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कुटीद्वार - संज्ञा पु ं० [सं०] कान के बीच की कोठरी का मुँह | (Fenestra vestibuli)
प्र० शा० ।
कर्णकुटी संबंधिनी कुल्या-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] | ( Scala Vestibuli) कान की एक कुल्या विशेष |
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करणकुहर-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] कान का बिल । कान का छेद | करन्ध्र । ( Concha ) प्र०
शा० ।
कर्णकूपकश्वसेक -संज्ञा पु ं० [सं० पु ं० ] एक प्रकार का जीव जो जल में श्रधोगण्ड के द्वारा श्वास लेता है। शामुकादि इसी श्रेणी के जीव हैं ।
कृमि -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] शतपदी । कनखजूरा ।
कर्ण कोटि-संज्ञा स्त्री० [सं०] ( Auri cular point.) श्रं० शां०।
कर्णग-संज्ञा पु ं० [सं० पु ं० [] शब्द | आवाज़ |
वि० [ सं० त्रि० ]( १ ) कान में गया हुआ कर्णस्थित । (२) कान तक फैला हुआ । कर्ण । कर्णगण्डमाल-संज्ञा पु ं० [सं० क्ली० ] कान के भीतर होनेवाला एक प्रकार का व्रण । यह कृमि और दुर्गन्धि से युक्त होता है ! ब० रा० । कर्णगूथ-संज्ञा पु ं० [ सं॰ पु ं०, क्ली० ] कान की मैल
कर्णमल । खूँट । हारा० । कर्णगूथक - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] कान का एक रोग जिसमें पित्त की गरमी से सुखाया हुआ कफ कर्णगूथ ( कान की मैल ) होजाता है । यथापित्तोष्म शोषितः श्लेष्मा कुरुते ( जायते ) कर्णगूथकम् ।" मा० नि० । सु० उ० २० श्र० । तैल वा स्वेद प्रयोग से ढीलाकर शलाका द्वारा कान की मैल निकाल डालना चाहिये | ( चक्रपाणि) कर्णछिद्र-संज्ञा पु ं० [सं० क्ली० ] कान का छेद | कर्णरन्ध्र ।
कजलूका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कनखजूरा । कजलीका । श० र० । शतपदी । चित्राङ्गी । रा० नि० १३ ब० ।
कर्णनाद
कजलौका ( का: ) - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०, पुं॰] कनखजूरा । गोजर । शतपदी । काणकोटरी (बं०) हे० च० | श्र० टी० भ० ।
कर्णजालूक - संज्ञा पु ं० [सं० पु ं०] कनखजूरा । कर्णजलौका । केन्नुई ( बं० ) ।
कजा - संज्ञा पुं० [सं०] एक रोग जिसमें वातादि दोष ऊपर के द्वारों में प्राप्त होकर, मांस और रुधिर को दूषित करके कान में बवासीर वा मस्से पैदा कर देते हैं जिससे बहरापन, कान में दर्द और दुर्गंधि हो जाती है । यथा
प्रकुपिता दोषाः श्रोत्राक्षि घ्राण वदनेष्वस्युपनिवर्त्तयन्ति । तत्र करण जेषु वाधिर्यं पूर्ति - कर्णता च । सु० नि० २ श्र० । कान का बवा सीर ।
कर्णजाह -संज्ञा पु ं० [ सं क्ली० ] कान की जड़ । कर्णमूल ।
कर्णजीरक-संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] छोटा जीरा । चुद्र जीरक | रत्ना० ।
कज्योति - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कानफोड़ा |
कस्फोटा | वै० विघ० ।
करतल - संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] ( Auricular surface) अ० शा० ॥
का दुःख बधन-संज्ञा पुं० [सं० नी० ] त्रिदोष जन्य एक प्रकार का कान की बीमारी। इसमें दाह खाज, शोध और पाक होता है । कर्णदुन्दुभि - संज्ञा स्त्री०
[सं० स्त्री०] कनखजूरा | शत
[सं० स्त्री० ] हाथी की
पदी । कर्णधारिणी - संज्ञा स्त्री० मादा । हथिनी । कनाड़ी -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कान की नाड़ी । कर्णनाद - संज्ञा स्त्री० [सं० पुं० ] ( 1 ) कान में सुनाई
पड़ती हुई गूँज | घनघनाहट जो कान में सुन पड़ती है । (२) एक रोग जिसमें वायु के कारण कान में एक प्रकार की गूँज सी सुनाई पड़ती है । माधव निदान के अनुसार इसमें कान के छेद में स्थित वायु कान भेरी, मृदंग और शंख की तरह अनेक प्रकार के शब्द रात दिन पैदा किया करती है । उनके अनुसार जब शब्दवाहिनी नाड़ियों में वायु केले अथवा कफ के साथ स्थित