया और संयुक्त राज्य अमेरिका की फार्माकोपिया ( U. S. P. IX. ) में सम्मत थी वहाँ ब यह दोनों ही फार्माकोपिया से निकाल दी गई है । २३८६ भारतीय चिकित्सक गण श्राज भी टिंक्चर मस्क ( मृगमदासव ) का प्रचुरता के साथ उपयोग करते हैं । वात सांस्थानिक श्रवसादावस्था में हृदयोत्तेजक रूपेया और वाजीकरणार्थ वे इसे १० से ३० बूँद तक उपयोगित करते हैं । डाक्टर चोपड़ा लिखते हैं- "निरोग और रोगी शय्यागत ( Experimental_and_Clinic 1 ) दोनों प्रकार के हमारे निजी परीक्षणों एवं प्रयोगों द्वारा कस्तूरी वर्णित हृदय बलवर्द्धक एवं रक्तस्थ श्वेतवर्द्धक गुणों की पुष्टि नहीं होती है । यत्किचित् उत्तेजक प्रभाव इसमें निहित हो सकता है वह संभवतः परावर्तित रूप से होता है और वह घाण नाड़ियों द्वारा उसकी तीक्ष्ण गंध के कारण और श्रामाशय से तद्गत श्लैष्मिक कला पर उसके किंचित् क्षोभक प्रभावोत्पादन के कारण होता है । सुतरां हमने यह अवलोकन किया है कि जिन रोगियों को कस्तूरी की एक मात्रा दी गई थी, उन्होंने श्रामाशयगत ऊष्मा एवं सुस्थता का अनुभव किया है और इससे परावर्तित रूप से - श्वासप्रश्वास एवं हृदयको किंचित् उत्तेजना प्राप्तहो सकती है। अपस्मार, कंपवात तथा शिश्वाक्षेप में इसकी अमोघाता में श्रास्था रखने के लिये कोई श्राधार- प्रमाण दृष्टिगत नहीं होता है । योषापस्मार कस्तूरी के वेगों ( Hysteriform attacks ) मैं संभवत: बहुत करके यह हिंगु और जटामांसी प्रभृति उग्र गंधी द्रव्यों की ही भाँति प्रभाव करती है । कुक्कुर खाँसी और श्रांत्रशूल ( Colic ) में इसका प्रभाव बिलकुल उड़नशील तैल युक्त वस्तुनों के प्रभाव की तरह होता है । कर्नल चोपड़ा पुनः कहते हैं-हम अपने निरीक्षणों ( Observations ) से इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि भारतवर्ष में देशी श्रौषधियों में कस्तूरी को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया गया है । इसमें शरीर क्रिया विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से कोई विशेष गुण नहीं है ।" सुगंध रूप में भी कस्तूरी का प्रयोग सबसे पहले हमारे ही देश में शुरू हुआ। फिर विदेशी लोगों ने सुराघटित कर वा अन्य सुगंध द्रव्यों के योग से इसके प्रयोग की अनेक अभिनव रीतियाँ श्राविष्कृत कीं । परन्तु सुगंध रूप में कस्तूरी का व्यवहार करने के लिये तत्सम्बन्धी विशेष अभिज्ञान आवश्यक है । गुणधर्म तथा प्रयोग आयुर्वेदीय मतानुसारकस्तूरिका रसे तिक्ता कटु श्लेष्मानिलापहा । विषघ्नी दोषशमनी मुखशोषहरा परा ॥ अन्यञ्च - कस्तूरी सुरभिस्तिक्ता चतुष्या मुखरोगजित् । किलास कफ दौगन्ध्यवाता - लक्ष्मी मलापहा ॥ ( ध० नि० ) कस्तूरी — रस अर्थात् स्वाद में कड़ ुई, चरपरी, कफवातनाशक, विषनाशक, दोष अर्थात् वात पित्त और कफ दोषत्रय की नाशक और मुखशोष को हरण करनेवाली है । श्रन्यच्च - कस्तूरी कड़ ुई, सुगंधित, चक्षुष्य, मुखरोगनाशक तथा किलास, कफ, दुर्गंध, वायु, मल और लक्ष्मी अर्थात् दरिद्रता- इनका निवारण करती है । कस्तूरी छर्दि दौर्गन्ध्य रक्तपित्तकफापहा ॥ ( राज० ) कस्तूरी - वमन, दुर्गंध, रक्तपित्त और कफ नाशक हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716