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कल्काजाम्प
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कल्काजाम्प - संज्ञा पु ं० ( देरा० ) हंसराज | काली झाँप | परपियावशाँ ।
लेह |
क़ल्क़ास - [ रू० ] अरवी । श्ररुई घुइयाँ । कुल्क़ास कल्पक - अवलेह - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] दे० कल्याण ( श्रु० ) । [ल्कासी - [ सिरि० ] अरवी । घुइयाँ । कल्किधर्म-संज्ञा पुं० [सं० पु ] विभीतक । बहेड़ा | रा० नि० व० ११ ।
कल्किवृक्ष, कल्कि धर्मध्न - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] बड़े का पेड़ । विभीतक का वृक्ष । रा० नि० व०
११ ।
कल्काल - [अ० ] ( १ ) वत । सोना । छाती । (२) हँसी की हड्डी का दरम्यान । झूठी पसलियों का भीतरी रुख़ । कल्कल् ।
क़ल्क़निया - [ यू० ] राल । रावीनज । कल्क़ूस–[ यू० ] ताँबा ।
ककोरा - [ बं० ] लाल सिरिस ।
कल्ग़ा - संज्ञा पु ं० [देश० ] नुस्तान अफ़रोज़ महूरा। कल्चंग - [ फ्रा० ] केकड़ा | कल्च : - [ फ्रा० ) गेहूं की छोटी सफेद ख़मीरी रोटी । कल्त - [ [[ ] बहु० कलात ] ( १ ) पत्थर के भीतर का वह गड्ढा जिसमें पानी इकट्ठा हो जाय । (२) पतला दुबला श्रादमी ।
क़तुत्तनु वः - [ • ] हँसली के ऊपर का गड्ढा । Supra Clavicular Fossa
क़ल्तुरु : - [ अ ] घुटने के पास का गड्ढा | क़ल्तुल् इव्हाम - [ श्रु० ] अँगूठे की जड़ के पास का गड्ढा |
कल्तुल ए ेन - [ श्रु० ] आँख का गड्ढा | नेत्रगुहा | Optac Fossa
कल्प-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] ( १ ) विधान | विधि |
कृत्य । ( २ ) रोग मुक्ति । ( ३ ) कल्प वृक्ष | रा० नि० व० २० । ( ४ ) वैद्यक के अनुसार रोग निवृत्ति का एक उपाय वा मुक्ति । जैसे, केश-कल्प | काया कल्प | ( ५ ) प्रकरण | विभाग । जैसेऔषध कल्प |
कल्पलता वटी
वि० [सं० क्रि० ] ( 1 ) कल्पना करनेवाला । रचनेवाला । काटनेवाला ।
संज्ञा पुं० [सं० की ० ] मद्य । मदिरा । कल्पक - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) नाई । नापित । श० मा० । ( २ ) कचूर । कचूर | भा० पू० १ भ० ।
कल्पतरु -संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) कल्पवृत्त । ( २ ) सुपारी का पेड़ । क्रमुक वृत्त । रा० नि० ० ११ । ( १ ) एक रसोषध जो ज्वर में परमोपयोगी है।
पारा, गंधक, सिंगिया विष और ताम्र भस्म तुल्य भाग पीसकर पंच पित्तों की पाँच दिन भावना दें । पुनः सम्भालू के रस की सात भावना दें। ३ सरसों प्रमाण की गोलियाँ बनाएँ ।
अनुपान - कजली, पीपर, उष्ण जल । गुण तथा प्रयोग विधि - सात सात गोली करके २१ गोली तक बढ़ाएँ । इसके प्रभाव से २१ दिन में साध्य जीर्ण ज्वर, विषम ज्वर, ज्व रातिसार, संग्रहणी, कामला, श्वास, खाँसी और शूल नष्ट होता है । इसको खाकर कपड़ा छोड़कर सो जाना चाहिये, पसीना होकर ज्वर मुक्र हो जाता है । (भैष २० | उर चि० । ) कल्पद्रु, फल्पद्रुम-संज्ञा पुं०
[सं० पु० ] ( १ ) कल्पवृक्ष । ( २ ) छोटे अमलतास का वृक्ष | हूस्वारग्वध वृक्ष | सोनालू । वै० निघ० । कल्पन - संज्ञा पु ं० [सं० की ० ] ( १ ) रचना ( २ ) काटन | कर्त्तन |
कल्पना - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) सवारी के लिये हाथी की सजावट । श्रम० । ( २ ) रचना | बनावट | सजावट |
कल्पनाथ, कल्फ़नाथ - संज्ञा पुं० [देश० ] ( १ ) दे० "कलफ़नाथ" । ( २ ) एक पेड़ | (Justicia paniculata-)
I
कल्पनी—-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कत्तरी । कर्तनी । कैंची । हे० च० ।
कल्प पादप-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] (१) कल्प वृक्ष । ( २ ) गिलोय |
कल्पलता - संज्ञा स्त्री० सं० बी० ] ( १ ) कल्प वृक्ष । ( २ ) बहेड़े का पेड़ ।
कल्पलता वटी - - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ग्रहणी रोग में
प्रयुक्त होने वाला उक्त नाम का एक योग-मीठा तेलिया, शिंगरफ, धत्तूर बीज, प्रत्येक १२-१२