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कदली
पित्त प्रकृति वालों को केले की फली खाने से श्रामाशय, यकृत तथा फुफ्फुस और मूत्र की गर्मी मिट जाती है।
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केले की छोटी और पकी फली खिलाने से चिरकालानुबंधी अतिसार और श्राँव बंद होते हैं । केले की बड़ी क़िस्म की सूखी फली खिलाने से मसूढ़े के रोग थाराम होते हैं ।
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कदली क्षार निर्माण विधि — केले के वृत्त को जलाकर उसकी राख को छः गुने पानी में घोलकर श्रष्ट प्रहर पर्यन्त घर रखें । तदुपरांत उसे भली भाँति सलकर गाड़े कपड़े में छानकर स्वच्छ जल ले लेवें । पुनः उक्त जल को मिट्टी वा कलई चड़े हुये पात्र में भर कर भाग पर चढ़ा श्रौटा । जब जल मात्र जल कर तल भाग में चूने की तरह की एक चीज़ शेष रह जाय, तब उसे उतार सुखा कर बोतल में भरकर रख लेवें यह लवण की जगह काम श्राती है और अम्लपित्त को मिटाता है । उपविधि से केले के पत्र और छाल को भी जलाकर नमक निकालते हैं इसकी राख में इतनी शोरियत है कि बंगाले में रजकगण इसे साबुन की जगह काम में लाते हैं। केले की कच्ची • फलियों को छील कर पकावें और दही में मलकर शक्कर वा नमक मिर्च डाल कर खिलायें, इससे दस्त और श्राँव बंद होते हैं ।
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पुरानी इमली का गूदा थोड़े पानी में मलकर उसका शीरा - निकालें। फिर उसमें पकी फली का गूदा और पुराना गुड़ वा मिश्री मिलाकर प्रॉव पड़ने के प्रारम्भ में पिलायें ।
हरे कच्चे केले को दूध में सुखाकर महीन पीस
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लें । मंदाग्नि वाले को उक्त श्राटे की रोटी बनाकर खिलाने से न तो उसे अध्मान होता है और न मोद्गार श्राते हैं। केले की फली के आटे की रोटी लवण के साथ देने से शिशु के दस्त और बन्द होते हैं ।
केले की कोमल जड़ के स्वरस में दम्मुल श्रवैन - ख़ना खराबा पीसकर पिलाने से उदर शूल मिटता है ।
केले का खार थोर खाँड पानी में मिलाकर
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पिलाने से दिल की गर्मी शांत होती है। केले की कच्ची फली खिलाने से रक्त वमन श्रौर बहुमूत्र रोग श्राराम होता है ।
इसकी फली में लवण मिलाकर खिलाने से ब बंद होती है।
इसकी जड़ पीसकर पिलाने से पित्त विकार शांत होता है।
काल्पता वा पांडु रोग अर्थात् पित्त में इसकी जड़ पीसकर पिलाना चाहिये ।
केले की जड़ का रस सुर्खवादा और रोमा दूर करता है ।
उस शिशु को, जिसे मात्रा से अधिक अफीम देदी हो, केले की छाल और पतों का रस पिलाना चाहिये ।
इसकी छाल के श्रढ़ाई तोले रस में हल करके पिलाने से पेशाब की रुकावट मिटती है। 1 इसके फूलों के रस में दही मिलाकर खिलाने से श्रव और असमय ऋतु का श्राना श्राराम होता है ।
केले की कच्ची फली सुखा पीसकर बालकों को फँकाने से उनके दस्त बन्द होते हैं ।
केले की कच्ची फलियाँ सुखा-पीसकर उसमें खाँड मिलाकर फेंका देवें और ऊपर से दूध की लस्सी पिला देवें । इससे सूज़ाक श्राराम होता है ।
संखिया का ज़हर उतारने के लिये कदलीमूल स्वरस पिलायें ।
केले की जड़ के स्वरस में घृत और शर्करा मिलाकर पिलाने से सूज़ाक श्राराम होता है ।
पुराने दस्त बंद हो जाने के उपरांत शेष रहे हुए अजीर्ण के लिये केले की कच्ची फली की तरकारी बनाकर खिलाते रहें ।
इसके पेड़ का रस सुंघाने से नकसीर बंद होती है ।
इसकी जड़ आदमी के पेशाब में पीसकर कुछ गर्म करके कपड़े पर लगाकर बद पर बाँधने से वह विलीन हो जाती है ।
इसका फल घी में तलकर काली मिर्च के साथ खाने से कफ का विकार दूर होता है ।
कदलीमूल - स्वरस में समान भाग मधु मिलाकर पिलाने से वमन बंद होता है ।