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कदली
२०२३
इसका रस पिलाने से शराब का ज़ोर कम हो जाता है।
इसके पके फल और आँवलों के रस में मधु और खाँड़ मिलाकर सेवन करने से सोम रोग नष्ट होता है ।
इसके खार और हलदी के प्रलेप से श्वित्र के धब्बे दूर होते हैं ।
इसके पत्तों की राख में थोड़ा लवण मिलाकर फंकी देने से खाँसी और कफ दूर होता है ।
केले के तने का रस पिलाने से मूत्र प्रणालीस्थ प्रदाह का निवारण होता है ।
केले के पीले पत्तों को कड़ ुए तेल में जलाकर, उस तेल में मुरदासंख मिलाकर लगाने से श्वित्र धब्बे दूर होते हैं ।
इसके पके फल की २४ तोले निरंतर ४१ दिन तक खाने से दूर होता है । - ० ०
नव्य मत
मींगी घी के साथ पुरखोरी का रोग
खोरी - कदलीफल तर्पक, पोषक एवं कषाय है । यह गलक्षत, शुष्क कास एवं मूत्रकृच्छ्रादि वस्ति - उत्तेजनजात पीड़ाथों में हितकर है | कदलीमूल क्रिमिन है । शुष्कीकृत श्रपक्क कदली-चूर्ण उत्तम पुष्टिप्रद खाद्योषध है । यह उदरामयग्रस्त रोगी के लिये प्रशस्त पथ्य है । पुराण कास रोग में केले का शत ( Syrup) फलप्रद होता है। रक्त पित्त एवं रक्त निष्ठीवन रोग में केले के तने में चीरा देने से निर्गत हुआ रस पिलाने से बहुत उपकार होता है । इसकी कोमल पत्तियाँ व्रण वंधनादि के लिये 'गट्टा पाच' की प्रतिनिधि स्वरूप काम में श्राती हैं । अधिकन्तु यह ब्लिष्टर के लिये स्निग्ध एवं शीतल ग्राच्छादक है । एतद्देशीय लोग नेत्ररोग में केले के नये कोमल पत्ता द्वारा नेत्र को श्राच्छादित कर रखते हैं । इसमें चक्षु शीतल रहता है और सूर्यात्ताप से सुरक्षित रहता है । (मेटीरिया मेडिका ग्राफ इण्डियाश्रार० एन० खोरी - २ य खंड, पृ० ५६६ )
डिमक - एमर्सन के अनुसार कदली वृक्ष का रस विशुचिका जात तृष्णा प्रशमनार्थ व्यवहृत होता है | पेरीरा ( मेटीरिड मेडिका-२ खं०, पृ० २२२ ) ने अपक्व कदली- फल-चूर्णका पुष्टिक
कदली
रत्व गुण स्वीकार किया है । प्रचुर परिमाण में निशास्ता होने के कारण इसके तने का अधोभाग भारतवर्ष में काल कालीन बहुमूल्यवान् खाद्य सामग्री है | केलेके अपक्व फल द्वारा प्रस्तुत श्वेतसार बंगाल में उदरामयोपचार में व्यवहृत होता है । इसका एक नमूना जिसका हमने परीक्षण किया, किञ्चित् कषाय तत्व के साथ बहुधा पूर्णश में विशुद्ध श्वेतसार घटित था । कहते हैं कि अमेरिका में केले के फल का प्रपानक Syrup), fat कालानुबंधी कास रोग की एक मात्र फलप्रद श्रोषध है ।
केले के फल का प्रपानक प्रस्तुत करने की बिधि - केले के फल के अत्यंत छोटे छोटे टुकड़े कर समान भाग चीनी मिला किसी श्रावृतमुख-पात्र (Syrup ) में स्थापन करें । फिर उक्त पात्र को किसी ऐसे शीतल जल परिपूर्ण पात्र में स्थापन करें जिसमें उक्त पात्र उत्तम रूप से निमज्जित होजाय । तदुपरांत उसे चूल्हे पर चढ़ाकर मंदाग्नि से यहाँ तक पकायें कि जल खौलने लगे। फिर शीतल होने के लिये उसे आग से उतार | शीतल होने पर स्थित शर्बत का व्यवहार करें ।
पात्र मध्य
मात्रा - चाय के चम्मच से १-१ चमचा घंटे घंटे पर देवें ।
(डिमक - फार्माकोग्राफिया इंडिका-२ य खंड, पृ० ५४४ - ५ )
उदय चन्द दत्त - केले के कच्चे फल को संस्कृत में 'मोचक' कहते हैं और यह शीतल एवं कषाय माना जाता है । बहुमूत्र ( Diabotes ) रोग में कदल्यादि घृत रूप में इसका श्रत्यधिक व्यवहार होता है ।
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ऐन्सली — केला समग्र भारतीय फलों में निः संदेह सर्वाधिक सुस्वादु और अम्लता से सर्वतः रिक्क एवं नाजुक श्रामाशय के लिये सबसे अधिक निरापद फल है । इसके अतिरिक्त यह अत्यन्त पोषक है और हिंदू चिकित्सक उष्ण प्रकृति वाले एवं पित्त रोगी को सर्वदा पथ्य रूप से इसकी व्यवस्था देते हैं । फलत्वक के ठीक नीचे क खुरदरे श्रावरण को खुरचकर पृथक कर देते हैं । इसमें ऊपर से शर्करा और मिष्ट दुग्ध मिलाने से