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करेला
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करला
* इसके पत्तों का रस पिलाने से प्रान्त्रस्थ कृमि | इसके फल-स्वरस में राई और लवण चूर्ण का मृत प्राय होते हैं।
प्रक्षेप देकर विवृद्ध प्लीहा रोगी को सेवन कराना ___ इसके रस का लेप करने से दाद मिटता है। चाहिये । करेले के रसमें चाक वा खड़ी मिट्टी मिलाकर परिवर्द्धित यकृत रोगी को इसके रस में इन्द्रालगाने से मुंह के छाले मिटते हैं।
यन मूल चूर्ण का प्रक्षेप देकर पिलाना चाहिये । सिर पर इसके रस का लेप करने से पीवयूक्र | ___ इसके दो तोले रस में थोड़ा मधु मिलाकर , फुसियाँ मिटती हैं।
पिलाने से विसूचिका दूर होती है। अग्निदग्ध पर इसके लेपसे तजन्य दाह शमन शीत ज्वर में शीत लगने से पूर्व इसके रस में होता है।
जीरे का चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिये । शिशुओं को इसके पत्तों का रस पिलाने से | सूखा करेला सिरके में पीसकर गरमकर लेप दस्त आते हैं।
करने से गलशोथ मिटता है।
-करेले की समग्र नोट-यूनानी चिकित्सक करेले को संग्राही लता, दालचीनी, पीपल, और, चावल इनको | मानते हैं । इसके विपरीत वैद्यगण इसे मृदुरेचक तुवरक तैल (जंगली बादाम के तेल ) में मिला- | मुलय्यन मानते हैं । ख० अ.. . कर लगाने से कण्डू एवं अन्य चर्मरोग आराम | ___ वह करेला जिसकी कद् वाहट दूर न की गई .. होते हैं । (फा० ई.. २ भ० पृ. ७८).
हो, केचुत्रों को निकालता है । यह मूत्र प्रवर्तक इसकी जड़ संग्राही और उष्ण है। इसकी जड़ | और अश्मरी छेदक भी है तथा कफरेचक है। घिसकर बादी के मस्सों पर लेप करते हैं। . . इसके पत्तों का रस लेप करने से पैर के तलुओं : अश्मरी में इसकी सेवन-विधि यह है-इसके का दाह शमन होता है।
हरे पत्तों का रस ३ तोले लेकर ॥ तोले दही के इसे आँख के बाहर चतुर्दिक लगाने से रतौंधी साथ खिलाकर ऊपर से ५-६ तोले छाछ पिलादे : जाती रहती है।
इस प्रकार तीन दिन तक करें। उसके बाद ३ नवजात शिशु के मुह में करेले की पत्ती तोड़- दिन तक दवा बंद करदें। उसके बाद फिर चार कर रखने से उसके सीने और अंतड़ी का मवाद रोज़ तक दवा देकर फिर चार रोज के लिये बंद मैल और आँव निःसरित हो जाती है।
करदें। फिर पाँच दिन तक दवा देकर पाँच दिन इसके पत्तों को श्रौटाकर पिलाने से प्रसूता के लिये दवा बंद करदें। इस प्रकार ७ दिन तक नारियों का रक्त शुद्ध होजाता है और स्तन्य की वढ़ावें । पथ्य में केवल खिचड़ी और चावल ही वृद्धि होती है।
देना चाहिये। यह अश्मरी में बहुत लाभ इसके पत्तों के रस में सोंठ, काली मिर्च और करता है। पीपल के चूर्णका प्रक्षेप देकर लेप करने से आर्तव
नव्यमत नियत मात्रा में आने लगता है।
आर० एन० खोरी-यह कृमिघ्न, मूत्रकर, इसके फल का लेप करने से फोड़ों की खुजली स्तन्यवर्द्धक, प्रात्तवरजःस्रावकारी एवं वायुनाशक और गरमी मिटती है।
है । विरेचक एवं विक्रभेषज सुगंधिकरणार्थ इसके पत्तों का रस सिरके के साथ पिलाने से इसका व्यवहार होता है। प्रसवोत्तर इसका काथ कै होती है।
पीने से गर्भाशयद्वार संकोच प्राप्त एवं स्तन्य इसके पत्तों के रस में हड़ घिसकर पिलाने से वर्द्धित होता है। कृमि के लिए भी यह हितकारी कामला रोग आराम होता है।
होती है । विषमज्वर, ग्रहणी, अग्निमांय, अजीर्ण . इसका फल सामान्य कोष्ठ मृदुकर है। इसके ओर अतिसार में यह चित्रकमूल के साथ जठराकच्चे फल के रस को गरमकर लेप करनेसे गठिया ग्न्युद्दीपक (Stomachic) और वातामिटती है।
नुलोमक रूप से व्यवहार की जाती है। भार्गव