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२०२६
---- अम्लपित्त (Acidity ) संयुक्त अजीर्ण रोग ....
अन्यामत . . - में प्रयोगित होती है । कहते हैं कि अ.माशयप्रदाह
कच्चा वेला बहुत कड़ा होता है और खाने के (Gastritis) में दुग्ध मिति केले के अाटे
- काम नहीं पाता। इसकी तरकारी अवश्य बनती का लघु पाश (Gruel) सुपाच्य खाद्य
- है। खाना भी सुस्वादु बनता है । कञ्ची फली गुण. सामग्री है। खाद्य विशेष Banana dessert में शीतल और स्वादु में कसेली और कुछ कुछ
शर्बत, केला, खाय विशेष ( Banana toa- मधुर एवं बाल होती है। यह गष्टि, गुरु एवं - st) शुष्क केला, भृष्ट केला प्रभृति नाना प्रकार, सग्राही है, और कफ एवं वात के रोग उत्पन्न
से यह उपयोगी फल खाने के काम प्राता है। करती है। यह बल्य है और गर्मी को दूर करती ... इसके पके फल में लौह होता है, अतएवं यह पांडु है। इसकी अधपकी फली तीव्र विपासा को शांत ...के रोगियों (Anaemic pe15006) को करती और बहुमूत्र रोग को लाभ पहुँचाती है ।
अतिशय लाभकारी है। चि.कारी प्रवाहिका एवं यह कडई, कसैली और रखी होती है और रक्काअतिसार में अर्धभाग इमली और किंचित् लवण तिसार को भी लाभकारी है। इसे ज्वर में भी
मिला हुआ केला बहुमूल्य आहार है । भामाशय | देते हैं । यह नेत्र को लाभप्रद है, किंतु पाचन .. जैवल्य-निन· अजीर्ण ( Atonicdy pe- विकार उत्पन्न करती है। केले की पकी फली
psia) रोग में के केले का प्रसुत स्वरस अत्यंत सुस्वादु, मधुर और किंचित् केसेली होती -- (Fermented juice ) व्यवहार में श्राता | है । यह समशीतोष्ण वीर्यवर्द्धक क्रांतिहर, उम्र , हैं। संग्रह-ग्रहणी (Sprue), अतिसार और विपासाहर और कांजिदायिनी है। परन्तु यह
स्कर्वी रोग में एक केले को खूब धोकर श्राधपाव चिरपाकी होती है । अस्तु, अजीर्ण-रोगी को हानिदूध में मिलावे । और इसी प्रकार प्रतिदिन तीन- प्रद है । अलवत्ता यह उत्तम पाचन शनिवाले को सीन बार देवे। उन अभिप्राय के लिए करचे केले - गुणकारी है । यह रक्तप्रदर श्वेतप्रदर श्रादि को का शोरबा ( Soup) भी प्रस्तुत होता है। रोगों में असीम गुणकारी एवं सिद्धौषधि है । यह शिशुओं के व्यवहारार्थ लदण.. के बदले इसमें अपनी-रोग में भी गुणकारी है। यह शकिप्रद है
चीनी वा मिश्री का उपयोग करना चाहिये। एवं वीर्य स्तंभन करती, शरीर को स्थूल करती, .. अमेरिका में एक प्रकार का शबंत केला त्यात है। मांस की वृद्धि करती, उष्ण प्रवृति बालों में कामोजि.ससे क्रांतिहर पेय और कासहर प्रभावकारी
दीपन करती, इकुमेह (जि.यावेस ) को लाभ औषध प्रस्तुत होती है । केले के वृक्ष के उलाने पहुँचाती. इक्व-काश्यं को दूर करती और यह शुष्क ... से प्राप्त हुथे राख में पोटास के लवण पाये।
कास और गले की खरखराहट को . लाभकारी है। - जाते हैं। अस्तु; अम्लपित्त (Acidity)
इसकी उड़ उदररू-वृमि नष्ट करती है । यह उलहृद्दाह और उदर शूल में उपयोगी होते हैं । शोथ
त्रास रोग (दाउल कल्ब) को लाभकारी है। युक्त ( Inflamed ) और दिलष्टर युक्र धरा- इसके पत्तों की राख जोरोध में गुणकारी है । यह वल के लिये इसकी इद्र कोमल पत्ती श्राच्छादन वायु और कपकारक है। दर्पन इसका रूवण, (Dressing) का काम देती है। . .सोंठ और मधु है। परन्तु दंगाले.की तरफ
विधि यह है-सर्व प्रथम रिलष्टर को हटा देवें प्रथम इसे भक्षण कर ऊपर से कच्चा चादल चवाते ....पुनः केले की पत्ती के एक टुकड़े पर किसी मीठे हैं इससे यह हज़म हो जाती है। खाने से पहले .... तेल (Bland oil) से चुपड़ कर - धरा- खाना हानिप्रद है। जड़ी बूटी में खदास । -सल Denuded surface) पर चिपका - : पके हुये केले की प.ली, दूध में कई बार सान.....देव। ...................
कर, लगातार कुछ दिन खाने से, योनि से खून "अष्टी दिन में दो बार वा आवश्यकता पड़ने पर जाना बंद हो जाता है। बारम्बार बदलते रहना चाहिये । ....
: पका हमा केला और मामलों का स्वरस लेकर