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कस्तूरी
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किंचित् अम्ल होता है । इससे कागज पर पीले दाग पड़ जाते हैं | जलाने से यह मूत्रवत् गंध देती है और लगभग ८ प्रतिशत तक धूसराभ भस्म अवशेष रह जाती है ।
इसमें अमोनिया, श्रोलीइन, कोलेष्ट्रीन, वसा, मोम, जेलाटिनस ( सरेसीय ) पदार्थ और अल्युमिनीय पदार्थ उपादान रूप से पाये जाते हैं। इसके ज उपरांत श्रवशिष्ट रही हुई भस्म में प्रधानतः क्लोराइड श्राफ सोडियम तथा पोटाशियम और कैलसियम क्लोराइड् से होते हैं । arsata aftaran (Steam Distillation ) एवं तदुत्तर कालीन परिशोधन द्वारा कस्तूरी से स्वल्प प्रतिशत मात्रा में एक प्रकार का पिच्छिल (Viscid ) वर्णरहित, मृगमद की प्रियगंध मय तैल प्राप्त होता है। यह कीटोन ( Kotone ) सिद्ध होता है । श्रतएव मस्कोन (Muskone) à afufga fàur गया है ।
स्वगंध शक्रि, अक्षुण्णता और स्थिरता के लिये मृगमद सुविख्यात है । सुतराम् उसके समीप में स्थित प्रत्येक वस्तु उससे प्रभावित होकर दोर्घकाल पर्यंत गंध-धारण तम हो जाती है । श्रतएव सुगंध - द्रव्यों में इसे अत्युच्च श्रासन प्राप्त है । यद्यपि अधुना यह अकेली प्रयोग में नहीं छाती, तथापि श्रन्य सुगंधियोंको शक्ति और अक्षुण्णता एवं स्थिरता प्रदान करने के लिये इसका प्रचुर प्रयोग होता है । साबुन थोर सोंदर्यवर्द्धक चूर्णों को सुगंधि प्रदान करने और तरल सुगंधियों में मिलाने के हेतु गंधी लोग इसके सेंट का व्यवहार करते हैं। कपूर, बालछड़, ( Valerian ), कडुए बादाम, लहसुन, हाइड्रोस्थानिक एसिड,
ट चूर्ण, सौंफ ( Tennel ), स्नेहमय बोजों जैसी वस्तुओं के संयोग से अथवा देर तक गंधकाम्ल की लौ पर शुष्कीभूत करने से कस्तूरी की गंध पूर्णतया विलुप्तप्राय हो जाती है । परन्तु आर्द्रता और वायु में खुला रखने से वह पुनः लौट आती है ।
उत्तम कस्तूरी के लक्षण -
खाने से जो स्वाद में कड़वी, रंग में पीली, केतकी के फूल के सदृश गंधवाली, तौल में हलकी ७८ फा०
कस्तूरी
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और पानी में डालने से जिसका रंग बदले, वह कस्तूरी राजाओं को सेवनीय है । पुनरपि जो कस्तूरी केतकी के फूल के सदृश गंधवाली हो, वर्ण वा रंग में जो हाथियों के मद को हरे अर्थात् हाथी के मद के समान रंगवाली, स्वाद में कड़वी तथा चरपरी; तौल में हलकी ( जो बहुत चढ़े ) मलने से चिकनी हो जाय, श्रग्नि में डालने से जले नहीं, वरन बहुत देर तक चिमचिम शब्द करे और चमड़ा जलने की सी गंध श्रावे वह मृग केतन से उत्पन्न मृगनाभि की कस्तूरी राजाधों के सेवन योग्य है । बालक, वृद्ध, क्षीण और रोगी मृग की कस्तूरी मंद गंधवाली तथा कामातुर और तरुण मृग की कस्तूरी बहुत उज्ज्वल और अतीव सुगंधिक होती है। ( रा० नि० ) सबसे उत्तम कस्तूरी का वर्ण कत्थई होता है । जिस कस्तूरी का वर्ण घुले हुये कत्थे जैसा निकले तथा नाने के भीतर कुछ काले श्यामदाने भी हों और उसकी गंध तीव्र हो, खाने पर कटु स्वादी और प्रियगंधी हो, वह सर्वोत्तम होती है । तिब्बत की कस्तूरी प्रायः इसी वर्ण की निकलती है । नैनीताल और अल्मोड़े को कस्तूरी का वर्ण इससे हलका होता है, उसमें श्यामता अधिक होती है, रायपुर, बिसहर और कुल्लू की इससे भी अधिक श्याम होती है। कश्मीर की कस्तूरी तो श्याम ही होती है 1
कस्तूरी भेद
राजनिघण्टु के मतानुसार वर्ण भेद से कस्तूरी तीन प्रकार की होती है - कपिलवर्ण, पिङ्गलवर्ण श्रौर कृष्णवर्णं । इनमें से नेपाल में उत्पन्न होने वाली कपिलवणं श्रर्थात् भूरे ( Cliush black) रंग की, काश्मीर में उत्पन्न होने वाली पिङ्गल वर्ण की, और कामरू ( कामरूप ) देश में उत्पन्न होनेवाली काले रंग की होती है। किंतु भाव मिश्र के मत से नेपाल देश की कस्तूरी नीले रंग की और काश्मीर की कपिल वर्ण की होती है। इनके मतानुसार कामरू देश में उत्पन्न होने वाली श्रेष्ठ, नेपाल देश जात उससे मध्यम और काश्मीर देश में उत्पन्न होने वाली श्रधम होती है।
नोट- कामरूपी कस्तुरी ही कदाचित श्रासाम की कस्तूरी ( Assam Musk) है, जिसका