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कदली
२०१६
कोमल कदलीफल
कोमलं कदलं शीतं मधुरंच कषायकम् । यमलं समुद्दिष्टं पित्तनाशकरंच तत् ॥ ( शा० नि० भू० ) केले की कोमल फली - शीतल, मधुर, कषेली, रुचिकारी, खट्टी और पित्तनाश करने वाली है।
मध्यम कदलीफल
पित्तादि गद प्रमेहान् फलं कदल्यास्त रुणं निहन्ति । संग्राहिकं तिक्त कषाय रूक्षं तिक्तातिसारं शमयेज्ज्वरं च ॥
केले की तरुण फली - प्यास, रक्तपित्तादि रोग और प्रमेहों को दूर करती है तथा यह संग्राहिक, कडुई, कसेली और रूखी है एवं रक्तातिसार और ज्वर को शांत करती है ।
मध्यम कदलं किचित्तुवरं मधुरं गुरुः । अग्निमांद्यकरं चैव ऋषिभिः परिकीर्तितम् ॥
केले की तरुण (कुछ कच्ची और कुछ पकी ) फली- किंचित् कषेली, मधुर, भारी और मन्दाग्नि कारक है। ।
कदलं मधुरं वृष्यं कषायं नातिशीतलम् । रक्त पित्तहरं हृद्यं रुच्यं श्लेष्मकरं गुरुः । तदेव चम्पकाख्यन्तु वातपित्तहरं गुरुः । वृष्य वाति शीतञ्च मधुरं रसपाकयोः । कदली मोचकं हृद्यं कफघ्नं कृमिनाशनम् । तृष्णा सीहा ज्वरं हन्ति दीपनं वस्ति शोधनम् । कदल्या वलकृन्मूलं वात पित्तहरं गुरुः । ( राज० ) केले की साधारण फली - मधुर, वीर्यवर्द्धक, कसेली, किंचित् शीतल, रक्तपित्तनाशक हृदय को हितकारी, रुचिकारी, कफकारक और भारी है। चम्पक केला - वात पित्त नाशक, भारी, वीर्य वर्द्धक, अत्यंत शीतल, मधुर और पाक में भी मधुर है। केले का मोचा - हृदय को हितकारी कफ नाशक, कृमिनाशक, तृष्णा निवारक, प्लीहा नाशक, ज्वरहारक, दीपन और वस्तिशोधक है । कदली मूल - बलकारक, भारी और वात पित्त नाशक है।
कदली
संपर्क पनसं मोचं राजादन फलानि च । स्वादूनि कषायाणि स्निग्ध शीत गुरूणि च ॥ कषाय विषदत्वाच्च सौगन्ध्याश्च रुचिप्रदम् । ( चरक सू० २७ श्र० फ० व० ) खूब पका हुआ केला, कटहल और खिरनी इत्यादि फल मीठे, कसेले, स्निग्ध, शीतल और भारी होते तथा कषाय, विशद और सुगंधि युक्त होने से रुचिकारी होते हैं ।
मोचं स्वादुरसं प्रोक्तं कषायं नातिशीतलम् । रक्तपित्तहर' वृष्यं रुच्यं श्लेष्मकर गुरुः ॥
( सुश्रुत सू० ४६ श्र० फ० व० ) पका केला मीठा, कसेला, किंचित् शीतल, रक्तपित्तनाशक, वीर्यवर्द्धक, रुचिकारक, कफजनक भारी है।
कदली वर पक्कफलं मधुरं रुचिरं मृदु वात हरं शिशिरम् । क्षतज क्षय दाह निवार्य्यस्रजायुत पित्तविकार निवृत्तिकरम् | प्रदराश्मगदं निहरे ल्लघु च प्रतिबंधकरं बलं न सरम् । शनात्प्रथमं यदि भुक्तमिदं न शुभं शुभदं त्व शना विरतौ ॥
( शा० नि० भू० )
केले की पकी फली - मधुर, रुचिकारक, कोमल, वातनाशक, शीतल तथा क्षतज, क्षय, दाह, रक्तपित्त, प्रदर और पथरी रोग को दूर करती है तथा हलकी निबन्धकारक, बलवर्द्धक, सारक नहीं और भोजन से प्रथम खाई हुई केले की फली शुभ नहीं है और भोजन करते समय हित है ।
पक्कं तु कदलं बल्यं तुवरं मधुरं गुरुः । शीतं वृष्यं शुक्रवृद्धिकरं सन्तर्पणं मतम् ॥ मांसक त्यरुचीनां च वर्द्धनं दुर्जरं मतम् । कफकृच्च तृषा ग्लानि पित्त रक्त रुजस्तथा ॥ मेह क्षुधा नेत्ररोगनाशकं परमं मतम् । मन्दाग्नीनां विकृतिदमृषिभिः परिकीर्त्तितम् ॥ (नि० र०) हृद्यं मनोज्ञं वृद्धि कारि शान्तश्च सन्तर्प