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२०३२
कहह.-[?] मक्खी । कदेप-तांगे-[३०] अमलवेद । कदेल्ल-[ कना०] काला तिल । कदो-[बर० ] कस्तूरी मुश्क । कदोट-[बर.] जंगली अंजीर। कद्द् -[१०] एक प्रकार की सनोवर के श्राकार
की कड़ी सूजन जो बात से (सौदावी) होती है
और साधारणतः आँख के ऊपरी पपांटे में पैदा ___ होती है। कह-अ.] कद। कदम-[बम्ब०, ६.] कलम । Stephegyne parviflora, Korth.
संज्ञा पुं॰ [fi० कदम ] कदम । कइंत्र । कहमिया-यू०] अकलीमिया। कहलाशिंगी-ता०] चिल्ला । बेरी। कदिल तयङ्ग-[ता.] दरियाई नारियल। कहू-संज्ञा पुं० [फा० कटू ] कुमाङजातीय एक
बेल का फल जो वहत प्रकार का होता है। इस को बेल बहुत विस्त होती है और वृक्षादि के प्राध्य से वा भूमि पर प्रतान विस्तार करती है। इसमें सफेद फूल पाते हैं स्वाद एवं प्रकृति भेद से फल अनेक प्रकार के होहे हैं। परन्तु उनमें से सभी प्रकार के कइ के फल के ऊपर का छिलका बहुत कहा. मोटा, और काष्ठीय होता है। फल मजा स्पंजवत् और सफेद होती है जो मीठे कर में मीठी और कहु ए में अत्यंत कडुई होती है। वीज भूरा, चिपटा और सिरे पर त्रिशीर्ष युक्त होता है। बीज को गिरी सफेद, तैलाक और मीठी होती है । परंतु तितलौकी का बोज तिक होता है।
भेद-स्वाद के विचार से कह मुख्यतः दो प्रकार का होता है-मीठा श्रीर का । प्राकृति के विचार से मीठा कह के पुनः अनेक उपभेद हो जाते हैं, यथा-गोल, लम्बा, सुराहीदार, डमरु वा कमंडल के आकार का जिसके दो पेट होते हैं। उनमें नीचे का बड़ा और ऊपर का छोटा होता है। इन सभी को एक जाति कहुई भी | होती है । छोटा, बड़ा और चकैपा श्रादि भेद से गोल कह नाना, प्रकार का होता है । इनमें से |
कोई-कोई बजन में एक मन तक होता है । गोल कह को बेल प्रायः बरसात में होती है फल की तरकारी भी होती है यह या तो जंगली होता है या लगाया जाता है।
परन्तु लंवा कद, वा लोकी दोनों फसल में (बरसातो और जेहुई) होती है । एक प्रकार लौको के फल एक गज से २ गज तक लम्बे हात हैं। रंग बाहर में हरा वा हरापन लिये सफ़ेद और भीतर से सफेद होता है । गूदे का स्वाद फीका होता है। ___ कडा कद्द को देश में तितलौकी वा तुमड़ी कहते हैं । यद्ययि यूं तो उपर्युक्र सभी प्रकार के मीठे कर की तिक जातियाँ भी होती हैं पर वस्तुत तितलौको शब्द से जिस प्रकार की कटुतुम्बी का अर्थ लिया जाता है, इसके फल छोटे एवं सुराही दार होते हैं । जाल में लगाने के लिए मलाह लोग इसे अपने घरों में लगाते हैं। योगी और सपेरे इससे सितार, बीन, तंबूरा, वा महुवरादि बनाते हैं । यह जंगली भी होता है । पर यह स्मरण रहे कि प्रत्येक प्रकार की बड़ी कडु ई होती है
और मीठो भी। कह ई तुम्बड़ी के बीज भी कडु वे होते हैं और मीटी के मीठे होते हैं। कदूएं तख की तुंबड़ी एक किस्म है । मुहीत वाजम में यह लिखा है कि वह कहूए तल्ख तुबड़ीकी एक किस्म है।......कि जि.सका बीज भी सिक्क होता है । हिन्दुस्तान में बड़ी को इसी नाम से बोलते हैं। कदुथेतल्ख कितावी संहाहै । कदूएतरखका जंगली भेद अत्यन्त कड़वा होता है, अस्तु; जामा तमीमी में उल्लेख है कि कद को बोते हैं और जंगल में स्वयम् भी होता है और यह अत्यन्त कड़वा होता है । तालीफ शरीफ के मत से भी तिक और मिष्ठ दोनों प्रकार के वीजवालो तु बड़ी होती है। गोज, महुअरिया, सुराहीदार, कमर डलाकार, प्रभृति आकार भेदसे यह अनेक प्रकार को होतीहै। इनमें से कमरडलाकार तितलौकी को गिरनारी तुबड़ी भी कहते हैं। इसका छिलका बहुत मोटा और कड़ा होता है । इसमें कुम्हेंडे को तरह के और सफेद बीज होते हैं । विवजौकी के बीज वर्षारम्भ में वोये जाते हैं जो बर्षान्त से लेकर फाल्गुन तक फूलते फलते रहते हैं।