Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 636
________________ कसौजा २३६० कसौजा गोदुग्ध वा स्त्री-दुग्ध में पीसकर गरम करके वस्त्रपूत कर लेते हैं । इसे शिश्वाक्षेप निवारणार्थ प्रतिदिन दिन में एक बार देते है या उससे अधिक तर मात्रा (६ मा० वा ॥ डाम) में उसकी माता को अथवा स्तन्यदान करनेवाली धाय को देते हैं। सनाय की भाँति इसका भी विरेचनीय गुण भाग स्तन्य में श्रा जाता है। सर्पदंश में इसकी जड़ें कालीमिर्च के साथ पीसकर व्यवहार की जाती है। (फा०६०१ भ० पृ. ५२) नादकर्णी-कसौंदी की पत्ती जड़ और बीज रेचक है। इसकी जड़ मूत्रल और विषमज्वर प्रतिषेधक भी मानी जाती है। कसौंदी के भूनकर पिसे हुये बीज काफ़ी-कहवे की जगह व्यवहार किये गये हैं । भूनने से इनका औषधीय गुणधर्म विशिष्ट होजाता है। बीज कास (Congh) और कुक्कुर कास में भी उपकारी है। इसकी पत्तियों की मात्रा ४॥ माशे (१ • ग्रेन) है। साधारण क्षतों, कण्डू, फोस्का ( Blisters) प्रभृति पर इसके बीज, और पत्तियों को पीसकर उसमे स्नेह (Grease) मिलाकर लगाते हैं। फ्रांस और पश्चिमी भारतीय द्वीपों में ज्वरनाशक रूप से इसके बीजों का टिंकचर वा मद्य व्यवहार किया जाता है। इसकी जड़ का फांट नाना बिषों का अगद स्वरूप माना जाता है। यह ज्वर एवं वातजशूल (Neuralgin) में सेव्य है और ( Incipient) में भी उपयोगी है। चर्म रोगों में इसका प्रलेप करते हैं। योषापस्मार जन्य श्राक्षेप निवृत्यर्थ इसकी जड़ पत्ती और फूलों का काथ बहुमूल्य औषधि है। यह अजीण वात स्वभावी स्त्रियों के उदराध्मान को भी उपकारी होता है । ( ई० मे० मे० १८१-२) कर्नल चोपरा के मतानुसार यह औषधि ज्वर निवारक, विरेचक और सर्पदंश में उपयोगी मानी जाती है। कायस आर महस्कर के मतानुसार यह सर्प विष में निरुपयोगी है। कसौंदी की जड़ को मुंह में चबा-चबाकर जिसको बिच्छू ने काटा हो उसके कान में बार-बार कूक मारने से विष-वेदना शांत हो जाती है। (जंगलनी जड़ी बूटी) अन्य मत (1) कसौंदी का पंचांग लाकर जलांचे और राख को पानी में घोलकर स्थिर होने के लिये रख देवें। फिर ऊपर का पानी लेकर पका, जलांश जल जाने पर उतार लेवें और खुरचकर क्षार रख लेवें, पुनः काला नमक और शुद्ध प्रामलासार गंधक दोनों को २० ताले बहुगुणी (नै घास ) के मुकत्तर शीरे से खरल करें। जब सारा रस सुख जाये तब उसमें समभाग पूर्वोक्त क्षार मिश्रित कर रखें। मात्रा-एक रत्ती तक। यह रक्तविकार में असीम गुणकारी है । कुष्ठ और फिरंग के उपरांत यदि रक्रविकार से नाना तरह के कष्ट उठ खड़े होते हों तो इसका उपयोग अतीव लाभकारी सिद्ध होगा । (२) कसौंदी की जड़ एक तोला, कालीमिर्च १३ दाने, दोनों को पानी में पीसकर ज्वारके दाना प्रमाण गोलियाँ प्रस्तुत कर लेवें । जिस स्त्री के बच्चे मसाने रोग से मर जाते हों उसे गर्भधारण के तीसरे मास से एक गोली प्रातःकाल और एक सायंकाल मक्खन के साथ देना प्रारम्भ करें। प्रसवोत्तर शिशु को एक गोली दैनिक देते रहें। इससे बालक मसान रोग से सुरक्षित रहेगा। (३) दो-तीन दिन तक इसके काढ़े में अब गाहन करने से संक्रमण शील कण्डू के जीवाणु नष्ट प्राय हो जाते हैं और रोगी आरोग्य लाभ करता है। (४) शोषरोगाक्रांत होकर मरनेवाले शिशुओं को इसके काढ़े से स्नान कराना लाभकारी होता है। भारतीय ललनायें प्रायः इसे जानती हैं और समयानुकूल इसका उपयोग भी करती हैं। (५) वृश्चिक देश पर इसकी जड़ घिसकर प्रलेप करने से यह विष का शोषण करता है। (६) मकड़ी फर जाने और भिड़ वा सतैया के देश पर इसकी पत्ती मल देने से अवश्यमेव उपकार होता है। (७) इसके सुखाये हुये फूलों के महीन चूर्ण का नस्य कोड़े और मृगी के दौरे को रोक देता है।

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