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कस्तूरी
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कस्तूरी ... भारतवर्ष में औषधि ओर सुगंध के रूप में | सालादीन ने रोम सम्राट् को बहुत सी वस्तुएं
कस्तूरी का व्यवहार दीर्घ काल से चला पा उपहार स्वरूप भेजी थीं, जिनकी बृहत् तालिका रहा है । अस्तु, धन्वन्तरीय तथा राजनिघण्टु आदि पुस्तक में उल्लिखित है। उसमें कस्तूरी का भी प्राचीनतम निघण्टु ग्रंथों में भी इसका स्पष्ट उल्लेख नाम है। दशवीं शताब्दी में अबीसोना ने अपनी प्राप्त होता है। भावप्रकाशकार ने तीन प्रकार की भैषज्य विषयक पुस्तक में मृगनाभि को नाना रोग कस्तूरी का उबेख अपने ग्रंथ में किया है। भार- नाशक महौषधि के रूप में वर्णित किया है। तीय चिकित्सक इसे अत्यन्त उत्तेजक (सार्वागिक यूरोपीय ग्रंथों के अनुशीलन से पता चलता है और हृदय ) और कामोद्दीपक-वाजीकरण मानते कि सर्व प्रथम त्याभार-नियर ने अपनी यात्रा विष
और मंद ज्वरों में श्राक्षेप निवारक और वेदन यक पुस्तक में कस्तूरी का उल्लेख किया है उसके स्थापक रूप से एवं चिरकालानुबन्धी कास भ्रमण वृत्तान्त को पाठ करने से इस संबंध की (Cough) सार्वदैहिक दौर्बल्य और पुसत्व और भी अनेक ज्ञातव्य बातें स्पष्ट हो जाती हैं । हीनता रोग में इसका व्यवहार करते हैं। इसकी एक स्थान पर वह लिखता हैं कि उसने अपने हदय बलदायिनी शक्ति तो प्रसिद्ध ही है। अन्ता- भ्रमण कालमें ७६०५ थैला कस्तूरी खरीदी थी। वस्था में जब मनुष्य मृत्यु के चुंगल में आवद्ध विख्यात पर्यटक मार्कोपोलो लिखता है कि-उसके होने लगता है और हृदय को बल देने के सभी समय में मृगनाभि (कस्तूरी) का खूब प्रचार था उपाय निष्फल सिद्ध होते हैं, उस समय मृगनाभि और वह बाजारों में मिलती थी।" रोगी की संरक्षा में अस्त्र सदृश काम करती है। संभवतः सोलसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में एतद्देशीय बूढ़े सयाने तात्कालिक भीषण स्थिति
कस्तूरी पाश्चात्य चिकित्सा में औषधि रूप में उपमें कस्तूरी और मकरध्वज के सिवाय किसी अन्य योग में ली जाने लगी। तभी से लेकर आज पर्यंत
औषधि से प्राण रक्षा की आशा नहीं रखते। आन्त्रिक सन्निपात (Typhoid ), टायकस, हमारे देश में हृद्वत्तेजक रूप से इसका मकरध्वज
वातरक (Gout), हनुग्रह वा धनुस्तम्भ एवं बला प्रभृति अन्य औषधियों के साथ अथवा
( Tetanus) जलसंत्रास, अपस्मार तथा अकेला मधु के साथ में सेवन करते हैं। इसके
योषापस्मार के दौरों में एवं कम्पवायु, कुक्कुर कास सिवां शास्त्रोक्त स्वल्प कस्तूरी भैरव, मृगनाभ्याद्य- (काली खाँसी), हिक्का, श्वासः और शूल घलेह और बसन्त तिलकरस प्रभृति योगों में (Colic) इत्यादि नाना व्याधियों में उत्तेजक तथा बहशः अन्य योगों में भी कस्तूरी व्यवहृत
औषध रूप में प्रयोगित होती रही है। होती है।
सन् १९०५ ई० में क्रुकर्शक ने केंद्रीय वातदक्षिण भारतीय तामिल चिकित्सक शिश्वाक्षेप मंडल के विषैले प्रभाव में इसकी उपयोगिता के में इसे अफीम के साथ मिलाकर देते हैं । अजीर्ण पक्ष में अपना मत जाहिर किया।
और कोलन शोथ (Colitis) निवारण के उन डाक्टर महाशय ने उस रोग में २॥ रत्ती लिये भी यह प्रसिद्ध है।
की मात्रा में कस्तूरी चूर्ण व्यवहार कराया और पारव्य और पारस्य निवासी भी मुश्क नाम से उससे संतोषप्रद परिणाम प्राप्त हुये। शिश्वा इसका अति प्राचीन काल से व्यवहार करते श्रा क्षेप के किसी निश्चित उत्पादक कारण का निर्णय रहे हैं । शेख अली सोना, मासरजोया, गीलानी न हो सकने पर कोरल हाइदास के साथ कस्तूरी प्रभृति प्राचीन विद्वानों के ग्रंथों में और तालीफ का व्यवहार करके बहुत ही आशानुरूप फल प्राप्त शरीफी, मजन, मुहीत आदि पश्चात् कालीन किये गये हैं । डाक्टर स्टिल Still (१९०६) निघट ग्रन्थों में इसका विशद उल्लेख मिलता है। ने इसमें कोरल हाइड्रास (२॥ से ५ रत्ती
यूरोप में पहले पहल अरब निवासियों ने __अवस्थानुसार ) और टिंक्चर श्राफ मस्क (१० कस्तूरी का प्रचार किया । सन् १८८६ ई० में से ३० बूंद) की गुदवस्ति देने की अभ्यर्थना
७. फा०