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कनाई
२०५६
कनाबिरी [१०] मकोय ।
किंचित् चरपरे एवं तिक्त होते हैं। पत्ते एक-एक [१०] बांस
बित्ता दीर्घ होते हैं। तना पतला होता है । फूल कनाई-संज्ञा स्त्री [सं० कांड] (१) वृक्ष वा पौधे | सफेद और छोटा होता है । वीज फली में होते हैं।
की पतली व कोमल डाल वा शाखा । कनई। फली की प्राकृति चने के फल जैसी होती है। (२) कल्ला । टहनी, नवपल्लव ।
प्रत्येक फली में राई के दाने की तरह के ४-४बीज कनाकचू-संज्ञा पु [देश॰]
होते हैं। ___एक प्रकार का पौधा । कच्च की एक जाति
(३) हकीम उलवीखाँ के अनुसार इसके कनाकीनूस-[रू०] उक़हवान । बावूना गाव ।
पत्ते बथुये के पत्तों जैसे होते हैं और उन पर कुछ कारियः ।
रोाँ होता है। उत्तम वह है जिनकी शाखायें
किंचित् सुखी लिये हों। कनागी-[ कना. ] जंगली जायफल । रान जायफल ।
(४) बुहांन में लिखा है कि यह एक प्रकार कनागली-[ कना० ] कनेर।
का साग है जो मौसम बहार के उगता है। स्वाद क़नागीरस-[ यू० ] मरोडफली।
तीव्र एवं झालदार होता है। इसे ताजा पकाकर कनात-[१०] [ बहु० कनबात, किना] (१)
खाते हैं सूख जाने के बाद गायों को खिलाते हैं। मकोय । (२)प्रणाली । नाली । नल । मजरी
प्रकृति-प्रथम कक्षा में उष्ण एवं रूत । (१०)। (३) छोटी नहर ।
किसी-किसी के अनुसार द्वितीय कक्षा में रूक्ष है। नोट-शारीर शास्त्र की परिभाषा में शरीरगत
कोई-कोई कहते हैं कि यह गरमी में सम प्रणाली वा रसादिवहा नाड़ी को कहते हैं। नाली.
शीतोष्ण है। कंद नाली । मजरी (अ०)। Canal Duct
हानिकर्ता-वायु उत्पन्न करता है। प्रधानतः Tube
इसका अचार । दर्पघ्न-पकाना, घी या तिलतैल कनाद-[फा०] एक पक्षी । दरशान ।
प्रभृति में भूनना, काबुली हड़ और खाँड़। कनादर-[अ०] गधा । गदहा । गर्दभ ।
प्रतिनिधि-कबर की जड़। कनाबरीदास-[यू०] तेलनी मक्खी।
गुणधर्म-उष्ण और शीत दोनों प्रकार की कनाबिरी-[अ०, नन्त ] एक प्रकार का साग जो प्रकृति वालों को सात्म्य है । यह सीने और फेफड़े
बसंत ऋतु में उत्पन्न होता है । इसके पत्ते पालक का शोधन करता है। यकृत, फुफ्फुस और प्लीहा के पत्तों की तरह परन्तु उनसे बड़े होते हैं। फूल गत रोधों का उद्घाटन करता है । यह मूत्र प्रवर्तक सफेद और छोटा होता है। इसमें फलियाँ लगती है । इसके खाने से दूध बढ़ जाता है । यह प्रार्तव हैं जिनमें बीज होते हैं। स्वाद चरपरा होता है। प्रवर्तक है, मलावरोध का निवारण करता है और
पय्यो०-बर्गश्त-खुरा० । बरंद, बलंद-फा० कामला ( यर्कान) रोग को नष्ट करता है। इसका सत्तरह-शीरा० । मोजह-असफ़० । अम्लूल, प्रलेप अर्श के लिये उपकारी है । योनि में इसकी कम्लूल, स.म्लूल, फूहक, शज्रतुल बहक-अ० । पिचु वर्ति धारण करने से गर्भाशय गत शोथ कनावेरी ।
विलीन होता है। यह झाँई तथा व्यङ्ग का निवाभिन्न मत-१) वादादी के अनुसार यह रण करता है, हर प्रकार के जहर के लिए कल्याण एक प्रकार का जंगली साग है, जिसके पत्ते कासनी कारी है । और सांद्र दोषों का उत्सर्ग करता है। सहराई (जंगली कासनी) के पत्तों से छोटे, इसके लेप से सूजन मिटती है। यह स्तनव्रण को स्वाद में किंचित चरपरे और कड़वे होते हैं। फूल मिटाता है । इसके पत्तों के लेप तथा उसके स्वरस सफेद एवं बारीक होता है। वीज भगमैला और से साधित तैल के अभ्यंग से माई (बहक छोटा होता है।
सफेद) मिटती है । अरब निवासी इसको पह(२) तुहमतुल मोम्नीन में लिखा है कि चानते हैं और इससे बहक सफ़ेद अर्थात् छींप या इसके पत्ते पालक्यपत्रवत् होते हैं। स्वाद में ये | झॉई का उपचार करते हैं । (ख० अ०)