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२००१ , का अर्थ लिया जा सकता है । रॉक्सवर्ग | (शराव ) से कहा था-'हे मदिरे ! तू जिनकी
ने इसे श्वेत कदम्ब (Nauclea tetran अभिलाषा की पात्र हो, उन्हीं अनन्तदेव के उपdra) लिखा है। उनके अनुसार इसका जन्म भोगार्थ गमन करो। वरुण की बात सुन वारुणी स्थान श्रीहद प्राकृति ६-१२ हाथ उच्च, काण्ड वृदावनोत्पन्न कदंब-वृक्ष के कोटर में आ पहुँची । सरल, पुष्पकाल ग्रीष्म ऋतु है । इसको भूकदम्ब बलराम को घूमते-घूमते उत्तम मदिरा की गंध वा एक प्रकार का केलिकदम्ब कहा जाता है। मिली थी। जिससे उनका पूर्वानुराग जाग उठा
भूमिकदंब के पोय-भूमिकदंबः, भूनीपः, था । कदम्ब वृक्ष से विगलित मद्य देख वह परम भूमिजः, भृङ्ग वल्लभः,लघुपुष्पः, वृत्तपुष्पः, विषघ्नः श्रानन्दित हुये थे। पुनः गोप-गोपियों ने गान घणहारकः-सं० । भूकदम, भु इकदम-हिं। करना प्रारम्भ किया और बलराम ने उनके साथ इतिहास
मदिरा पान की। वि० दे० 'कादम्बरी" भारतवर्ष कदम का श्रादि उत्पत्ति स्थान
रासायनिक संघट्टन-इसके वल्कल में एक है हिमालय से लंका पर्यंत समग्र भारत
कषाय तत्व होता है। यह कषायत्व सिकोटैनिक वर्ष में इसके वृक्ष जंगली होते हैं वा लगाये जाते
एसिड से मिलता जुलता एक अम्ल के कारण हैं। एतद्देशवासी इसके वृक्ष को अति पवित्र
होता है। उक्त औषधि में रक्त सिंकोना के स्वभाव मानते हैं । इसलिये देवालय एवं ग्रामों के समीप
का एक सद्योजात श्रोषित पदार्थ विद्यमान होता इसके वृक्ष प्रायः देखने को मिलते हैं । काली वा
है। (इं० मे० मे०-नादकर्णी ।। पार्वती को यह प्रिय है। श्रीकृष्ण को तो यह
औषधार्थ व्यवहार-फल, पत्र और त्वक । वृक्ष बहुत ही प्रिय था । अतएव आज भी झूलने
फल स्वरस–मात्रा १-२ तो० । त्वक् चूर्ण-मात्रा में कदम के फूल व्यवहृत होते हैं। प्राचीन काल
१-२ पाना भर । त्वक् काथ एवं स्वरस में इसके फलों से एक प्रकार की मदिरा बनती थी, जिसे कादम्बरी कहते थे। कादम्बरी मद्य की
(१० में १ मा०)। उत्पत्ति के सम्बन्ध में हरिवंश में इस प्रकार लिखा मात्रा-छ० से १ छ। है-किसी दिन बलराम अकस्मात् शैलशिखर पर प्रभाव-त्वक् वल्य एवं ज्वरघ्न है। फल घूमते-घूमते एक प्रफुल्ल कदंबतरु की छाया में बैठ शैत्यजनक Refrigerant है। गये । अकस्मात् मदगंधयुक्त वायु चलने लगी।
गुण धर्म तथा प्रयोग उक्त वायु के नासाविवरण में प्रविष्ट होते ही उनके
आयुर्वेदीय मतानुसारमदपिपासा का वेग भड़क उठा । वह कदम्ब वृक्ष
कदम्बस्तु कषायः स्याद्रसे शीतो गुणेऽपि च । की ओर देखने लगे, वर्षा का जल उस प्रफुल्ल कदम के कोटर में पड़ मद्य बन गया था। बलराम
व्रणरोहणश्चापि कासदाहविषापहः ॥ अत्यन्त तृष्णाकुल हो वह मदवारि पुनः पुनः पान
(ध०नि०) करने लगे। उस वारि-पान से बलराम मत्त हो कदम-कषेला, रस और गुण में शीतल तथा गये शरीर विचलित पड़ा था। उनका शारदीय | ।। अथारोपण और कास, दाह और विष को नाश मुखशशी ईषत् चंचल लोचन से घूमने लगाने वाला है। उस अमृतवत् देवानंद-विधायिनी वारुणी
कादम्बस्तिक्त कटुकः कषायो वातनाशनः । नाम कदम के कोटर में उत्पन्न होने से ही कादंबरी
शीतलः कफ पित्तात्तिं नाशनः शुक्र वर्धनः ।। पड़ा है। यथा'कदम्ब कोटरे जाता नाम्ना कादम्बरीति सा।'
(रा०नि०) (हरिवंश ६६ अ०) कदम-कड़ आ, चरपरा, कषेला, शीतल, विष्णु पुराण में भी लिखा है-बलराम को
वात-नाशक, कफ नाशक, पित्त के रोगों को नष्ट गोप-गोपियों के साथ घूमते देख वरुण ने वारुणी करने वाला, और शुक्र वर्धक है।
३२ फा०