________________
कमल
कमल
चार पाँच झड़ जानेवाली पत्तियाँ होती हैं में बहुसंख्यक पंखड़ियाँ या दल होते हैं जो पतन शील एवं अनेक पंक्रियों में विन्यस्त होते हैं। सब फूलों के पंखड़ियों या दलों को संख्या समान नहीं होती । पंखड़ियों के बीच में केसर से घिरा हुश्रा एक पुष्पधि वा छत्ता होता है जिसमें बीज निमजित होते हैं। कमल के बहुसंख्यक पीले केसर छत्ते के चतुर्दिक कतिपय पंक्तियों में विन्यस्त होते हैं और पंखड़ो एवं केसर पुष्पधिमूल से संलग्न होते हैं । गर्भकेशर चिह्न ( Stigma) वृन्तशून्य होता है । सूखे फूल का रंग भूरा होता है। कमल की गंध भ्रमरों को अत्यन्त मनोहर लगती है। मधुमक्खियाँ कमल के रस को लेकर मधु बनाती हैं. यह पद्ममधु नेत्ररोगों के लिये उपकारी होता है। भिन्न-भिन्न जाति के कमल के फूलों की प्राकृतियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। उमरा (अमेरिका) टापू में एक प्रकार का कमल होता है जिसके फूल का व्यास १५ इंच और पत्ते का व्यास साढ़े छः फुट होता है। पंखड़ियों के झड़ जरने पर छत्ता बढ़ने लगता है और थोड़े दिनी में उसमें बीज पड़ जाते हैं। बीज गोल-गोल लम्बोतरे होते हैं और पकने तथा सूखने पर काले हो जाते हैं और कमलगट्टा कहलाते हैं। इनका छिलका कड़ा होता है । इसके भीतर एक सफेद रंग की महीन झिल्ली होती है। इसके भीतर किंचिन्मधुर सफ़ेद रंग की गिरी निकलती है जो बादाम की तरह दो फॉकों में विभक्त होती है। कच्ची गिरी जो कड़ी न पड़ी हो अत्यन्त सुस्वाद होती है। मींगी के भीतर जीभ की तरह एक हरे रंग की पत्ती होती है। यह स्वाद में कड़ई होती है। कच्चे कमलगट्टे को लोग खाते और उसको तरकारी बनाते हैं. सूखे दवा के काम में आते हैं। कोई-कोई इसे ही भ्रमवश मखाना (मखास) मानते हैं । परन्तु मखाना इससे सर्वथा एक भिन्न वस्तु है । यद्यपि यह भी एक जलीय पौदा है और प्राकृति आदि में बहुतांश में कमल के समान होता है, तथापि यह कमल नहीं। पूर्ण विवरण के लिये दे० "मखाना"।
कालिदास ने पुष्कर-बीज-माला का उल्लेख किया है। कमल की जड़ मोटी और छिद्रयुक्त |
होती है और भसीड़, भिस्सा वा मुरार कहलाती है तोड़ने पर इसमें से भी सुत निकलता है। सूखे दिनों में पानी कम होने पर जड़ अधिक मोटी और बहुतायत से होती है। लोग इसकी तरकारी बनाकर खाते हैं। अकाल के दिनों में.. लोग इसे सुखाकर आटा पीसते हैं और अपना पेट पालते हैं । इसके फूलों के अंकुर वा उसके पूर्वरूप प्रारम्भिक दशा में पानी से बाहर आने के पहले नरम और सफेद रंग के होते हैं और पौनार कहलाते हैं। पौनार खाने में मीठा होता है।
रंग और आकार के भेद से इसकी बहुत सी जातियाँ होती हैं, पर अधिकतर लाल, सफ़ेद और नीले रंग के कमल देखे गये हैं। कहीं-कहीं पीला कमल भी मिलता है। एक प्रकार का लाख कमल होता है जिसमें गंध नहीं होती और जिसके बीज से तेल निकलता है। रक कमल भारत के प्रायः सभी प्रांतों में मिलता है। इसे संस्कृत में कोकनद, रनोत्पल, हलक इत्यादि कहते हैं। कोकनद अर्थात् रक्रपन गरमी में स्फुटित होता है और वरसात में इसके बीज परिपक होते हैं । रक और श्वेत पन की जड़ कीचड़ में बहुत दूर तक प्रतान विस्तार करती है। मूल अंगुष्ठतुल्य स्थूल अत्यन्त मसूण, लालरंग के चिह्नों से युक्त
और अन्त: शुषिर होता है। पुराने पेड़ की जड़ कहीं-कही मनुष्य की मुख्याकृति के तुल्य मोटो हो जाती है। रक्रपद्म की पंखड़ी का रंग एक दम लाल नहीं, अपितु गुलाग के फूल की पंखड़ी के रंग का अर्थात् गुलाबी होता है। पंखड़ी का मूलदेश फीका गुलाबी एवं अग्रभाग की ओर का रंग क्रमशः गाढ़ा हो जाता है । पन को “शतदक्ष' कहते हैं, पर दल वस्तुतः सर्वत्र एकशत होते देखा नहीं गया-एक पद्म-पुष्प में दलों की संख्या प्रायः २०-७० तक देखी गई है। पुष्प के सभी दल प्राकृति में समान नहीं होते-वाम दल मुद्र
और उसका पृष्ठ हरे रंग का होता है, मध्यदल वृहत्तर एवं प्रांतर दल पुनः इस्वाकृति का हो जाता है । जल की गहराई के अनुसार नाल डंडी की लम्बाई न्यूनाधिक होती रहती है । नाल प्रतीक्षणानकांटों से व्याप्त होता है।