Book Title: Aayurvediya Kosh Part 03
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 576
________________ कलम्बुट कलम्बुट - संज्ञा पु ं० [सं० की ० ] ( १ ) नैनी घी | नवमीत | मक्खन । ( २ ) हैयंगवीन | ताजे दूध का घी । हारा० । कलम्बू-संज्ञा खी० [सं० स्त्री० ] करेमू । कलमी साग । श० २० । कलंबे की जड़ - संज्ञा स्त्री० [ कलंबा +की+जड़ ] बीखे कलंब: । कलंबा की जड़ । कलंबो-[ कों० ] मु ंडी | [ फ्रां०] कलंबा | कलयञ्ज -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] राल । सर्ज रस । वै० निघ० । २३०८ कलया - [अ०] सज्जी । श्रशख़ार । कलया - [ फ्रा० ] सज्जी | [ सिरि० ] दर्द मंतन | [ रू० ] कर्श । श्रोझड़ी | क्क़लयून - [ यू० ] इसबगोल । क़लयूस - [ यू० ] सज्जी । श्रशख़ार । कलर कोडी - [ ता० ] कठकरंज । कुवेराक्षी | कलरलेस आयोडीन - संज्ञा स्त्री० [ ० Colourless Iodine ] वर्णं रहित टिंक्चर आयोडीन । दे० "श्रयोडम्” । कलरलेस फ्लुइड गोल्डेन सील- संज्ञा पुं० [ श्रं० Colourless golden seal ] हाइड्राष्टिस डिकलरेटा । कलरव - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) मधुर शब्द । कल ध्वनि । ( २ ) पालतू कबूतर | गृहपारावत । श्रम ० । ( ३ ) कोकिल । कोयल । रा० नि० व० १६ । ( ४ ) जंगली कबूतर । वनकपोत । वै० निघ० । कलराई - [ केनावार ] कटकाई । पलूदर । रेवड़ी (झेलम) । कलरु - संज्ञा पु ं० [देश० ] गुलू । कुलू । कतीरा । कलरुख - [ मरा० ] शीशम । सीसो । कलई - [ कनावार ] पलुदर । रेवड़ी । चर्म 1 संज्ञा पुं० [सं० पु०० नी० ] ( १ ) मिश्रित 'शुक्रशोणित रूप गर्भ । ( Fertilized __ove कलश um) : अ० शां०। ( २ ) सेल समूह ( Morula ) ह० श० र० । नोट - शुक्र और शोणित का प्रथम विकार 'कल' कहलाता है । गर्भ के प्रथम मास कलल बनता है। सुश्रुत के अनुसार ऋतुस्नाता स्त्री के स्वप्न मैथुन आचरण करने से गर्भ रह जाता है । किंतु उस गर्भ में अस्थि प्रभृति पैतृक गुण नहीं होता । इसी से 'कलल' मात्र निकल पड़ता है । कललज - संज्ञा पुं० [सं० पुं० ] ( १ ) गर्भ । हमल (२) राल । रा० नि० व० १२ । कललजोद्भव -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] साक्ष का पेड़ । शाक्ष का वृक्ष । रा०मि० ६० ३ । कललावी - [ गु० ] कलिहारी । कवी - [?] करौंदा | कल - [ बा० ] पीलू । झाल । कलकी काय - [ ते ० ] करौंदा । करमई । 1 कलल-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] जरायु । गर्भवेष्टन- कलवेल - [ मल० ] हुरहुर । हुलहुल | कलवर्टस रूट - संज्ञा पुं० [ श्रं० Culvert's root. ] दे० "लेप्टैण्ड्रा " । कलवा - [ ? ] कमोद | लु० क० । [ फ्रा० ] मलूक | [ बर० ] ढाकुर । कलवारी - [सिंध] का वेर । कलवा सफ़ेद - संज्ञा पुं० [देश०] कखििम । कलविङ्क - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] ( १ ) चटक । गौरैया । श्रम० । रत्ना० ६ । पर्य्या : - कुलिंग, कालकण्टक-सं० । आव प्रकाश में कलविंक को शीतल, स्निग्ध, स्वादु, शुक्र एवं कफकारक और सन्निपात नाशक लिखा है । गृहचटक अतिशय शुक्रकारक है । ( २ ) कलिंदा | तरबूज़ | कलिंगक वृक्ष । ( ३ ) पारावत | कबूतर । ( ४ ) ग्राम्यचद्रक | देहाती गौरैया । मे० कचतुष्क । (५) काला गौरैया । कृष्ण चटक | सु० सू० ४६ श्र० । सफेद चँवर । श्वेत चामर । कलविङ्की - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] चटका । मादा गौरा । पा० कलश-संज्ञा पुं० [सं० पु० सी० १) पानी रखने का बरतन । घड़ा ! कलशी गगरा । ० प्र० १ ख० ।

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