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PORE
कपास
इसकी मींगी को बारीक पीस शहद में मिला आंख में लगायें, तो गई हुई नींद पुनः आने लगती है।
इसका तेल खाने के काम आता है। किसी किसी दशा में यह साफ़ किये हुये तेल का भी काम देता है। मालूम हुआ है कि बिनौले का तेल खाने में भी मधुर स्वाद युक्त होता है। इसमें सुगंधि भी खासी होती है। यह सूख जाता है। बिनौले का श्राटा भी तैयार होता है जो गेहूं के माटे से पाँच गुना, मांस की अपेक्षा अढ़ाई गुना शक्तिशाली बताया जाता है । ( खं० अ०२ य खं० पृ० ४३५-६)
नव्यमत खोरी-कपास के बीजों कीचाय वा फाण्टविधि-कूटे हुये कपास के बीजों का खौलते हुए प्रत्युष्ण जल में प्रक्षेप देकर, थोड़ी देर रहने दें, फिर उसे वस्त्रपूत करलें, यही बिनौले की चाय वा फाण्ट है।
गुण-यह पिच्छिल और स्निग्ध है। अस्तु, अतिसार और रक्कातिसार (Dysentery) में सेवनीय है । यह मृदुरेचक कफ निःसारक एवं स्तन्यवर्द्धक है।
अण्डशोथ वा कुरण्ड (Orchitis) पर(२) कपास के बीज और सोंठ समभाग एकत्र पीसकर किंचित् जल मिला और गरम कर लेप करने से शीघ्र लाभ होता है।
(मे० मे० इं० २य खंड पृ० ६६) फ्रा० इं० १म भ० पृ० २२५।
महीदीन शरीफ़-बिनौला पोषणकर्त्ता (Nutrient) और स्निग्ध (Demulcent ) है तथा पूयमेह, चिरकारी सूजाक (Gleet) चिरकामानुबन्धी वस्तिप्रदाह, क्षय एवं कतिपय प्रतिश्यायिक विकारों पर बीजों का किसी क़दर उत्तम प्रभाव होता है। अकेले की अपेक्षा पूयमेह एवं चिरकालानुबन्धी सूजाक पर बीजों का उस समय अपेक्षाकृत अधिक नियंत्रण उद्भासित होता है, जबकि उनके साथ कतिपय अन्य ओषधि द्रव्य सम्मिलित कर लिये जाते हैं। लेखक ने पूयमेह एवं चिरकालानुबन्धी सूजाक के अनेक रोगियों को |
उक्त प्रकार का यह योग सेवन कराया, जिसके। उत्साह वर्द्धक परिणाम नज़र आये।
विधि-बिनौला २ से ४ ड्राम तक, जीरा १॥ से ४ ड्राम तक, सौंफ १ से २ ड्राम तक, और बंशलोचन १५ से ३० ग्रेन तक । इनमें से . बंशलोचन को छोड़ और शेष औषधियों को पत्थर के खरल में ३ या ४ श्राउंस जल के साथ घोंट रगड़ कर वस्त्रपूत करले। फिर इसमें बंशलोचन मिला सेवन करें। मात्रा-लक्षण की उग्रता के अनुसार इस पेय को दिन रात में ४-५ बार सेवन करें । मे० मे० मै० : म० खंड पृ० ५२-५३ ।
डीमक-श्रामातिसार पर अमेरिका में बिनौले का चाय काम में आता है। बीज स्तन्यवर्धक रूप से भी प्रसिद्ध है। फा० इ. १ म खंड पृ०२२६।
नादकर्णी-बिनोले स्निग्ध, मृदुरेचक, कफनिःसारक और कामोद्दीपक वा (Nervinc tonic) हैं। बीजों के ऊपर का छिलका निकाल तथा खरल में घोटकर और २ ड्राम (५ से ७मा०) . की मात्रा में दूध के साथ सेवन करावें ।।
गुण-यह वात नाड़ो-बलप्रद (Nervinc tonic) है और शिरःशूल एवं मस्तिष्क विकारों में इसका उपयोग होता है । कपास के बीज लैक्टोगाल ( Lactogol ) नामक एक प्रकार के महीन श्वेत चूर्ण के बनाने में काम पाते हैं । जिसको 1 से १ ड्राम को मात्रा में स्तन्यवर्द्धनार्थ व्यवहार करते हैं।
बिनौलों का इमलशन-दुधिया घोल वा चाय (घनीभूत क्वाथ ) प्रामातिसार में प्रयोजित होता है।
अमेरिका में विषमज्वर या पारी से आने वाले शीत पूर्व ज्वर में सुपरिचित भेषज रूप से इसका सफलतापूर्वक प्रयोग होता है। बीजों का यथा बिधि काढ़ा बनाकर ज्वर चढ़ने के १ या दो घण्टे पूर्व चाय की प्याली भर पिलाने से लाभ होता है, कहते हैं कि अपस्मार में तथा सर्प दंश के प्रतिविष स्वरूप भी बिनौले उपयोगी हैं। भारतवर्ष में कपास के बीज विनौले और संयत राज्य अमे