Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 649
________________ कस्तूरी २३८१ कस्तूरी ठोक उतरी हो, परंतु श्राज तो काल की कुटिल गति के प्रभावसे नई-नई वस्तुएँ सामने आ रही हैं बनाने के विधि-विधान निकल रहे हैं। ऐसी स्थिति में वह हजारों वर्ष पूर्व की किसी एक प्रकार की कृत्रिम कस्तूरी के लिये दी गई परीक्षा विधि क्या कभी पूर्ण उतर सकती है ? अतएव कृत्रिम और अकृत्रिम कस्तूरी की परीक्षा के लिये विज्ञान-वेत्ताओं ने अनेक पद्धतियों का आविष्कार किया है । परन्तु वे अत्यन्त क्लिष्ट एवं अव्यावहारिक हैं। अस्तु, उन्हें न देकर यहाँ कतिपय अन्य सरल व्यवहारोपयोगी विधियोंका ही उल्लेख किया जायगा | वे निम्न हैं . कृत्रिम कस्तूरी के शास्त्रोक्त लक्षण जो कस्तूरी छूने में चिकनी. जिसके धुएँ में गंध श्रावे ( धूमगंधा ) जिसे वस्त्र में रखने से वस्त्र पीला होजाय, अग्नि में डालने से तत्काल जलकर सब भस्म वा खाक होजाय, तौल में भारी हो अर्थात् कम चढ़े और मलने से रूखी होजाय, उस कस्तूरी को बनावटी समझ कर सेवन नहीं करना चाहिये । शुद्ध व मलिन जाति की कस्तूरी नपुंसक मृग और मृगी की होती है इसके अतिरिक्र और कोई दूसरी पहिचान नहीं, इसमें केवल एक सुगंध ही बड़ा चमत्कृत गुण है, जिससे यह काम का श्रृंगार मस्तक, कपोल, कंठ, भुजा और स्त्रियों के कुच मंडल में लगाई जाती है। (रा० नि०) कस्तूरी परीक्षा मृगनाभि दुष्प्राप्य, बहुप्रयुक्र एवं बहुमूल्य वस्तु है। प्रति तोला ३०) से लेकर.) तोला तक मिलती है। इसीलिये इसमें कृत्रिम वस्तुओं का सम्मिश्रण करके बेचने का लोभ लोगों में अधिक पाया जाता है। इस प्रकार का मिश्रण प्राचीन काल में भी होता था। इसीलिए शास्त्रों में इसकी परीक्षा के विधान का उल्लेख मिलता है। करतलजलमध्ये स्थापनीयात् भहद्विः । पुनरपितदवस्थां चिन्तनीयं मुहूर्तम् ।। यदि भवति स रक्तं तज्जलं पीतवर्णं । न भवति मृगनाभेः कृत्रिमोयोऽयं विकारः॥ (का०) अर्थात् हथेली में जल रखकर एक मुहूर्त मात्र तक उसमें कस्तूरी पड़ी रहने देव । यदि वह जल लाल वा पीला होजाय तो समझना चाहिये कि वह कस्तूरी असल नहीं, वरन् कृत्रिम वा बनावटी है। यह परीक्षा केवल उस समय सफल हो सकती है, जब कस्तूरी में शुष्क रक मिश्रित हुअा हो, अथवा मृग के रक्त को जमाकर कस्तूरी बनाई गई। हो, इससे भिन्न वस्तु मिलाकर बनाई हुई कस्तूरी की परीक्षा में उक्त नियम ठीक नहीं उतर सकता संभव है पूर्वकाल में पूर्वोक्त विधि से कृत्रिम कस्तूरी बनाते रहे हों, जिस समय यह परीक्षा (१) कस्तूरी की सबसे उत्तम परीक्षा तो उसे खाकर ही की जातो है। जो मनुष्य इसे सेवन करते हैं, वे स्वाद से भी मालूम कर लेते हैं। उनका कथन है कि असली कस्तूरी खाने में विशेष प्रकार की कटुता युक्र स्निग्ध होती है ।जैसी कटुता और स्निग्धता कस्तूरी में होती है, आज तक किसी भी नकली कस्तूरी में नहीं देखी गई । जुन्दवेदस्तर की वनी कस्तूरी स्वादरहित, फीको और कुछ दाँतों में चिपकनेवाली होती है। (२) दूसरी परीक्षा इसकी गंध की है ।पारस्य ख्यातनामा नीतिकार शेख सादी कहते हैं "मुश्क आँ कि खुद गोयद, नकि अत्तार ब गोगद ।" इस कथन का अभिप्राय भी यही है। असली विशुद्ध कस्तूरी विशेष गंधपूर्ण होती है तथा मुंह में डालते ही अपनी मदपूर्ण मुंह को भर देती है, जिससे चित्त प्रफुल्लित हो उठता है । घर में इसे खुला छोड़ रखने पर सारा गृह उसकी तीव्र सुगंधि से परिपूर्ण हो जाता है और वह सुरभि तब तक नष्ट नहीं होती, जब तक सम्पूर्ण कस्तूरी उड़ नहीं जाती। इस प्रकार खुला रहने देने से असली कस्तूरी उड़ जाती है । यद्यपि कस्तूरी के चार-पाँच ऐसे उत्तम विलायती सूखे सेंट पाये हैं, जो कस्तूरी की गंध रखते हैं और किसी भी वस्तु में मिला देने पर वह कस्तूरी की गंध देते रहते हैं, परन्तु इन सबकी गंध विशुद्ध कस्तूरी की अपेक्षा तीव्र होती है।

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