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कस्तूरी
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कस्तूरी
उक्त कृत्रिम नाफे के मुख पर रख देते हैं और बँधा हुधा चर्मभाग इस जोरसे अंदर दबातेहैं कि उसका कुछ भी हिस्सा बाहर निकला दिखाई नहीं देता । अनजान व्यकि इस नाफ़े से ठगे जाते हैं।
(२) अमृतसर से यह नाफे बाहर को बेंचने के लिये नहीं जाते। प्रत्युत यहाँ के व्यापारी खुली हुई कस्तूरी कृत्रिम और मिलावट वालीही अधिक बेचते हैं और उसको वह निम्नलिखित रीति पर तैयार करते हैं। ___ जुन्दबेदस्तर नामक प्राणिज द्रव्य जो ऊद विलाव के वृषण होते हैं उन वृषणों के अंदर के भाग को सुखाकर चूर्ण कर लेते हैं । वह हलका कपिल वर्ण का होताहै। उसको रंगकर कत्थई बना लेते हैं और उसको लैनोलीन के मिश्रण से साधा. रणतः मृदु करके निम्नलिखित कृत्रिम कस्तूरी Musk ambrette, Musk ketone आदि छः सात प्रकार के कस्तूरी गंध द्रव्यों में से कोई उचित मात्रा में मिलाकर उसे कस्तूरी के नाम से बेंचते हैं।
(३) कुछ लोग जुन्दबेदस्तर को तैयार करके ।
उसमें कश्मीरी करसूरी मिलाकर उसे असली कस्तूरी के नाम से बेंच लेते हैं। यह दोनों प्रकार की कस्तूरी अमृतसर से अधिक बाहर को जाती है। (विज्ञान-अग० १६३५ ई.)
(४) इसमें कस्तूरी कला का भी मिश्रण होता है । प्रत्येक मृग नाभि में कस्तूरी निकालते समय एक तोला पीछे :॥, २ माशे कस्तूरी कला अवश्य निकल जाती है। श्राज से पन्द्रह बीस वर्ष पूर्व उक्त कला को लखनऊ के तम्बाकू बनाने वाले खरीद ले जाते थे और इसको डालकर मुश्की तम्बाकू बनाते थे। कस्तूरी की इस कला को "मदन" कहते हैं । उस समय यह कला ८) रु. से १२)रु० तोला तक बिक जाती थी और तम्बाकू में पूरा कस्तूरी का काम देती थी। पर जब से कस्तूरी के विलायती सेंट आये तब से तम्बाकू वाले इसको न खरीद कर सेंट डालते हैं इसीलिये इसकी बिक्री बंद हो गई । जहाँ जहाँ भी कस्तूरी के बड़े व्यापारी हैं, जब उनकी उन कस्तूरी कला की खपत बंद होगई तो वह इसको कस्तूरी में मिलाकर बेचने का प्रयत्न करने लगे। कस्तरी ।
के व्यापारी जिनके यहाँ कस्तरी कला अधिक निकलती थी, वे सिगरेट की तम्बाकू काटने वाली मशीन मंगाकर उस से कला को खूब बारीक करके उसे कस्तूरी में मिलाकर बेंचने लगे।
(५) इससे भिन्न तीन-चार और भी पदार्थों के मिश्रण इसमें करते हैं। जिनकी मात्रा प्रति तोला १, २, ३ माशे से अधिक नहीं होती। यह वस्तु सत्व मुलहठी, लता कस्तूरी धन सत्व, इसव गोल श्रादि हैं जो तैलान करके और वर्णयुक्त बनाकर मिलाये जाते हैं और सुगंधि विलायती सेंट की देते हैं । परंतु यह सब स्वाद के समय पहिचाने जाते हैं । इसलिये इनका मिश्रण कम हो गया है।
(श्रा. वि. जनवरी सन् १९३२) (६) इसमें शुष्क रक्त और यकृत प्रभृति निष्क्रिय द्रव्यों का मिश्रण करते हैं। वाणिज्य के हेतु कस्तूरी तैयार करते समय उसमें कलाय, गेहूं के दाने. जौ के दाने प्रभृति वानस्पतिक द्रव्यों का भी मिश्रण करते हैं। (पार० एन० चोपरा इं० १० इं० पृ० ४२५)
(७) कत्था, शिंगरफ, धूलिकण और चमड़े के टुकड़े इत्यादि दिया करते हैं। (ख. प्र.)
(८) लोग भैंसे के रंक में वा कस्तूरी मृग के खून में एमोनिया मिलाकर उसे सुखा लेते और कस्तूरी में मिलाकर अथवा उसकी सुगंधि देकर नकली कस्तूरी के रूप में बेचते हैं। सुतरां कस्तूरी में एमोनिया की गंध मात्र से उसकी प्रकृत्रिमता के प्रति संदेह हो सकता है।
किंतु साथ ही पुरानी असली कस्तूरीकी सुगंधि पुनः जीवित करने के लिये प्रत्यक्ष रूप से एमोनिया व्यवहार में लाते हैं । अतएव एमोनिया की गंधमान से कस्तूरी को एक दम नकली समझ लेना भी युक्रि युक्न नहीं है।
(प्रारो० वि० अप्रैल सन् १९५३) सारांश यह कि इस प्रकार की बनावटी कस्तुरी भी आजकल बाजारों में बहुत बिकती हैं। अस्तु, कस्तूरी खरीदते समय इन नक्कालों से सदा सावधान रहना चाहिये और इसे सदैव किसी विश्वास पात्र बड़े दुकानदार से खरीदनी चाहिये। यदि संभव हो तो उसकी परीक्षा करके देख लेनाचाहिये।