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कलौंजी
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कैलाजी के लिये इसकी खेती होती है । इसके बीज वा ___ पृथ्वीका कटुतिक्तोष्णा वातगुल्मामदोषनुत् । - कलौंजी प्रायः सभी भारतीय बाजारों में सुलभ श्लेष्माध्मानहरा जीर्णा जन्तुघ्नी दीपनीपरा ॥ होती है। उत्तर भारतीय बाजारों में यह उत्तर
(रा० नि०) भारत बसरा और काबुल से आती है।
कलौंजी-ड़वी, चरपरी, उष्णवीर्य तथा वायु, , औषधार्थ व्यवहार बीज।
गुल्म. प्रामदोष, कफ, आध्मान और जंतुओं को रासायनिक संघटन-बीज के १०० भागों में नष्ट करनेवाली तथा परम दीपन है। ३७.५ भाग एक स्थिर तैल, •.५ भाग एक प्रकार उक्तोपकुश्चिकातिक्ता कटवी चोष्णा च दीपनी। का उड़नशील तैल, ८.२५ भाग अल्ब्युमेन, २
वृष्या चाजीर्ण शमनी गर्भाशय विशोधिनी ॥ भाग लबाब, शर्करा (वा ग्ल्युकोज़ ) २.७५ भार, सैन्द्रियकाम्म ०.६ भाग, मेटारबीन १.४ भाग,
आध्मानवात गुल्मश्च रक्तपित्तं कृमींस्तथा। हेलेबोरीन के तद्वत् मेलान्थीन १.४ भाग, भस्म
कर्फ पित्तं चामदोषं वातं शूलश्च नाशयेत् ॥ ४.५ भाग, आर्द्रता ७.४ भाग और अरबिकाम्ल कलौंजी-कड़बी, चरपरी, गरम, जठराग्नि ३.२ भाग इत्यादि इत्यादि। इनमें उड़नशील प्रदीपक, वृष्य, अजीर्ण नाशक, गर्भाशय को शुद्ध तैल ही इसका प्रभावकारी अंश होता है जिसमें करनेवाली है और प्राध्मान, वात, गुल्म, रक्रपित्त, (१) कार्वोन an unsaturated कफपित्त, आमदोष, बादी और शूल को नष्ट Ketone ४५ से ६०% प्रतिशत (२)कार्वीन करती है। Carven ( terpene or d-limone- ____ कलौंजी के वैद्यकीय व्यवहार ne) और (३) सायमीन Cymene-ये चक्रदत्त-रक्तपित्त में पृथ्वीका-रक्रपित्त द्रव्य होते हैं।
रोगी के उद्गार एवं निश्वास में रकगंध अनुभूत औषध-निर्माण-चूर्ण।
होने पर कलौंजी का चूर्ण द्विगुण चीनी के साथ मात्रा-आधे से २ ड्राम (वा आधे से सेब्य है । यथाभाना); टिंक्चर वा आसव-(१ पाइंट शुद्ध | "लोहगन्धिनी निःश्वासे उद्गारे रक्तगन्धिनि । सुरासार और २॥ पाउंस कलौंजी का चूर्ण इनसे
पृथ्वीकांशाणमात्रान्तु खादेद्विगुणशर्कगम् ।। यथाविधि तैयार किया हुआ)
(रक्रपित्त चि०) मात्रा-१ से २ प्लुइड ड्राम ।
भावप्रकाश-विषमज्वर में कालाजाजीआयुर्वेदीय योग-पञ्चजीरकपाक (भा०) कलौंजी का चूर्ण पुराने गुड़ के साथ सेवन करने कारव्यादि गुटिका ( यो० र०), कारव्यादि चूर्ण |
से विषमज्वर नष्ट होता है । यथा(च. चि. २६ अ.)
"कालाजाजी तु सगुड़ा विषमज्वर नाशनी।" इसकी प्रतिनिधि स्वरूप यरोपीय द्रव्य
(ज्वर चि०) प्रालियम् मेंथी पाइपरेटी, कैसकैरिल्ला बार्क और सैंटोनीन ।
युनानीमतानुसार-प्रकृति-द्वितीय कक्षा
में उष्ण और रूक्ष है। कानून में तृतीय कक्षा में __ गुण धर्म तथा प्रयोग
उष्ण और रूक्ष उल्लिखित है। कोई-कोई तृतीय श्रादुर्वेदीय मतानुसार
कक्षा में उष्ण और द्वितीय कक्षा में रूक्ष बतपृथ्वीका कटुका पाके रुच्यापित्ताग्निदीपनी ।
लाते हैं। श्लेष्माध्मानहराजीर्णाजन्तुघ्नी च प्रकीतिता ॥ __ हानिकर्त्ता-यह वृक्त और मूत्रावयवों को
(ध०नि०) हानिप्रद है तथा फुफ्फुस एवं उष्ण यकृत को कलौंजी-पाक में चरपरी, रुचिकारी, पित्त. हानिकर है और शिरःशूल उत्पन्न करती है। जनक, और अग्निदीपक है तथा यह श्लेष्मा, दर्पनाशक-(1) कतीरा और बंशलोचन माध्मान और जन्तुओं का नाश करनेवाली है। या सिरके में कलौंजी को भिगोकर खाना वा