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कदली
२०२८
साफ होता और सूजाक श्राराम हो जाता है । प्रति दिन ताजा रस निकाल पीना चाहिये । बासी रस I हानिकारक होता है। I
केले का पानी श्राध पात्र के लगभग रात को श्रीस में रखें और प्रातः २ तोले निजी निलाकर पियें। इससे सूजाक बहुत शीघ्र आराम हो जाता है।
, बन केले के पत्ते जलाकर राख कर लेवे । इसकी . मात्रा १ माशा की है। एक मात्रा राख, १ तोले शहद में मिलाकर चाटने से हिचकी आराम हो जाती है और कभी-कभी श्वास में भी लाभ देखा गया है ।
केले के भीतर का रेशेवाला भाग कुरेद कर, . उसमें कुछ काली मिर्च रख देवें । सवेरे हो उन्हें केले से निकालकर मंदी श्राग पर भूनकर खा लेवें, इस उपाय से श्वास चला जाता है । —हरिदास वैद्य
केले का पानी एक सेर लेकर और कलमीशोरा पाव एक हँड़ियां में डाल देवें । फिर मुँह बन्द करके मंदाग्नि पर रखें। जब पानी जल जाय बाग बंद कर देवें । पर पात्र का मुँह उसी प्रकार रात्रि भर बन्द रहने देवें। प्रातः काल उसे निकालकर पीसकर सुरक्षित रखें |
मात्रा - अर्ध माशा गाय के दूध की लस्सी के साथ सुबह शाम खावें । सूज़ाक में प्रत्युपयोगी है।
केले का पानी दो सेर कोरी हँडिया में डालकर २ तोले कलमीशोरा मिलाकर चूल्हे पर रखकर जलावें । जब समस्त जल जावे, तब हाँडी से खुरचकर समग्र दवा निकाल लेवें। इसे २ रत्ती की मात्रा में खावें ।
इससे सप्ताह के भीतर-भीतर सूजाक श्राराम हो जाता है।
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केले की जड़ ६ सा०, फालसे की जड़ की छाल ६ मा०, तुख्म ख़यारैन ६ मा०, मुठेली ६ मा०, मिश्री २ तो इनको पीनों में रगड़ कर शीरा निकालकर मिश्री मिलाकर प्रातःकाल पीने से सूजाक की जलन आदि दूर होती है । '
सफेद काशगरी, कत्था सफेद, मुरदासंख, /
कदली
हरा दतिया और कपूर प्रत्येक १ माशा -- इनको केले के पानी में घोंटकर बारीक वर्त्ति बनाकर इन्द्री की सुराख़ में रखें। इससे सूजाकगत व्रण पूरण होता है ।
नोट - कपूर की विधि - सफेद फिटकरी - ३ तो, कपूर ६ मा०, चिनिया गोंड ३ मा०, सबको कूटकर मिला लो थोर केले के श्रर्क में खरल करो और तांबे की डिविया में बंद करके पकतो हुई हंडिया में रख दो । शीतल होने पर निकाल लो। बस कनूर तैयार है इसे ही ऊपर के प्रयोग में डालना उचित है ।
अनविधि मोती को कदल्यर्क में खरल करके एक डोली में बंद कर देवें । मात्रा - एक सुर्ख ( = 1⁄2 रत्ती ) । हृदयोध्या के दूर करने और प्रकृत्यूमा को उद्दीप्त करने में अनुपम है और यह उत्तमांगों को बल प्रदान करता है ।
केले की पत्ती की राख ६ मा०, छिली हुई मुलेठी का महीन चूर्ण ५ मा० | तबाशीर ४ मा० सपाल ३ मा०, छोटी इलाइची ३ मा०, कद्द की गिरी ६ मा० इन सबको कूट पीसकर ४ तो०, मधु में लऊक तैयार करें। इसमें से दिन में कई बार शिशु को थोड़ा थोड़ा चटायें। काली खांसी के लिये रामबाण है । - जड़ी बूटी में खवास । भारतवर्ष में कच्चे केले, मोचे और डाल की तरकारी बनती है । इसका कच्चा पत्र ( बीच का पत्ता ) लिष्टर के ज़ख़्म पर श्राच्छादित कर देने से ज्वाला मिटती है। बीच का पत्ता काट सीधी और मक्खन लगा घाव पर ४-५ दिन बंधा रखने से ब्लिष्टर अच्छा हो जाता है पश्चिम भारत में बीड़ी और चुरुट केले के सूखे पत्ते में लपेट कर प्रस्तुत करते हैं। किसी भी द्रव्य लपेटने के लिये वहां केले का पत्ता व्यवहार में श्राता है। चतुरोग पर केले का कच्चा पत्ता बड़ा उपकार करता है । अफ़रीका में कच्चे पत्ते से घर छाते हैं । कलकत्ते के तंबोली केले के कच्चे पत्ते में लपेट लगे लगाये पान बेचते हैं। बंगाल में गरीब लोग केले का पत्ता फूंक खाक से कपड़े धोते हैं । बहु मूत्ररोग पर कविराज महाशय कदल्यादि घृत में इसकी डाल का रस डालते हैं । यह घृत वायु