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कलियारी
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फलियारी
४, कर प्रसूता स्त्री के हाथ-पाँव के तलवों पर लेप
करने से वह शीघ्र गिर जाती है। यथा"लांगलीमूल कल्केन पाणिपाद तलानि हि ।। प्रलिम्पेत् सूतिका योषित अमरापातनाय नै"
(मूढगर्भ-चि.) नोट-इसका कन्द स्त्री के हाथों में बाँध देने से भी सुखपूर्वक प्रसव होता है। रसरत्न समुच्चय-मूढगर्भ निर्हरणार्थ कलिहारी मूल-शतावरी, कलिहारी, दंतीमूल, बच्छनाग
और पाषाणभेद-इन सब औषधियों को बराबर बराबर लेकर पानी में पीसकर पेड़, और पेट के ऊपर लेप करने से मूढगर्भ अर्थात् श्रादा गर्भ शीघ्र प्रसव हो जाता है। राजमातएड-दाढ़के दर्द में कलिहारीकंद-कलिहारी के कंद को पानी में पीसकर दाहिनी दाढ़ में दर्द हो | तो बाँए हाथ के अंगूठे के नख पर और बाई दाढ़ | में दर्द हो, तो दाहिने हाथ के अंगूठे के नख पर | लगाने से दाद का कोड़ा मर कर गिर जाता है | और दर्द सदा के लिये जाता रहता है।
वक्तव्य चरक के "दशेमानि" वर्ग में लांगली का पाठ नहीं पाया है, परन्तु विष चिकित्सा (चि०२५ अ.) एवं कुष्ठचिकित्सा में लांगली का उल्लेख पाया है। सुश्रुत के कल्प स्थानके द्वितीय अध्याय में स्थावर-विष-वर्ग का विवरण लिखित है । वहाँ पाठ प्रकार के मूल विषों के मध्य 'विद्युज्ज्वाला' का उल्लेख दृष्टिगत होता है । विद्युज्वाला लांगली का ही नाम है। सुश्रुत के श्लेष्म संशमन वर्ग (सू० ३६ अ०) में लाङ्गलको पाठ पाया है। महर्षि चरक, सुश्रुत ओर प्राचार्य वाग्भट ने सूतिकागार, गर्भसंग, पुष्पावरोध, अपरापातन श्रादि में कलिहारी का विशेष उपयोग किया है।
यूनानी एवं नव्य मतानुसारप्रकृति-तृतीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष । मात्रा-प्रारम्भ में आधी रत्ती, फिर क्रमशः बढ़ाकर १-१ माशा दिन में दो-तीन बार दे सकते हैं।
यह अत्यन्त नशा उत्पन्न करती है, जिससे मृत्यु तक की नौबत पहुँचती है।
गर्भिणी स्त्री की पीड़ा अभिवृद्धयर्थ कलियारी की जड़ पीसकर उसके पेड़, तथा भगोष्ठों एवं रोमों पर प्रलिप्त करते हैं।
यदि आँवल न निकल सके, तो इसकी जड़ पीसकर हथेलियों और तलवों पर लेप करना चाहिये अथवा उसकी बत्ती बनाकर गर्भाशय में स्थापित करना चाहिये। इसके अतिरिक्त कृष्णाजाजी और पीपर का चूर्ण मदिरा के साथ सेवन करायें।
यह कफ विकृति तथा प्रामाशय-प्रांत्रीय क्षतों को उपकारी है। यह दस्तावर तथा गर्भस्रावकारी है । इसका प्रलेप ऐसे उदरजात फोड़े को लाभकारी है, जो कफ के अवरुद्ध हो जाने से प्राविभूत हुआ हो। .. इसे पीसकर किंचित् नाभि, पेड़ ओर भग पर
मलने से गर्भपात होता है और प्रसव पीड़ा अभिवर्द्धनार्थ भी इसका उपयोग होता है।
इसकी जड़ पीसकर मधु मिला प्रलेप करने से कंठमाले की सूजन उतरती है।
इसे नीबू के रस में पीसकर कान में टपकाने से पूय का नाश होता है और कीड़े नष्ट होते हैं। ___ इसे पारे और मूली के पत्तों के पानी के साथ पीसकर पिंडली के फोड़े-फुन्सी पर, जिनको मालवे में 'बेनी' और दक्षिण में 'एसन' कहते हैं, तीन दिन मर्दन करने से यह उन्हें शुष्क कर देती है।
ख. १०॥ इसका शोधन-क्रम यह हैसर्जन-मेजर थामसेनजब इसमें फल पा जावें तब नर पोधे की जड़ ( Dichotomous) जमीन में से निकाल कर उसके पतले पतले वर्क काटकर, उन्हें किंचित् लवणाक तक में रात्रि भर भिगो रखें। फिर इन्हें दिन में निकालकर सुखा लेवें। इसी प्रकार ४-५ दिन तक निरन्तर करने से इसके विष का जोर कम पड़ जायगा। इसके उपरान्त इनको साफ करके और सुखाकर रख छोड़ें।
प्रयोग–यदि किसी व्यक्ति को कृष्ण सर्प काट खाय, तो उन वों में से २-४ रत्ती तक अथवा