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कपूर
हृद्भेद एवं श्वासोच्छवास कार्य विरोध होजाता है उसमें तथा विष विशेष ( Barbiturale Poisoning) के असाध्य रोगियों में यह बिशेष गुणकारी है।
धर्म तथा प्रयोग
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आयुर्वेदीय मतानुसारकपूरं कटुतिक्तं च मधुरं शिशिरं विदुः । तृमेदोविष दोषघ्नं चक्षुष्यं मदकारकम् ॥ ( ध० नि० ३ व० )
कपूर - मधुर, तिल, चरपरा और शीतल है । यह तृषा, मेद, एवं विष दोषनाशक और नेत्रों के लिए हितकारी तथा मदकारक है । कर्पूर: शिशिरस्तिक्तः स्निग्धश्रोष्णोऽस्रदाहदः । चिरस्थो दाह दोषघ्नः स धौत : शुभकृत्परः ॥ ( रा० नि० १२ व० )
कपूर - शीतल, कड़वा, स्निग्ध उष्णवीर्य तथा रक्त एवं दाहकारक है । पुराना कपूर दाह और दोषनाशक है । धोया हुआ कपूर परम श्रेष्ठ है ।
कर्पूर : शीतलो वृष्यश्चक्षुष्यो लेखनो लघुः । सुरभिर्मधुरस्तिक्तः कफपित्त विषापहः ॥ दाहतृष्णाऽऽस्यवैरस्य मेदोदौर्गन्ध्य नाशनः । आक्षेप शमनो निद्रा जननो धर्म बर्द्धनः । वेदनाहारकः कामशान्तिकृच्छुक्रमेह कृत् ॥ कर्पूरो द्विविधः प्रोक्तः पक्कापक प्रभेदतः । पक्कात्पूरत: प्राहुरपकं गुणवत्तरम् ॥ ( भा० पू० खं० ३ व० )
कपूर - शीतल, वृष्य, (वीर्यवर्द्धक) नेत्रों के लिए हितकारी, लेखन लघु, सुगंधयुक्त, मधुर तथा तिकरस एवं कफ, युक्त पित्त, विष, दाह, प्यास, मुख की विरसता, मेदरोग तथा दुर्गन्ध को नष्ट करनेवाला होता है । श्राक्षेपवातनाशक, निद्रा जनक, धर्मबर्द्धक, ( खूब पसीना लानेवाला ) वेदना नाशक, कामवेग को शांतिकर्त्ता और शुक्र प्रमेह कारक ( हारक ) है । पक्क तथा श्रपक्क इन भेदों से कपूर दो प्रकार का होता है। पक कपूर
कपूर
की अपेक्षा श्रपक्क कपूर श्रधिक गुणकारी होता है ऐसा वैद्यलोग कहते हैं । कर्पूरं शीतलं पाके चतुष्यं कफनाशनम् । पक्क कर्पूरतः प्राहुरपक्कं गुणवत्तरम् ॥ ( राज० )
कपूर - पाक में शीतल, कफनाशक और नेत्र को हितकारी है । पक कपूर से श्रपक्क कपूर अधिक गुणकारी है ।
सतिक्तः सुरभिः शीतः कर्पूरो लघुलेखनः । तृष्णायां मुख शोषे च वैरस्ये चापि पूजितः ॥ ( सुश्रुत ) कपूर - कड़वा, सुगन्धि, शीतल, हलका, लेखन तथा तृषा, मुखशोष और विरसता को दूर करनेवाला है । कपूरो मधुरस्तिक्तः शीतलः सुरभिर्लघुः । नेत्रयो लेखन कृदृष्यः कटुः प्रीतिकरोमृदुः ॥ मदकारी च संप्रोक्तः कफदाहतृषापहः । रक्तपित्तं कण्ठरोगं नेत्ररोगं विषं तथा ॥ पित्त' च मुखवैरस्यं दौर्गन्ध्यमुदरं तथा । मूत्रकृच्छ्र प्रमेहश्च मलगन्धं च नाशयेत् ॥ स एव नूतनः स्निग्धस्तिक्तश्चोष्णाश्च दाहकृत् सोपि जीणों दाहशोषनाशनः परिकीर्त्तितः ॥ सोपि धौतोगुणैः श्र ेष्ठः प्रोक्तो वैद्यः पुरातनैः ॥ (नि० ना० )
कपूर-मधुर, कड़वा, शीतल, सुगन्धि, हलका, चतुष्य, लेखन, वृष्य, चरपरा, प्रीतिकारक. मृदु, और मदकारी है तथा कफ, दाह, प्यास, रक्तपित्त, कण्ठरोग, नेत्ररोग, विष, पित्त, मुख की विरसता दुर्गन्ध, उदर रोग, मूत्रकृच्छ, प्रमेह और मल की दुर्गन्धि को दूर करता है । नवीन कपूर स्निग्ध कड़वा, गरम और दाहकारक है । पुराना कपूर दाह और शोषनाशक है और धोया हुआ कपूर
श्रेष्ठ है।
भिन्न-भिन्न कपूर के गुण पोतास (पोताश्रय) भीमसेनी और वरास गुण
निघण्टु रत्नाकर के अनुसार ये तीनों स्वादिष्ट शीतल, शुक्रजनक, तिक एवं कटु होते हैं और