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कुबार
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[ [अ०] फ्रा०, क़बार - [ यू० ] कबर | कबरा | क़बारदम्बदोस - यू० ] कुन्नावरी । बारस - [ यू० ] कबर । कबरा । कबारसीन - रू० ] सरो ।
सिरि] कबर । कबरा ।
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कबास - [ श्र० ] पीलू का फल जो पककर काला पड़ गया हो ।
कबिता - संज्ञा स्त्री० [सं०] अंबाड़ी | कवित्थ-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] कैथ का पेड़ | श्र० टी० । दे० "कपित्थ" ।
कत्थक-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] कपित्थ । कबित्थ कैथ
बीता हूरिया - [ सिरि० ] फ़ाशरा | शिवलिंगी | कबीर - [ ० ] सुगीर का उलटा ] बड़ा । महत । बृहत् | Great, Large, Magnus. - [?] गौरा की जाति का एक पक्षी । क्रुबुरः ।
चकावक ।
क़बारीस - [ यू०] कबर । कबरा । कबारूस - [ फ्रा० ] हर्शफ का एक भेद । कबालक़श - [ ? ] जबर्द ।
कबीरुलू अश्जार- [ श्रु० ] बरगद | वट |
कबाश -[ ? | एक प्रकार का लौंग, जिसका शिर कबीरू - [ ख़ुरा०] शीरख़िश्त का वृक्ष | हो
बड़ा
1
कुबूद ] जिगर
।
कविद–[ श्रु० ] [ बहु० अक्बाद,
कलेजा । यकृत । -
कबिल - वि० [सं० त्रि० ] कपिल । भूरा ।
तामड़ा ।
संज्ञा पुं० [सं० पु० ] तामड़ा वा भूरा रंग कपिल वर्ण ।
कबिस्ते तल्ख - [ फ्रा० ] इन्द्रायन |
कबीच : - [ फ्रा० ] सिरेशम ।
कबीक - [ फ्रा० ] Ranunculus sccleratus, Linn.) जंगली करस का भेद । जलधनियाँ | देवकाँडर । जलवेत दे० "देवकाँडर" |
कबीठ - संज्ञा पुं० [सं० कपित्थ, प्रा० कविट्ठ ] (1) कैथ का पेड़ । ( २ ) कैथ का फल |
कबीत - [ [०, फ्रा० ] कैथ ।
"
कबी, कपि - [ ० ] ( १ ) लंगूर । ( २ ) एक कीड़ा । (क़ ) क़बीत: - [ श्रु० मिठाई ।
] बर्फ़ी नाम की प्रसिद्ध
कबीतः, कबीता - [ फ्रा० ] वर्फी नामक पकवान । कलाकंद | नातिफ़ ।
कबीता दसराबाहु. मरा
कबीता कमना, कबीता अकमीन, कबीता अलमना - [ ० ] फ्राशिरस्तीन ।
}
कबूतर
[ सिरि० ] अंगूर की बेल ।
( Fraxinus Rotundifolia, ) कबीला - संज्ञा पु ं० दे० 'कमीला' । कबीश - कंबर |
बीस - [ ० ] मूली ।
क़बीह-[अ० ] [ बहु० क़वाइह, क्रवाह ] ( १ ) बाजू की हड्डी का वह सिरा जो केहुनी से मिलता है । ( २ ) पिंडली ओर रान की हड्डी का जोड़ । (३) बुरा | भोंड़ा । कुरूप |
कबुदु - [फ़ा॰ ] एक प्रकार की ईख । बुक - [ राजपु० ] पीयूष । पेडस ।
कबुलि -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] जंतु के देह का पश्चात् भाग जानवर के शरीर का पिछला हिस्सा |
कबूक - संज्ञा पुं० ( १ ) चकवा पक्षी । (२) चकोर पक्षी |
कबूतर - संज्ञा पुं० [फ़ा॰ मिलाश्रो, सं० कपोतः ] [स्त्री० कबूतरी ]
कबूतर - एक पक्षी जो कई रंगों का होता है। और
जिसके श्राकार भी कुछ भिन्न भिन्न होते हैं। पैरों में तीन उँगलियाँ श्रागे और एक पीछे होती है । यह कीटभक्षी जीव नहीं है । यह अपने स्थान को अच्छी तरह पहचानता है श्रोर कभी भूलता नहीं । यह झुण्ड में चलता है। मादा दो अंडे देती है । केवल हर्ष के समय गुटरगूं का अस्पष्ट स्वर निकालता है । पीड़ा के तथा और दूसरे अवसरों पर यह नहीं बोलता । इसे मार भी डालें तो यह मुंह नहीं खोलता । पालतू श्रोर जंगली भेद से कबूतर दो प्रकार का होता है। पालतू के पुनः निम्न उपभेद होते हैं—
(१) गोला, (२) बुग़दादी - काबुली, (३) नसावरा, (४) लोटन, (५) लक्का |