Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 640
________________ कसौजा २३०२ कसौजा काली कसोंदी सर्पदष्ट का अगद है और वर्षों कसौंदी के द्वारा कृष्णाम्रक की भस्म प्रस्त से इसका परीक्षण हो रहा है । ब्राझी लोग इसकी करते थे । जो राजयक्ष्मा और कास में गुणकारी ताजी लकड़ी लेकर सर्प के पास से निर्भयतापूर्वक होती है। निकलते हैं । जहाँ सर्प बहुतायत से हों वहाँ (२) पारदभस्म-इसके उसारा वा रस में इसकी बड़ी नई टहनी हाथ में लेकर चले जाँय, पारे को पालोड़ित करने से इसके कण पुनः सर्प भाग जावेगा। आपस में नहीं मिल सकते हैं। अर्थात् पारे को यदि सर्प ने काट लिया हो, तो इसकी पत्ती एक सप्ताह पर्यन्त इसके उसारे में भालोड़ित करने १ तोला वा बीज ४ माशे, काली मिर्च तीन दाने. से वह चूर्ण रूप में परिणत होजाता है और पानी में एकत्र पीसकर कई बार पिलायें, इससे उसके अवयव रासायनतः परस्पर इस प्रकार संघविष जन्य प्रभाव नाश हो जायेगा । दष्ट स्थान टित नहीं हो सकते कि पुनः पूर्ववत् पारदीय रूप पर तुरत इसकी पत्ती का भुड़ता बाँधने से यह में प्रकट हो, प्रत्युत पारद का वह चूर्ण रूप एक विष को अभिशोषण कर लेता है। इसकी जड़ प्रकार स्थिर सा हो जाता है । इसी प्रकार एक घिसकर लगाने से दाद और चंबल श्राराम होता सप्ताह पर्यन्त और अालोड़ित करने से, पाराभस्म है । इसका चूर्ण वीर्यस्तम्भक, शीघ्रपतन निवारक होजाता है। कोई-कोई रसायनविद् पारद वटिका और स्वप्नदोषनाशक है । इसकी जड़ नीबू के रस को मृदुअग्नि पर रखकर कसौंदी के उसारे का में घिसकर लगाने से आँख का काँवर (कँवल, चोभा देते हैं और उसी के उसारे में पकाते हैं । यौन ) दूर होता है । शोथ ( इस्तिस्का लहमी) इससे उक पारदीय गोली ऐसी दृढ़ एवं धन स्थिर शोथ विशेष (सूयुल किन्यः) यकृदावरोध, हो जाती है कि वह फिर साधारण अग्नि पर पृथक यकृत काठिन्य निवारणार्थ एवं प्रांतरिक रूह नहीं हो सकती है। (अख़ह बातिनी) के उपकारार्थ एक तोला (३) शीसक भस्म-कसौंदी से सीसाभस्म इसकी जड़ तीन दाने कालोमिर्च के साथ पीसकर होजाता है । इसकी विधि यहहै-सीसे के बुरादा पिलायें । आँवलासार गंधक को इसकी पत्ती के को तीन दिन तक कसौदी के रस में खरल करके रस में बारीक पीसकर एक कपड़े पर फैलाकर कसोंदी के पावभर पत्तों की दो टिकियों के भीतर आमवात रोगी के विकारी संधियों एवं अन्य रखकर पांच सेर उपलों की अग्नि देवें। शीतल स्थलों पर इसे चिपका देवें ओर ऊपर से १५ होने पर निकाल कर कसौदी की पत्ती की राख मिनट तक स्वेदन करें इससे विकारी द्रव्य विलीन को हवा देकर उढ़ा देवें, फिर सीसे की भस्म को होते हैं, पीड़ा कम हो जाती है एवं नाड़ियों उसी के रस में पुनरपि एक मास पर्यन्त पालोको बल प्राप्त होता है । इससे स्रोतों का उद्घाटन डित करके टिकिया बनाकर शराब संपुट कर पाँच होता है और सूजन उतरजाती है। उक वनस्पति सेर उपलों की दूसरी भाग दे देवें। श्यामता पुरातन कास के लिये अतीव गुणकारी है। यहाँ लिये भस्म तैयार होगी। तक कि चातुम्पद जीवों के कास तक का निवारण मात्रा और सेवन-विधि-एक रत्ती यह भस्म करती है। गाय के मसका के साथ अथवा किसी अन्य उप- इसके फूल पकाकर खाने के काम में आते हैं। युक्त अनुपान के साथ सेवन करें यह द्वितीय कक्षा सूजाक की प्रथमावस्था में इसके पत्तों को काली- के सूजाक तथा अन्य रोगों में भी लाभकारी है। मिर्च के साथ पीसकर पिलाना चाहिये । फिरंगीय (४) प्रवालभस्म-पाँच तोले प्रवाल को क्षतों पर इसके पत्तों का रस लगाने से उपकार महीन पीसकर उसमें पंजाज़ी ( कसौंदी ) का होता है। इसके पत्तों का काढ़ा पिलाने से उदरस्थ मुक़त्तर शीरा थोड़ा-थोड़ा डालकर यहाँतक खरल कृमि नष्ट होते हैं । (अनुभूत चिकित्सा सागर) करें कि पूरा १ सेर शीरा अभिशोषित होजाय । कसौंदी द्वारा प्रस्तुत खनिज भस्में घोंटने में इस बात का ध्यान रखें कि शीरा डाल (१) कृष्णाम्रा-राने वैद्य-हकोम प्रायः . कर खरल पड़ा न रहने देवे, प्रत्युत मालोदित

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