Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 643
________________ करतूरी कस्तूरियून कस्तूरियून- यू०] जुन्दबेदस्तर । कस्तूरि-वेण्ट-वित्त-[ मल० ] मुश्कदाना | लता कस्तूरी। कस्तूरि-वेण्डैक्काय-विरै-[ता० ] मुश्कदाना । लता कस्तूरी । मुश्कभिंडी। कस्तूरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० (१) एक सुगंधित द्रव्य जो एक विशेष जातीयमृग (कस्तूरी मृग) की नाभि से निकलता है। यह बहुमूल्य वस्तु है और केवल औषध में ही उपयोगित नहीं होती, अपितु अपनी गंध विशिष्टता के कारण विलासी रमणियों और विलासो पुरुषों के लिये मनोमुग्धकारो ईश्वरीय देन है। पर्या-कस्तूरका, मृगमदः, मृगनाभिः, मृगाण्डजा, मार्जारी, वेधमुख्या, गन्धमु, मदनी, गन्धचेलिका (ध० नि०), कस्तूरी, मृगनाभिः, मदनी, गन्धचेलिका, वेधमुख्या, मार्जाली, सुभगा, बहुगन्धदा, सहस्रवेधी, श्यामा, कामानन्दा, मृगाण्डजा, कुरङ्गनाभी, ललिता, मदः, मृगमदः, श्यामली, काममोदी, (रा. नि०), मृगनाभि, मृगमद, सहस्रभित्, कस्तूरिका, कस्तूरी, वेधमुख्या, (भा०), मदाह्वः (त्रि०) मृगनाभिजा, गन्धधूलिः, (हे.), मृगमदः, कस्तूरी (अ.), मृगः, मृगी, नाभि, मदः (भ०), अण्डजा (वि०.), कस्तुरिका, नाभि, लता, योजनगन्धा, गन्धबोधिका, मार्गः, कालागी, धूपसञ्चारी, मिश्रा, गन्धपिशाचिका (शब्दर०), वातामोदः, योजनगन्धिका ( रभसः ), मदनी, गन्धकेलिका, वेधमुख्या, मार्जारी, सुभगा, बहुगन्धदा, सहस्रवेधी, श्यामा, कामान्धा, मृगाण्डजा, कुरङ्गनाभिः, ललिता, श्यामलता, मोदिनी, कस्तुरिका, कस्तूरीमृगाण्डजः, कस्तुरीमल्लिका, गन्धशेखर, मदलता, योजनगंधा, मार्ग, सहस्रभित् -सं० । कस्तूरी, मुश्क-हिं०, द०, मृगनाभि । कस्तूरि, कस्तूरीबं० । मिस्क, मुस्क, मिश्क, मुश्क, शज.-अ.। मुश्क-फ्रा० । मास्कस Moschus-ले। मस्क Musk-अं० । कस्तूरी-ता० । कस्तूरि, कस्तूरिपिल्लि, कस्तूरी, ते०। कस्तूरि-मल०, कना०, सिंगा। कस्तुरी-मरा। कस्तूरि, मुश्कगु०। कडो-बर। जबत-मल। स्थाटनहियाङ्ग (मृग सुगंधि)--चीन । नोट-यद्यपि कस्तूरी शब्द का प्रयोग प्रायः ऐसी सभी वस्तुओं के लिये होता है जिनमें कस्तूरी के समान सुगंध होती है। तथापि कस्तूरी शब्द केवल एक विशेष जातीय हिरन अर्थात् कस्तूरी मृग की नाभि से प्राप्त सुगंध-द्रव्य के अर्थ में रूढ़ हो गया है और मात्र कस्तूरी शब्द का उक द्रव्य के अर्थ में मर्यादित प्रयोग होता है। प्रस्तु, अन्य कस्तूरि गंध विशिष्ट द्रव्यों के साथ तव्य बोधक विशेषण का भी उपयोग किया जाता है। यथा, जबादि कस्तूरी, लता कस्तूरिका प्रभृति । इनमें से प्रथम प्राणिज द्रव्य है और अंतिम वानस्पतिक द्रव्य । कस्तूरी की लेटिन और बांग्ल संज्ञाएँ प्रारब्य मुस्क शब्द से व्युत्पन्न हैं । इसकी संस्कृत एवं हिंदी संज्ञा जुन्दबेदस्तर की युनानी संज्ञा कस्तूरी (कस्तूरियूल) का पर्याय जान पड़ती है। कस्तूरी गन्ध विशिष्ट प्राणिवर्ग और वनस्पति वर्ग-यह पढ़कर अतिशय प्रसन्नता होगो कि कस्तूरी गुण स्वभावी सुगंधि पदार्थ दुनियाँ के विविध भागों में रहने वाले प्राणि और वनस्पति दोनों वर्गीय जीवों में पाये जाते हैं। जेरार्डीन Gerardin के मत से निम्न सूचीगत प्राणी कस्तूरी वा कस्तूरी वत् सुगंध-द्रव्य का निर्माण करते हैं यथ-नर कस्तूरी मृग; गंधमाऔर, जुद ( Castoneum); हिरन विशेष The gazelle (Antilope dorcas) The marten (Mustela foina ) कहते हैं कि इसका विष्ठा कस्तूरीवत् गंध देता है; पाल्प पर्वतजात छाग विशेष (Capra ilvex) इसका सुखाया हुआ रन कस्तूरी की तरह महकता है। कस्तूरा वृष The Muskox (Ovib. os moschatus); जेबू (Bosindicus) कस्तूरा बत्तन The musk-Duck (Anas moschata) जो जमैका और कायने के स्वर्ण-तट पर पाया जाता है। नील नदी जात कुम्भीर ( Nile Crocodile (Crocodilus Vulgaris): विविधि भाँति के कच्छपों तथा भारतीय साँपों में भी कस्तूरी-गंधी द्रव्य पाये जाते हैं।

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