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कदली
खरबूजे के बीजों के साथ इसे पीसकर लगाने से छपवा झांई मिटती है
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२०२१
इसके मर्दन करने से कपोलों का रंग निखता है।
इसकी पत्ती गर्मी की सूजन पर बांधने से सूजन उतर जाती है ।
केले के पेड़ की जड़ उदरज कृमि को नष्ट करती है । यह जलत्रास वा हलकाव रोग को लाभकारी है ।
यदि स्त्री केले की फली के महीन चूर्ण का हमूल करे - योनि में पिचुवर्ति धारण करे, तो गर्भ
रह जाय ।
जाद ग़रीब में लिखा है कि कदली वृक्ष-कांड को ज़रा सा चीरकर रात को उससे मिला एक बरतन रख देवें, जिसमें पानी टपक कर उक्त पात्र में एकत्रित होजावे । दिन में उसे लेकर उस आदमी को पिलावें, जिसे सदाह मूत्र श्राता अवश्य उपकार होगा ।
जब कोई प्राणी बिष के कारण आसन्नमृत्यु हो, तब उसे ले के पेड़ का पानी तीन-तीन छटाँक की मात्रा में श्राध श्राध घण्टे पर पिलाना चाहिये | शीघ्र लाभ होगा । 1
विद्वानों का कथन है कि साँप केले से भागता है । अस्तु, कदली वृक्ष चाहे कितनी ही न झाड़ियों के मध्य हो ( सिवाय एक बिशेष प्रकार के साँप के जो हरे रंग का होता है और देश के केवल कतिपय विशिष्ट भागों में पाया जाता है ), उनमें साँप कदापि नहीं मिलेगा । ज्योंही किसी को सर्प काटे, उसे चाहिये कि केले के पेड़ से तुरत ताजा श्रर्क निकालकर दो प्याले की मात्रा में पिला देवें । यह उपचार अनुभव द्वारा ६४ प्रतिशत सफल प्रमाणित हो चुका है केले का ताजा धर्क यद्यपि बे स्वाद होता है । किंतु परीक्षित उपाय है 1
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केले का नीहार मुँह खाना उत्तम नहीं तथा शीतल प्रकृति को एवं शीतल स्थान में हानिप्रद है । उष्ण प्रकृति को एवं उष्ण स्थान में साम्य और गुणकारी है।
वैद्यों के वर्णनानुसार इसकी कच्ची फली
कदली
शीतल और रूक्ष किंचित् बिकसी और कड़बी है । पकी फली उष्ण और तीच्ण है। किसी से मत से शीतल मधुर, स्निग्ध और किंचित् विक्रसी है । इसके तने का गामा बिकसा और शीतल है। इसका पानी किंचित् तिक एवं शीतल है। इसको जड़ भी शीतल है।
कच्ची फली की तरकारी शुक्रमेह, वीर्यस्राव और स्वदोषाधिक्य में उपकारी है। इससे रक्ता तिसार श्राराम होता है ।
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पकी फली गुरु एवं वल्य और देह स्थौल्य कारक है । यह प्यास बुझाती कास श्वास को दूर करती है | इससे वात, पित्त एवं रक्त के दोष मिटते और वक्ष गत प्रदाह का नाश होता है ।
पकी फली खाने से बहुमूत्र रोग मिटता है । किंतु यूनानियों ने इसे मूत्र - प्रवर्त्तक लिखा है ।
के गुह्यांग से जो श्वेत द्रव स्रावित होता है, उसके लिये इसकी पकी फली खिलाना चाहिये ।
बहुमूत्र रोगी को वैद्य लोग एतत्साधित घृत सेवन कराते हैं ।
श्रग्निदग्ध और छालों की दाह मिटाने के लिये शिशु केले के पत्र खिलाना चाहिये ।
जिस रोग में गीली पट्टी बाँधी जाती है, उसे गीली बनी रहने के लिये, उस पर कदली- पत्र बाँध देना चाहिये ।
दुःखती हुई श्राँख पर वा श्राँख के ऊपर छांह रहने के वाँधना चाहिये ।
विसूचिका जन्य पिपासा शमनार्थ केले के तने का स्वरस पिलाना चाहिये श्रथवा उससे गण्डूष कराना चाहिये । उक्त स्वरस द्वारा गडूष करने से मसूढ़े के रोग आराम होते हैं ।
देह को सुदृढ़ एवं बलिष्ठ बनाने के लिये केले की फली अत्युत्तम फल है ।
आग से जल जाय, तो उस पर केले की फली का प्रलेप करें ।
केले को उबाल कर श्रातशक के क्षतों पर बाँधना चाहिये |
कदली वृत्त मूल को कथित कर पिलाने से त्रस्थ कृमि मृत प्राय होते हैं ।
अन्य नेत्र रोगों में लिये, कदली- पत्र