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कलियारी
अगर योनि में शूल हो, तो कलिहारी या श्रोंगे की जड़ को योनि में रखो ।
अगर कान में कोड़े हों तो कलिहारी की गाँठ का रस कान में डालो ।
अगर साँप ने काटा हो, तो कलिहारी की जड़ को पानी में पीसकर नास लो ।
गाय बैल आदि को बंधा हो- दस्त न होता हो, तो उन्हें कलिहारी के पत्ते कूटकर और श्राटा में मिलाकर या दाने सानी में मिलाकर खिला दो, पेट बंध छूट जायगा ।
अगर गाय का अंग बाहर निकल श्राया हो
दोनों हाथों में लगा सामने ले
जाश्रो दोनों
जाय, तो
तो कलिहारी की जड़ का रस कर, दोनों हाथ उसके श्रंग के अगर इस तरह अंग भीतर न हाथ उस अंग पर लगादो और को गाय के मुँह के सामने करके वह भीतर ही रहेगा, बाहर न निकलेगा । चि० चं० ५ भ० पृ० ६१-६ ।
फिर उन हाथों दिखादो। फिर
बिषगाँठ ( Whitlow ) नामक रोग में कलिहारी की जड़ बकरी के दूध में पीसकर उँगली पर मोटा लेप करने से शीघ्र लाभ होता है । लेखक | कलिहारी की जड़ का कल्क १ तो०, शतावर का कल्क १ तो०, धतूर की पत्ती का स्वरस ४ तो० और लहसुन का रस ४ तो०, कटु तैल SI, यथाविधि तेल सिद्ध करें । गठिया रोग में शोथ युक्त संधियों पर इस तेल के मालिश करने से वहुत उपकार होता है । - लेखक |
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कलिहारी, दंती, सिंगिया (बछनाग), संखिया, ( सोमल ), पाषाणभेद समभाग पानी में पीस कर नाभि, योनि और वस्ति में लेप करने से मरा हुआ गर्भ शीघ्र निकल आता है ।
कलिहारी को पानी में घिसकर उसमें फाहा तर करके योनि में रखने से मासिक धर्म जारी होता है।
कलिहारी, सिरस के बीज, अर्क दुग्ध, पीपल, धा नमक, इनको सम भाग लेकर गोमूत्र में पीसकर बवासीर पर लेप करने से बवासीर नष्ट होता है।
कलियारी
कलिहारी और सिरस की छाल समभाग कांजी
में पीसकर गुदस्थान पर लेप करने से बवासीर के मस्से नष्ट होते हैं । इसके कंदके कल्क में चतुगुण बेल और इतना ही निर्गुण्डी का स्वरस मिला कर तेल सिद्ध कर लेप करने से अथवा नस्य लेने से अपचि (कंठमाला ) आराम होती है ।
विधिवत् शुद्ध की हुई कलिहारी को दो रत्ती की मात्रा में सेवन करने से पुरुषार्थ बढ़ता हैं ।
कलिहारी; अतीस, कड़वी तुम्बी के पत्र, मूली समभाग काँजी में पीस कर लेप करनेसे सब कोटों का विष नाश होता है ।
कलिहारी १६०, धतूरे का फल आधी छँ०, सोंठ आधी छँ०, अजवायन आधी छँ; अफीम 4 तो०, सरसों का तेल || सेर, यथाविधि तैल सिद्ध करके मालिश करने से सब प्रकार के वातज शूल और सूजन दूर होती है ।
कविराज श्यामाचरणदास लिखते हैं कि इस कंद को पानी में घिसकर हाथ को हथेजी भोर पैर के तलवे पर लेप करनेसे और इसकी गांठ को कमर में बांधने से सुखपूर्वक प्रसव हो जाता है । परन्तु प्रसव होते ही उस गांठ को तुरत खोल देना चाहिए ।
बम्बई में यह कृमिनाशक मानी जाती है। यह कृमिपीड़ित जानवरों को भो देने के काम में ली जाती है ।
. मदरास में यह सर्प और बिच्छू के विष को नष्ट करनेवाली मानी जाती है ।
गाना में इसकी जड़ को स्नायुशूल दूर करने के लिए पुल्टिस को तरह काम में लेतें हैं । कलिहारी द्वारा विषाक्तता -
वैद्यको पंच वा सप्त उपविषों में से कलिहारी भी एक उपविष है । यदि इसे बे क़ायदे या अधिक खा लिया जाय, तो दस्त लग जाते हैं और पेट में बड़े ज़ोर की ऐंठन और मरोड़ होती है । तीव्र वमन और श्राप आदि लक्षण होते हैं । बीच-बीच में कभी थोड़े समय के लिए उक्त लक्षण शमन होते हुए जान पड़ते हैं । परंतु पुनः वे ही लक्षण श्रा उपस्थित होते हैं। जल्दी उपाय न होने से मनुष्य बेहोश होकर और मल टूट कर