Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 637
________________ कसौज २३६६ (८) इसके भुने हुये बीजों में समभाग चीनी मिलाकर इसमें से ३ माशे खिलाने से aftart और प्रवाहिका का नाश होता है । भेदक में कसौंदी के रस - उसारे का नश्य उपकारी होता है । ) ( १०) सूजन पर इसके पत्तों की टिकिया बाँधने से यह उसे पका देती और उसके उपरांत फोड़कर मवाद निकाल देती है । फिर गोघृत के साथ लगाने से उसका पूरण करती है । (११) दूध में इसका उसारा मिलाकर नाक में प्रधमन करने से मस्तिष्क गत कृमियाँ निःसृत होजाती हैं । इसी प्रकार इसे कान में टपकाने से कर्णशूल मिटता है । (१२) योषापस्मार में इसका काढ़ा ि गुणकारी होता है । वातज दोषों के निवारण के द्वितीय है । (१३) रसकपूर को इसके उसारा में एक मास पर्यंत श्रालोड़ित करके महीन पीसकर रख लें। इसमें से 4 रत्ती औषध दही में मिलाकर दो दिन खिलाकर दो दिन छोड़ देवें । इसी प्रकार दो दिन खिलाकर दो-दिन छोड़कर सेवन करते रहें। पूरे दो सप्ताह के सेवन से फिरंग रोग समूल नष्ट होता है। इससे मुँह नहीं श्राता । यह स्मरण रखना चाहिये कि दिन में केवल एक वार प्रात: काल सेवन करायें । (१४) कसौंदी के बीज १५, काली मिर्च २ दाने, दोनों को घोट-पीसकर सुबह-शाम पिलाने से रक्तार्श सम्यक् रूप से नाश होता है । इससे बहुश: रोगी आरोग्य हुये हैं । (१५) इसके पत्तों का काढ़ा पिलाने से सूती कीड़े, दाना और केचुए प्रभृति उदरस्थ कृमि नष्ट होते हैं। इसके बाद कोई रेचन देकर कोष्ठ शुद्धि कर देखें । (१६) बारीक पिसे हुये कसौंदी के बीज १५ तो०, पीपल ३ मा०, काला नमक ३ मा० इनको पानी में पीसकर चने प्रमाण की वटिकायें प्रस्तुत कर लेवें । यह कृच्छ्रश्वास और कफज कास को लाभकारी है। ( १७ ) यदि मसूड़े ढीले पड़ गए हों और दाँत से रक्त स्राव होता हो, तो इसके समस्त सुप ७७ फा० के काढ़े से कुलियाँ करने से उपकार होता है । (जड़ी बूटी मै ख़वास ) (८) इसके पत्र, मूल और बीज विष दूर करते हैं और विकृत दोषों का उत्सर्ग करते हैं । इसके पत्तों का काढ़ा पिलाने से कुकुर खाँसी श्रीराम होती है । ( १६ इसकी जड़ का फांट वा काथ पिलाने से कई तरह के विष उतरते हैं । (२०) इसके संपूर्ण श्रवयव सारक हैं । इसकी जड़ का फांट मूत्रवर्द्धक है । ( २१ ) इसके पत्तों को कथित करके अथवा भिगोकर पीने से कण्डू एवं त्वचा के श्रन्यान्य रोग विनष्ट होते हैं । इसके पत्तों का प्रलेप भी इन रोगों को 'दूर करता है। (२२) इसके पत्तों को पीसकर सद्योजात क्षत पर लगाने से उसका फौरन पूरण होता 1 ( २३ ) इसके पके बीजों को पीसकर दाद पर लेप करते हैं । (२४) खुजली पर भी इसके बीजों को पीस कर लगाते हैं । (२५) इसके बीजों को भून-पीसकर इसका क्वाथ करें, इसे अकेला या कहवे के साथ पिलाने से कुनैन की तरह प्रभाव करता है । ( २६ ) इसके बीजों का काढ़ा पिलाने से पसीना घाता है । (२७) इसके बीजों को काँजी के साथ पीसकर लेप करने से दद्र, कुष्ठ प्रभृति चर्म रोग नाश होते हैं । ( २८ ) शेर की मूछों के बालों का जो ज़हर चढ़ जाता है, उसे उतारने के लिये इसके पत्तों का रस तीन दिन पिलाना चाहिये । ( २६ ) इसकी जड़ कागज़ी नीबू के रस में घिसकर लगाने से दाद जाता रहता है । (३०) इसकी जड़ को मुख में चाबकर, उलटे कान में फूँक देने से बिच्छू का जहर उतरजाता है । ( ३१ ) इसके पत्र और कालीमिर्ची को पीसकर लेप करने से कंठमाला मिटती है । ( ३२ ) इसके फल खिलाने से या इसके बीज पीसकर लेप करने से बिच्छू का जहर उतरता है ।

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