Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 638
________________ कसौंजा ( ३३ ) इसकी जड़ ३॥ माशे, कालीमिर्च का चूर्ण १ ॥ माशे – इसके फँकाने से सर्पादि का विष उतर जाता है । २३७० ( ३४ ) इसके बीजों को पानी में पीसकर नेत्रों में लगाने से भी सर्प विष नष्ट हो जाता है । (३५) इसके दो या तीन पत्ते और २ या ३ कालीमिर्च - इनको पीसकर पिलाने से कामला ( यर्कान) रोग का नाश होता है । ( ३६ ) इसकी जड़ की छाल के चूर्ण को मधु में मिलाकर वटी प्रस्तुत कर बलानुसार १ से ४ माशे तक खिलाकर ऊपर से दूध पिलाने से वीर्य गाढ़ा होता है और शुक्र की वृद्धि होती है । ( ३७ ) इसके और मूली के के साथ पीसकर लेप करने से होता है। (३८) इसके पत्तों का काढ़ा पिलाने से हिचकी दूर होती है। इससे श्वास रोग भी जाता रहता है। 1 ( ३६ ) इसके पत्तों के ७ माशे रस में कुछ मधु मिलाकर नेत्र में टपकाने से नेत्रशूल दूर होता है। बीजों को गंधक श्वित्र का नाश (४०) इसकी ताजी फलियों को सेंक कर खिलाने से खाँसी आराम होती है । ( अनुभूत चिकित्सा सागर ) ( ४१ ) इसके नरम पक्षों की तरकारी बनाकर खिलाने से सूखी और गोली खाँसी; पेट के कीड़े और दमा नष्ट होते हैं । (२) काली कसौंदी - कसौंजे की जाति का एक चुप जो और मसृण होता सरल, शाखाबहुल है। पत्तियाँ ६-१२ जोड़े, भालाकार वा ( Oblonglancedate) श्रोर नुकली होती है। पत्र वृन्तमूल के समीप एक ग्रंथि होती है। पुष्पस्तवक शाखांत वा कक्षीय; पुष्प अल्प होते हैं; उपर्युक्त पुष्पदल वा पँखड़ी ( Retuse ) होती है । फली दीर्घ, क्षीण ( Linear ) समस्त ( Turgid) एवं मसृण होती है । इसमें बहुत से बीज होते हैं जो मटर की तरह अलग अलग कोषों में पड़े होते हैं । फूल मध्यम श्राकृति के और पीले होते हैं। इसके समग्र तुप से एक प्रकार की बहुत ही प्रिय दुर्गंधि श्राती है और क देखने में यह कुछ कुछ नील वर्ण का मालूम पड़ता है | इसकी जड़ तन्तुबहुल एवं काष्ठीय वा कड़ी होती है । मूलत्वक् कुछ कुछ काले रंग का होता है और देखने में ऐसा प्रतीत होता है मानो जलकर काला पड़ गया हो। इससे कस्तूरी वत् तीच्ण गंध धाती है । यह खाली पड़ी हुई ज़मीन में बरसात में उगती है और नवम्बर के महीने में फूलती है । इसका चुप कई वर्ष तक रहता है और बढ़कर काफी बड़ा हो जाता है। ( डीमक - फा० इं० १ भ० पृ० ५२१ - २ ) पर्याय काली कसौदी बास की कसौंदी, कसूदा - हिं० | सड़ी कसौंदी, जंगली तकला-दु० | पोन्नाविरै, पिरिय तकरै, पेड़ा- विरै - ता० । कास-मर्द्धकमु, तगर चेह पैडि तंगेडु, नुतिकशिंध - ० | पोन्नाम-ठकर, पोन वीरम् - मल० । कालकोसंदि - बं० । उरुतोर - सिंगा० । कैसिया सोफेरा Cassia Sophera, Linn. सेन सोफेरा । Senna Sophera, Roxb. लेo S. Escnlonla C. Coromenendeabna s Purpurea Ro und-pod cassia श्रं० | कण्टङ्कल - मरा० । कुधाडिके-गु० | डोड्डुतगाके - कना० । होडुतैकिलोको०] । शिम्बी वर्ग (N.O. Leguminosae.) उत्पत्ति स्थान - संसार के समस्त उष्ण प्रधान प्रदेश और भारतवर्ष में हिमालय से लेकर लंका पर्यंत सर्वत्र इसके चुप देखने में आते हैं । रासायनिक संघटन - पत्ती में कैथार्टीन, रंजक पदार्थ और लवण होता है। जड़ में एक राल और एक ति श्रचादीय सत्व होता है । औषधार्थ व्यवहार - मूल, मूलत्वक्, बीज और छाल । औषध निर्माण - फाण्ट ( Infusion ) चूर्ण, प्लाष्टर और अनुलेपन ( Ointment ) । गुणधर्म तथा प्रयोग आयुर्वेदीय मतानुसार — पूर्वोक्त नं० १ के अनुसार । वृंदमाधव, योगरत्नाकर, भैषज्य रत्नावली और चक्रदत्त के मतानुसार इसके पत्तों का

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