________________
करेला
२२५७
करेला
६ प्रकार का पीले रंग का अम्ल, राल और ६% . भस्म इत्यादि।
__गुणधर्म तथा प्रयोग
आयुर्वेदीय मतानुसारकाण्डीरः कटुतिक्तोष्ण सरो दुष्टवणातिजित् । लूता गुल्मोदर मीह शूल मन्दाग्नि नाशनः ।।
(ध० नि०, रा० नि०) करेला-चरपरा, कडु श्रा, गरम और दस्तावर है तथा दुष्टत्रण, मकड़ी का विष, गुल्म, लोहा, शूल और मंदाग्नि-इनको नाश करता है। कारवेल्लं हिमं भेदि लघुतिक्तमवातलम् । ज्वर पित्त कफास्रघ्नं पांड़ मेह क्रिमोन हरेत् । तद्गुणा कारवेल्ली स्याद्विशेषाहीपनी लघुः ॥ .
(भा.) करेला-शीतल, दस्तावर, हलका, कड़वा एवं अवातल है तथा यह ज्वर; पित्त, कफ, रुधिरविकार, पांडु रोग, प्रमेह और कृमिरोग इनको दूर करता है। करेला के समान ही गुण करेलीमें है। कारवेल्लमवृष्यश्च रोचन कफपित्तजित् ।
(राज.) करेला- प्रवृष्य, रुचिकारक और कफ तथा | पित्तनाशक है। कारवेलश्च वातघ्नः कफघ्न: पित्तकारकः । उष्णो रुचिकरः प्रोक्तो रक्तदोषकरो नृणाम् ॥
(हा०)(अत्रि १६ १०) करेला-वातनाशक, कफनाशक, पित्तकारक, उष्ण, रुचिकारक और रक्तविकार जनक है। कारवेल्ल चाति तिक्त मग्निदीप्तिकरं लघुः।। उष्णं शीतं भेदकं च स्वादु पथ्यं समीरितम् ॥ अरुचिं च कर्फ वातं रक्तदोष ज्वरं कृमीन् । पित्तं पांडुश्च कुष्ठश्च नाशयेदिति कीतितम् ॥ वृहदुक्त कारवेल्लं कटु तिक्तं च दीपकम् । अवृष्यं भेदकं स्वादू रुच्यं क्षारं लघुः स्मृतम् ॥ अवातलं पित्तहरं रक्तरुक्पांडु रांगहृत् । ।
(वैद्यक नि०) फा०३
अरोचकं कर्फ श्वासं व्रणं कास कृमींस्तथा । कोष्ठं कुष्ठं ज्वरं चैव प्रमेहाध्मान नाशनम् ॥ कामलां नाशयत्येव गुणास्त्वन्ये तु पूर्ववत् । जलज कारवेल्लं स्यात्तिक्त' भेदकर मतम् ।। कर्फ कुष्ठं पांडुरोगं कृमीन्पित्तश्च नाशयेत् । वनजं कारवेल्लंतु दीपनं तिक्तक मतम् ।। हृद्यं ज्वराशः कासघ्नं कफवात कृमीहरम् ।
(रत्नाकरः) करेली-अत्यन्त कड़वी. अग्निप्रदीपक, हलकी, गरम, शीतल, दस्तावर, स्वादु पथ्य तथा अरुचि, कफ, वात, रुधिर विकार, ज्वर, कृमि, पित्त, पांडु रोग और कुष्ठ रोग को नष्ट करने वाली है।
करेला-कटु, तिक, दीपन, अवृष्य, भेदक, स्वादिष्ट, रुचिकारक, क्षार, हलका,वातकारक नहीं, तथा पित्तनाशक है और रुधिर विकार, पांडुरोग, अरुचि, कफ, श्वास, व्रण, खाँसी, कृमि, कोठ रोग कुष्ठ, ज्वर, प्रमेह. आध्मान और कामला रोग को दूर करता है । शेष गुण पूर्ववत् जानना चाहिये ।
जल में उत्पन्न होनेवालाकरेला-कड़वा; , भेदक, तथा कफ, कुष्ठ, पांडुरोग, कृमि और पित्त
रोग का नाश करता है। __ वन करेला-दीपन, कड़वा तथा हृद्य है और ज्वर, बवासीर, खाँसो, कृमि और वायु को नष्ट करता है। इसका फूल धारक और रक्त पित्त में हितकारी है।
करेले के वैद्यकीय व्यवहार सुश्र त-वातरक में कारवेल्ल-करेले को बेल के काथ द्वारा सिद्ध घृत वातरक्त में हितकारी है। यथा"कारवेल्लक काथमात्र सिद्धं वा"।
(चि...) चक्रदत्त-(1) ज्वर रोगी के शाकार्थ कारवेल्ल-ज्वर रोगी को करेले की शाक व्यवस्था करें। यथा" कारवेल्लकम् । ॐ शाकार्थे ज्वरिताय प्रदापयेत् ।” (ज्वर-चि०)।